श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालयवन भस्म हुआ – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 5” !!
भाग 2
तात ! नदी , पर्वत नाना सरोवरों को पार करते हुये ………..वो कमल नयन दौड़ रहे हैं ……….वो कोमल चरण……..और पीछे दौड़ रहा है कालयवन…..ज्यादा दूर नही हैं ……..कालयवन को लगता है ….अब पकड़ा …..किन्तु वो पकड़ नही पाता…….श्रीकृष्ण उसकी पकड़ से दूर हो जाते हैं ।
तू छलिया है …..मैं तुझे छोड़ूँगा नही ……..मेरा नाम कालयवन है ……वो बोलता हुआ दौड़ रहा है ।
तो पकड़ो मुझे कालयवन !….पकड़ो……वो फिर अपनी विश्व विमोहिनी मुस्कुराहट छोड़ते हैं………कालयवन अब चिढ गया है ……….वो पूरी ताकत लगाता है दौड़नें में………किन्तु श्रीकृष्ण को वो नहीं पकड़ पाता ………………
एक गुफा है सामनें……..अन्धकारमय गुफा…….उस गुफा के द्वार में जाकर वासुदेव रुके …………फिर एक बार मुड़कर कालयवन की ओर देखा ………..फिर गए प्रवेश कर गए उस अंधकारमय गुफा में ।
कृष्ण ! कृष्ण !
सम्भल कर चल रहा है कालयवन.......क्यों की गुफा में अन्धकार है ......घना अन्धकार .......जल भी बह रहा है गुफा के अंदर से .........उसे कुछ दिखाई नही दे रहा .........वो चल रहा है बस .......
कृष्ण ! कृष्ण !
वो पुकार रहा है …..उसके हाथों में खड्ग है ……..वो बड़ा सावधान है ………धीरे धीरे चल रहा है ।
ओह ! तू यहाँ है ………….उसनें एक स्थान को हाथों से टटोलते हुये ……..सो रहा है कोई…………..उसके ऊपर पीताम्बरी उढ़ी हुयी है …….सुगन्ध से उसनें पहचान लिया था कमल की सुगन्ध आरही थी उस पीताम्बरी से ………
कालयवन हंसा ………..पीताम्बरी को उसनें पकड़ कर खींच दिया ………और एक मुष्टिक का प्रहार किया …….प्रहार जोर का था ।
सो रहा था कोई पुरुष ……….वो उठा ……उसकी नींद खुल गयी थी ……..उस सोये हुये पुरुष के ऊपर ही श्रीकृष्ण नें अपनी पीताम्बरी ओढ़ा दी थी ……….वो उठा ……और जैसे ही कालयवन को उसनें देखा …….आग की लपटें निकलीं उसके नेत्रों से …………..
कालयवन चिल्लाया….क्यों की वो जल रहा था…….उसकी चीखें गुफा से बाहर जा रही थीं……पक्षी भी फ़ड़फ़ड़ा कर उड़ गए थे …..और देखते ही देखते वो कालयवन जल कर भस्म हो गया…..राख पड़ी थी अब ।
देखा श्रीकृष्ण नें वो मुस्कुराते हुये बाहर निकले …..ये छुपे हुए थे पास में ही ……..इन्हीं की ये सब लीला थी ।
उस पुरुष नें देखा श्रीकृष्ण को …………..वो तो बस देखता ही रह गया ……फिर एकाएक चरणों में गिरा …….हे नाथ !
वो पुकार उठा …………..उद्धव बोले ।
पर ये था कौन ? उद्धव ! ये पुरुष उस गुफा में सो क्यों रहा था ?
और उसके जागते ही कालयवन भस्म कैसे हुआ ?
उद्धव ! इस पुरुष के विषय में कुछ बताओ …………
विदुर जी नें प्रश्न किया उद्धव से ।
उद्धव मुस्कुराये …..ये सूर्यवंशी राजा मान्धाता का पुत्र मुचुकुन्द था ।
शेष चरित्र कल –


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