श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! द्वारिकापुरी – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 8” !!
भाग 2
सिर झुकाकर विश्वकर्मा नें कहा था ।
सुवर्ण की ? मुस्कुराये श्रीकृष्ण …….कहीं यही सुवर्ण तो मेरे यादवों के नाश का कारण नही बनेगा ? क्यों कि जहाँ सुवर्ण है वहीं कलि है …..और जहाँ कलि है वहाँ कलह है………..
अब लीलाधारी हैं आप तो लीला करेंगे ही ……..आपकी सब लीला ही होगी …..जो भी होगा ।
ठीक है विश्वकर्मा बनाओ मेरे लिये पुरी ………इतना कहते हुये श्रीकृष्णचन्द्र जु नें विश्वकर्मा के कन्धे में अपनें सुकोमल कर रखे थे ।
यहाँ क्या हो रहा है ?
बलराम जी उसी समय आगये थे महल में ।
मैने देवशिल्पी को बुलाया था दादा ! आप आगये अच्छा हुआ अब आप भी समझ लीजिये…….श्रीकृष्ण नें अपनें बड़े भाई को सारी बातें बता दी थीं ।
मैं समझा नही …….हम मथुरा छोड़ रहे हैं ? किन्तु क्यों ?
सब छोड़ते ही जाना है दादा ! यहाँ कुछ भी स्थिर कहाँ है !
अब ये दार्शनिक वक्तव्य तो दो मत ………….बताओ ! मथुरा क्यों छोड़ रहे हैं हम ? और मथुरा छोड़ कर जायेंगे कहाँ ?
सुदामा के पास ……….श्रीकृष्ण मुस्कुराये ।
सुदामा के पास ? पहेली क्यों बुझा रहे हो कृष्ण ! स्पष्ट बताओ ।
यहाँ कुछ भी स्पष्ट नही है , जीवन में स्पष्ट जैसा क्या है दादा ?
वृन्दावन छोड़ना पड़ा …………..वो दुःख , वो पीड़ा अभी भी हृदय में शूल कि तरह चुभती रहती है ………वो मैया यशोदा ! सजल नयन हो रहे थे श्रीकृष्ण के ……..किन्तु वृन्दावन कि बात को आगे नही बढ़ाया श्रीकृष्ण नें……..कुछ देर के लिये चुप अवश्य हो गए थे ।
विश्वकर्मा ! आप जाइये और अपना कार्य प्रारम्भ कर दीजिये …..क्यों कि शीघ्र ही हम मथुरा छोड़कर वहीं नई पुरी में आने वाले हैं ।
जो आज्ञा नाथ ! विश्वकर्मा नें प्रणाम किया और चले गए थे वो ।
कृष्ण ! ये सब क्या है ? हम कहाँ जायेंगे अब ? और हम ही जायेंगे या समस्त मथुरावासी ?
बलराम जी कि बात सुनकर हंसे श्रीकृष्ण…..समस्त मथुरावासी दादा ! महाराज उग्रसेन और उनका सम्पूर्ण राज पाठ ……प्रजा सब जायेंगे मथुरा से ………………..
पर कब ? बलराम जी नें पूछा ।
बस देखते जाइए दादा ! अच्छा बताइये भाभी कैसी हैं ?
भाभी तो ठीक है …..पर मेरी बहु कब लाओगे कृष्ण ! ये तो बताओ…….बलभद्र जी को विनोद सूझा …….दादा ! आपकी बहु भी आएगी ………शीघ्र ही आयेगी …..पर उससे पहले पुरी का निर्माण तो हो जाए !
दोनों राम कृष्ण आपस ये सब चर्चा करते हुये खूब हंस रहे थे ।
तात ! अब मथुरा को छोड़कर जायेंगे श्रीकृष्ण बलराम और समस्त मथुरावासी ……द्वारिका का निर्माण विश्वकर्मा नें प्रारम्भ कर दिया था …..उद्धव बोले विदुर जी से ।
शेष चरित्र कल –


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