श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! बहन सुभद्रा का जन्म – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम्”1 !!
भाग 1
यशोदा मैया का आज हंस हंस कर बुरा हाल है …………
सुना ! रोहिणी नें समाचार भिजवाया है मथुरा से …….कि जीजी ! आजाओ देवकी रानी नें एक कन्या को जनम दिया है ।
अब देखो ! इस रोहिणी के पांवों में ही कुछ चक्कर है …..जहाँ जाती है वहीं सन्तान होनें लग जाते सबके ।
आपके भी तो बृजरानी ! एक गोपी नें कह दिया ।
यशोदा मैया गम्भीर हो गयीं ……अलग ही भाव देश में चली गयीं ।
बृजरानी ! क्या हुआ ? वो बूढी गोपी पूछ रही है ।
हाँ, एकाएक फिर जाग्रत हुयीं यशोदा मैया !
अरी मैं कह रही थी कि ………..रोहिणी नें समाचार भेजा है …….कि देवकी रानी के पुत्री हुयी है !
चलो अच्छा हुआ अब अपनें कन्हैया को बहन भी मिल गई ।
उस बूढी गोपी नें फिर कह दिया ।
हाँ………..भ्रातृ द्वितीया में दुःखी हो जाता था ………..तब उपनन्द जी की बेटी कन्हैया के टीका करती थी ……….वो उन्हें दक्षिणा देता था …….मैं लाला के हाथों में देती ………वो उन्हें देता …….बड़ा खुश होता था वो …….मेरी बहन ! मेरी बहन कहते नही थकता था ।
चलो अच्छा हुआ अब उसे सगी बहन ही मिल गयी ….उस बूढी गोपी नें फिर कहा ।
तो क्या आप मथुरा जाओगी ? बृजरानी से पौर्णमासी पूछ रही थीं ।
नही , मैं नही जाऊँगी ! बृजराज जाएँ पर लगता नही कि वो भी जायेंगे ……….बृजराज का कहना है ……अपना लाला खुश है मथुरा में तो फिर बारबार जाकर उसे परेशान क्यों करना ?
हाँ उस लाली के लिये मैने कुछ वस्त्र भेज दिए हैं …..और कह दिया है मेरा आशीष देना उसे ………..लाला की बहन आयी है …..कितना खुश होगा ना लाला मेरा ………पर उद्धव गया वो आया नही …..कहकर गया था कि आऊँगा ……….चलो ! बृजराज ठीक ही कहते हैं ……….जहाँ रहे खुश रहे लाला ! यशोदा मैया फिर अपनें आँगन को देखनें लग जातीं हैं …….सूनें आँगन को ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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