श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीकृष्ण का तिलकोत्सव – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 13” !!
भाग 1
उद्धव ! एक प्रश्न है इसका उत्तर तुम ही दे सकते हो ……..
विदुर जी नें उद्धव से कहा ……और प्रश्न किया …..चार प्रकार के विवाह होते हैं…..वैदिक विधि, गान्धर्व विधि, पिशाच विधि और राक्षस विधि…….श्रीकृष्ण नें राक्षस विधि से विवाह किया था ……..हे उद्धव ! वैसे तो श्रीकृष्ण चरित्र मनोमल को दूर करनें वाला है …..जीवन में मंगल प्रदान करनें वाला है …….फिर भी श्रीकृष्ण नें राक्षस विधि को क्यों स्वीकार किया ?
तात ! राक्षस से बचानें के लिये श्रीकृष्ण नें अगर राक्षस विधि का आश्रय लिया तो गलत क्या है ? उद्धव बोले ।
तात ! वैदिक विधि सम्भव नही थी …..क्यों की कन्या का भाई रुक्मी तैयार नही था …..तो वैदिक विधि कैसे सम्भव होती …. … …गान्धर्व विधि भी ये थी नही ……क्यों की दोनों नें एकांतिक विवाह किया नही ………पिशाच विधि में कन्या भाग जाती है ……..ऐसा भी इसमें हुआ नही था …….किन्तु राक्षस विधि से विवाह हुआ ……वो इसलिये कि अगर श्रीकृष्ण ऐसा नही करते तो रुक्मणी राक्षसी स्वभाव वाले शिशुपाल के साथ चली जातीं ……..श्रीकृष्ण नें तो रक्षा की रुक्मणी की…..किसी राजकन्या को राक्षस प्रवृत्ति वाले से बचानें के लिये श्रीकृष्ण नें अगर राक्षस विधि को अपनाया तो गलत क्या किया तात !………उद्धव मुस्कुराते हुये बोले थे ।
तात ! अब सुनो उस मधुर प्रसंग को …….जिसमें श्रीकृष्ण नें रुक्मणी का हरण किया विदर्भ में जाकर ।
उद्धव अब उस प्रसंग को बड़े प्रेम से सुनानें लगे थे ।
ब्राह्मण देवता नें हाथ जोड़कर कहा ……..आपको पत्र मिल गया है द्वारिकाधीश ! ….अब मैं जाता हूँ विदर्भ …….किन्तु आपको आज ही पहुँचना है वहाँ …..हे प्रभो ! आप कैसे आज ही पहुँचोगे ये आप ही समझें !
क्यों की आज ही शिशुपाल भी पहुँचनें वाला है और उसका तिलक होगा …….आप उससे पूर्व पहुँच सकें तभी रुक्मणी आपकी होंगीं , ब्राह्मण बोले । …..तो श्रीकृष्ण नें ब्राह्मण के हाथ पकड़े …..और बड़े प्रेम से कहा …..रुक्मणी तो मेरी हो गयी है ………..हे विप्र ! अब चलिये ……..श्रीकृष्ण अपनें रथ के पास ले गए ब्राह्मण को …. ..अपनें चार अश्व उसमें लगवाये ……….जो वायु के समान दौड़नें वाले थे …
श्रीकृष्ण बैठे सारथि के स्थान पर और ब्राह्मण को बैठाकर रथ की लगाम खींचनें ही वाले थे कि …………..
कृष्ण ! कहाँ जा रहे हो ? लो ! बड़े भाई बलराम जी आगये ।
श्रीकृष्ण शरमाते हुये बोले ………..विदर्भ !
विदर्भ ? वहाँ तो स्वयंवर है ….किन्तु हमें निमन्त्रण नही दिया भीष्मक राजा नें ………..
रुक्मणी नें दिया है निमन्त्रण ! श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये बोले ।
रुक्मणी ! ओह ! तो मेरा भाई बड़ा हो गया है …….बलराम जी मुस्कुराये ।
जाओ ! मैं आरहा हूँ पीछे सेना लेकर ……बलभद्र बोले ……..और श्रीकृष्ण नें रथ की लगाम खींची ………अश्व तो दौड़े नही मानों उड़ रहे थे ……द्वारिका से मात्र दो घड़ी में विर्दभ पहुँच गए थे श्रीकृष्ण …..ब्राह्मण देवता को भेज दिया और कहा…….आप जाओ और रुक्मणी को सूचना दे दो कि मैं आगया हूँ ….ब्राह्मण आनन्दित होते हुये रुक्मणी के महल की ओर चल पड़े थे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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