जय श्री कृष्ण
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व्रज – आषाढ़ शुक्ल द्वितीया / रथयात्रा.. मनोरथ
मनोरथात्मकरथे रथात्मात्मन् हरे मम l
श्रीकृष्णस्योपवेशार्थमधिवासं कुरु प्रभो ll
भावार्थ – हे प्रभु, मेरे मनोरथात्मक हृदयरुपी रथ में प्रभु श्रीकृष्ण के बिराजवे की योग्यता करने के लिये अधिवास करें
अथवा मेरे इस हृदयरुपी रथ में हे हरि (सर्वदुःख हर्ता) अधिवास (अधिकवास) करें.
हे कृष्ण, आपके लिये ही मनोरथात्मक रथ की भावना की है अतः आप इस रथ में बिराजकर मेरे भी मनोरथ पूर्ण करें जिस प्रकार आपने गोपीजनों के मनोरथ पूर्ण किये हैं.
हे प्रभु, आप बलरामजी एवं सुभद्रा बहन सहित मेरे हृदयरुपी रथ में आरूढ़ होकर मुझे भक्तिदान द्वारा इस संसार-सागर से उबारें अथवा भक्तिदान द्वारा संसार-सागर से मेरी रक्षा करें.


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