श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! द्वारिकापुरी – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 8” !!
भाग 1
आओ देव शिल्पी ! हमें तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी ………..
श्रीकृष्ण उठ गए थे जब नभ से विश्वकर्मा उतरे ।
चरणों में वन्दन करके नीचे ही बैठ रहे थे विश्वकर्मा ………किन्तु …..
अरे नही विश्वकर्मा ! आप देवलोक के प्राणी हैं फिर देवताओं के शिल्पी भी तो हैं …………इतना आदर आपका होना ही चाहिये ……..श्रीकृष्णचन्द्र जु नें उठकर अपनें ही निकट बिठा लिया था उन्हें ।
आज्ञा नाथ ! परमभागवत हैं ये…….हाथ जोड़कर विनयपूर्वक प्रार्थना कर रहे थे ।
हे विश्वकर्मा ! तुम्हे एक पुरी का निर्माण करना है ।
नाथ ! स्थान बताइये ! विश्वकर्मा गदगद् स्वर में बोले ।
समुद्र के मध्य में एक पुरी का निर्माण करना है आपको…….उठकर खड़े हो गए थे श्रीकृष्ण ……तो विश्वकर्मा भी उठ गए और पीछे ही रहे ।
समुद के मध्य में ……..किन्तु विश्वकर्मा ! उसके बाहर एक कोट का निर्माण भी आवश्यक होगा ……….पुरी की सुरक्षा के लिये ।
उस कोट का निर्माण ऐसे करना कि बज्र हो या कोई अन्य शस्त्र उसका कोई प्रभाव भीतर न पड़े……..हे देवशिल्पी ! उस पुरी के मार्ग विस्तृत होनें चाहियें……..मध्य मध्य में वृक्षावली घनी हो…….भवन ऐसे हों ग्रीष्म में शीतल और शीत में ग्रीष्म का अनुभव कराये…….श्रीकृष्ण चन्द्र जु बोलते जा रहे थे …….और विश्वकर्मा गदगद् होकर उनकी हर बात को मानते जाते थे ।
हे विश्वकर्मा ! यादवों की सेना , उनके लिये विशेष सुरक्षापूर्ण भवनादि बनें………उनके शस्त्रागार सुरक्षित हों ….वहाँ तक कोई शत्रु पहुँचे नही……..इस तरह का निर्माण हो !
और हाँ ……….मन्दिर बनें …………विशाल मन्दिर ………..उस मन्दिर में विशेष पच्चीकारी हो ……………मणिमाणिक्य के स्तम्भ हों ……….मोतियों को खचा जाए विशेष मार्गों में ………….
इतना कहकर रुक गए थे श्रीकृष्णचन्द्र जु …………….
नाथ ! अगर आप आज्ञा दें तो सम्पूर्ण पुरी ही सुवर्ण की बना दूँ ।
सिर झुकाकर विश्वकर्मा नें कहा था ।
सुवर्ण की ? मुस्कुराये श्रीकृष्ण …….कहीं यही सुवर्ण तो मेरे यादवों के नाश का कारण नही बनेगा ? क्यों कि जहाँ सुवर्ण है वहीं कलि है …..और जहाँ कलि है वहाँ कलह है………..
अब लीलाधारी हैं आप तो लीला करेंगे ही ……..आपकी सब लीला ही होगी …..जो भी होगा ।
ठीक है विश्वकर्मा बनाओ मेरे लिये पुरी ………इतना कहते हुये श्रीकृष्णचन्द्र जु नें विश्वकर्मा के कन्धे में अपनें सुकोमल कर रखे थे ।
यहाँ क्या हो रहा है ?
बलराम जी उसी समय आगये थे महल में ।
मैने देवशिल्पी को बुलाया था दादा ! आप आगये अच्छा हुआ अब आप भी समझ लीजिये…….श्रीकृष्ण नें अपनें बड़े भाई को सारी बातें बता दी थीं ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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