श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालयवन – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 4” !!
भाग 1
कौन था ये कालयवन उद्धव ?…यदुवंश में जन्मा कोई भी वीर इसका वध नही कर सकता था ऐसा मैने सुना है….. .इसके विषय में कुछ बताओ । हे प्रिय उद्धव ! मुझे कालयवन से कोई प्रयोजन नही है …..पर इसके जीवन का अंतिम क्षण श्रीकृष्ण में लगा ….इसे उन नीर नील धर श्याम के दर्शन हुए ……….यवन हुआ तो क्या हुआ ….श्रीकृष्ण चरणों में इसकी गति तो हुयी …..इसलिये इसके विषय में मुझें बताओ !
विदुर जी नें उद्धव से प्रश्न किया था ।
तात ! एक गर्ग गोत्रीय ब्राह्मण थे ………..उद्धव विदुर जी को कालयवन के विषय में बतानें लगे थे ।
उन ब्राह्मण का विवाह यदुवंशी एक कन्या से हुआ…….किन्तु उन गर्ग गोत्रीय ब्राह्मण का एक प्रण था…..कि मैं बारह वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये …..तप करूँगा…..उसके बाद ही मैं सन्तानोत्पत्ती की ओर जाऊँगा…….ये बात उस ब्राह्मण नें विवाह के बाद में कही थी ।
नव वधू का भाई क्रोध में भर गया था ….तू नपुंसक है …….हम लोगों का दुर्भाग्य है कि हमनें तुझे अपनी कन्या दी । तात ! वधू का भाई ही नही बोला था ……..वधू के पक्ष के सब लोग बोले थे ।
क्या कहता वो गार्ग्य ब्राह्मण ………..उसका कुछ भी कहना व्यर्थ था इस समय ……..वो मौन ही बना रहा ।
पर उसके मन में यदुवंशियों के प्रति घृणा द्वेष भर चुका था ………वो सबकी सुनकर बिना किसी को उत्तर दिए …….चला गया वन में तप करनें ……………..
घोर तप किया उसनें …………बिना कुछ अन्न लिये ……हाँ वो लौह चूर्ण लेता रहा ……..और भगवान शंकर की आराधना करता रहा ।
द्वादश वर्ष बीत गए थे ……..भगवान शंकर प्रसन्न हुए ……वर मांगों गार्ग्य ! क्या चाहते हो ?
मैं ऐसा पुत्र चाहता हूँ जिसे यदुवंशी ही न मार सकें ।
विचित्र वर था ये ……..ये वर माँगता नही ……पर उसके मन में जो यदुवंशियों के प्रति द्वेष था ……उसी नें वाध्य किया ……गार्ग्य ब्राह्मण नें यही वर माँगा था ।
उपासक इष्ट से जो मांगे वो इष्ट को भी देना पड़ता है ……भगवान शंकर नें एवमस्तु कहा ….और अंतर्ध्यान हो गए ।
उस समय यदुवंशी वीरों में गिनें जाते थे……महादेव द्वारा वर मिला है इस ब्राह्मण को……ये बात महायवन नामक एक राजा जान गया था ……वो ब्राह्मण वर प्राप्त करके निकल ही रहा था कि ……
क्रमशः….
शेष चरित्र कल –


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