श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम की विजय हुई थी – “उद्धव प्रसंग 30” !!
भाग 2
उद्धव ! कहाँ गए थे बता तो दो ! अक्रूर पूछ रहे हैं ।
पर उद्धव तो अपलक श्रीकृष्ण को देख रहे हैं…….क्यों किया ऐसा ? बताओ क्यों किया ? क्या अपराध था उन बेचारे बृजवासियों का ?
यही अपराध ना ! कि तुमसे उन्होंने प्रेम किया ?
इधर उधर देख रहे हैं श्रीकृष्ण……वसुदेव जी खड़े हैं अक्रूर खड़े हैं ।
पर उद्धव को किसी से कोई मतलब नही है …………
अच्छा ! तू बता कैसा है तू ? श्रीकृष्ण उद्धव का हाथ पकड़ना चाहते हैं …..पर उद्धव झटक देते है ………..
उद्धव ! भीतर महल में चल ………चल उद्धव …….उद्धव मानें नही तो जबरदस्ती हाथ पकड़ कर भीतर ले गए श्रीकृष्ण …..और द्वार भीतर से बन्द कर दिया ।
मुस्कुरा रहे हैं श्रीकृष्ण ………और उद्धव हिलकियों से रो रहे हैं ।
अच्छा लग रहा है ना आपको ! मैं तो आपको प्रेम मूर्ति कहता था …करुणानिधान कहता था …….पर आप तो महानिष्ठुर निकले !
क्यों ? बताइये क्यों किया आपनें उन लोगों के साथ ऐसा !
श्रीकृष्ण सिर झुकाकर खड़े रहे ……………..
उद्धव आगे बढ़े और सीधे हाथ पकड़ लिया श्रीकृष्ण का …….चलिये ! अभी चलिये ! उद्धव श्रीकृष्ण को लेकर द्वार खोलनें ही वाले थे कि ……….पर कहाँ ? कहाँ ले जा रहे हो मुझे उद्धव ? वो मेघगम्भीर वाणी गूँजी ।
वृन्दावन ले जा रहा हूँ …….चलिये मेरे साथ संकल्प किया है मैने ……वृन्दावन के एक एक लोगों से मैने कहा है कि श्रीकृष्ण को लेकर मैं अवश्य आऊँगा …….आप चलिये ! उद्धव फिर ले जानें लगे ।
रथ खड़ा है बाहर …….आप चिन्ता मत कीजिये मथुरा की …चलिये बस …..यहाँ किसी का कुछ नही बिगड़ेगा ! आपके लिये यहाँ कोई नही मरेगा……..पर वृन्दावन के लोगों को जीवन दान मिल जायेगा ……ओह ! आप वहाँ जाओगे ना ! तो वो लोग कितनें खुश होंगे आपको कल्पना भी नही है …….एक एक क्षण गिनते हैं वे लोग …….एक एक पथिक से पूछते हैं हमारा कन्हैया कब आएगा ! वो लोग केवल तुम्हारे लिये जीवित हैं ………..जीवित भी क्या कहूँ ! बस आप चले जाओगे ना तो जीवित हो जायेंगे ! चलिये ना ! उद्धव नें फिर जिद्द की ।
यहाँ आप किसके लिये हो ? यहाँ आपके लिये कौन है ? सब अपनें लिये हैं इस मथुरा में तो ……फिर यहाँ आप क्यों ?
कंस को मारना था मार दिया आपनें ………..मथुरा वासी प्रसन्न हैं मथुरा के राजा उग्रसेन हैं …….पर आप यहाँ क्यों ? आपको तो वृन्दावन में होना चाहिये……चलिये , चलिये नाथ चलिये। !
वो मैया यशोदा ! रोते रोते उसकी आँखें कमजोर हो गयी हैं ……कानों से भी कम सुनती है अब वो मैया…………
बस मेरा लाला आएगा , मेरा लाला आएगा …..यही रट लगाती रहती है …………बाबा तो बेचारे कुछ कहते ही नही है ….पर अकेले में खूब रोते हैं ……आपके सखा ………..नित्य मथुरा की सीमा में खड़े हो जाते हैं …….आप आओगे कहकर देखते रहते हैं ……….ओह ! और आपकी वो श्रीराधारानी ! उद्धव मूर्छित ही हो गए थे रोते रोते ।
श्रीकृष्ण नें सम्भाला उद्धव को ……….और मन्द मुस्कुरा रहे थे वे ……क्यों की प्रेम की विजय हुई थी …….उद्धव जो ज्ञानी था वो आज प्रेमी बनकर लौटा था ।
शेष चरित्र कल –


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