श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मगध नरेश का आक्रमण – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 2” !!
भाग 1
राजा कंस के स्वसुर थे मगध नरेश जरासन्ध ……..
उनकी दो पुत्रियां कंस को ब्याही गयीं थीं अस्ति और प्राप्ति ।
पर अब तो राजा कंस रहा नही ……..तो ये दोनों अपनें पिता के यहाँ चली गयीं थीं……मगध नरेश नें जब वैधव्य रूप में अपनी पुत्रियों को देखा तो बिलख उठा….रोष के कारण उसकी आँखें लाल हो गयीं थीं ।
कौन है वो जिसनें मेरी पुत्रियों को विधवा किया ?
जरासन्ध क्रोध में भरकर ये बात पूछ रहा था ।
कृष्ण ……कृष्ण और उसका बड़ा भाई बलभद्र ………पिता जी ! इन दोनों नें न सिर्फ मेरे पति को मारा …..उनके मृत देह को मथुरा के मार्ग में घसीटा ……….कुछ बढा चढ़ा कर बोल रही थीं ये दोनों ।
राजा जरासन्ध महाबली था ………समस्त पृथ्वी के बड़े बड़े राजाओं से इसके अच्छे सम्बन्ध थे ……..सब इसका आदर सम्मान करते थे ।
तात ! जरासन्ध को आप निर्बुद्धि नही कह सकते …….समझदार था वो …….शत्रु को कमतर आंकना ये जानता नही था ……….इसलिये इसनें कुछ और दिनों की प्रतीक्षा की ……और उस प्रतीक्षा में इसनें अपनें समस्त वीर राजाओं को निमन्त्रण भेजा ……..मथुरा में आक्रमण करनें के लिये उसनें सबसे सहायता माँगी थी …….और साथ में ये भी कहा कि ……जो मेरा साथ नही देगा वो मेरा शत्रु होगा ।
जरासन्ध से सब डरते थे ………..इसलिये इसकी शत्रुता कोई मोल लेना नही चाहता था ………समय देखकर जरासन्ध नें मथुरा नगरी को घेर लिया ……..चारों दिशाओं से घेर लिया ………..मथुरा एक प्रकार से बंधक बन गया था ।
कृष्ण ! ये क्या है ? बाहर क्या हो रहा है ?
गुप्त मन्त्रणा में श्रीकृष्ण थे …….उसी समय बलराम जी वहाँ पहुँच गए और क्रोध में भरकर श्रीकृष्ण से बोले थे ।
शान्त दादा ! शान्त ! सबको बाहर भेज दिया श्रीकृष्ण नें …..और बलभद्र से बोले …..दादा ! जो हो रहा है अच्छा ही है ……….पृथ्वी में दुष्ट राजाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही थी ……ये अच्छा अवसर है ……श्रीकृष्ण सहज थे और शान्त भी ।
तुम कहते हो अच्छा हो रहा है ? अरे ! हमारी जन्म भूमि मथुरा घिर चुकी है ………..और तुम शान्त हो ? बलभद्र नें श्रीकृष्ण से क्रोध में भरकर पूछा ।
दादा ! क्रोध समस्या का समाधान तो नही है ना !
पर अब क्या करें ? हमारे पास इतनें सैनिक भी नही है ………..बाहर हम घिर चुके हैं …..क्या करें ? बलभद्र बोले जा रहे थे ।
दादा ! आप हो और हम हैं ………..मुस्कुराये श्रीकृष्ण …..और एकाएक दाऊ का हाथ पकड़ कर बोले ……दादा ! चलो बाहर ।
बाहर जैसे ही आये ……..एक सुवर्ण का रथ खड़ा था …….चलो दादा ! इसी में…… दोनों रथ में बैठे …………कोई सारथि नही है ? बलभद्र नें पूछा ……मैं हूँ ना श्रीकृष्ण बोले और स्वयं सारथि बन रथ को हाँक दिया ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल-


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