ऐसे तो हरेक जीव पूर्व संचित कर्मो के प्रारब्ध स्वरूप अगला जन्म धारण करता है और नए कर्मोंसे आगे की यात्रा करता है । कर्म करने केलिए मनुष्य स्वतंत्र है । पर एक शक्ति है जो जीवको सद्कर्म करने और आगे की यात्रा सफल बनाने केलिए हमेशा मार्ग दिखाकर सही रास्ते पर रखती है ,वो है कुलदेवी ओर इष्टदेव। किसी भी कुलमे आत्मा उनकी अनुमति के बाद ही जन्म ले सकता है और उनकी सदैव कृपा रहती है । जिस ऋषि गोत्र के पूर्वजोने वंशवृद्धि ओर उन्नति केलिए जिस पारलौकिक शक्ति को पूजा हो वो पीढ़ी दर पीढ़ी खुनमे सदैव वास करती है । वैज्ञानिक पद्धति से समझना है तो हमारे खुनमे जो रक्तकण ( रेड सेल ) है वो गणपति ( इष्टदेव ) है और जो स्वेतकण ( व्हाइट सेल ) है वो कुलदेवी है । इसलिए ही किसी भी पूजा विधान में कुलदेवता भ्यो नमः कर उनका आवाहन पूजन होता है और पूजा पूर्ण होने पर बाकी देवताओ को यथा स्थान बिदाई ( कुलदेवी ओर गणपति रहित ) की जाती है। क्योंकि कुलदेवी ओर गणपति ( इष्टदेव ) ही जीवाडोरी है ।
कुलदेवी ओर इष्टदेव तो परा शक्ति ही है किंतु आपका रक्षण ,पोषण,उन्नति केलिए आपने आपके रदयमे उन शक्तिओ को कितना जागृत किया है उन पर कृपा आधार है उनकी कृपा का । कही परिवारों में कुछलोग बहोत सुखी संम्पन होते है कुछलोग कष्ट पीड़ा भुगत रहे होते है ,क्योंकि उनके रदयमे ये शक्तिया सुषुप्त होती है। नित्य पूजा ,नाम स्मरण , हविष्य होम ओर अन्य कुलपरंपरा की पूजा पद्धति से आप उनको अपने शरीरमे जितना जाग्रत ( प्रसन्न ) करसकते है इतना वो आप केलिए फलदायी हो सकती है । ये निर्विवाद सत्य है ।
तंत्र ,मंत्र , यंत्र , पूजा ,अनुष्ठान तब ही सफल होता है जब रदयस्थ शक्ति की प्रसन्नता हो । साधुओ को दीक्षा से पहले सद्गुरु द्वारा प्रथम ही कुलदेवी इष्टदेव की उपासना ओर उनकी अनुमति लेकर ही दीक्षा दी जाती है । हरेक उच्च क्रम की उपासना देव देवी तब ही प्रसन्न होकर आपको वरदायी हो सकते है ,जब आपके अंदर की शक्ति ( कुलदेवी-इष्टदेव) प्रसन्न हो । वरना खुद ब्रह्म भी आपको कोई फल नही दे सकते ये प्रकृति का नियम गीताजी में समजाया है ।
समस्त ब्रह्माण्ड जिससे चालयमान है वह है शिव , और जो स्वयं शिव को चालयमान बनाती है वह है उनकी शक्ति, आदिशक्ति । बिना आदिशक्ति के शिव भी अचल है। वह शक्ति ही है जो शिव को परिपूर्ण करती है । यह आदिशक्ति भिन्न भिन्न रूपों में ब्रह्माण्ड की समस्त सजीव और निर्जीव वस्तुओं में विद्यमान है। यही शक्ति देवताओं में, असुरों में , यक्षों में , मनुष्यों में, वनस्पतियों में, जल में थल में , संसार के प्रत्येक पदार्थ में भिन्न भिन्न मात्रा में उपस्थित है। और देवताओं की शक्ति को हम उन देवो के नामों से जानते है जैसे – महेश्वर की शक्ति माहेश्वरी , विष्णु की शक्ति वैष्णवी , ब्रह्मा की शक्ति ब्रह्माणी , इंद्र की इंद्राणी , कुमार कार्तिकेय की कौमारी , इसी प्रकार हम देवों की शक्तियों को उन्ही के नाम से पूजते हैं। और यही शक्ति जब मानवों में उन्नत अवस्था में होती है तब वे मानव भी पूजनीय होते है.. जैसे राम , कृष्ण , बुद्ध इत्यादि। कुछ अन्य उदाहरणों में जिन मानवों को देवतुल्य माना गया है वे है रामदेवजी, गोगाजी , पाबू जी देवी करणी जी, जीण माता इत्यादि। जब अपने परिवार को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त करने के लिए इन देवताओं की शक्तियों और देवतुल्य मानवों की पूजा करना वंश परम्परा बन गया तब वे शक्तियां तथा मानव उन वंशो के कुलदेवी या कुलदेवता बने।
हिन्दू पारिवारिक व्यवस्था में कुलदेवता या कुलदेवी का स्थान हमेशा से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी न किसी ऋषि के वंशज है जिनसे हमें उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णो में हो गया जो बाद में उनकी विषेशता बन गया और वही कर्म उनकी पहचान बन गई और इसे जाति कहा जाने लगा।
हमारे पूर्वजो ने अपने वंश- परिवार की नकारात्मक उर्जाओ और उनसे उत्पन्न बाधाओं से रक्षा करने के लिए एक पारलौकिक शक्ति का कुलदेवी के रूप में पूजन किया और उन्हें पूजना शुरू किया। यह शक्ति उस वंश की उन्नति में नकारात्मक ऊर्जा को बाधाएं और विघ्न उत्पन करने से रोकती थी। और उस कुलदेवी का पूजन उस वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा बन गया।
हमारे सुरक्षा आवरण हैं कुलदेवी / कुलदेवता
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता अगर कुलदेवी ओर इष्टदेवकी प्रसन्नता न हो , क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त ( मतलब आपके रदय में जाग्रत नही होना )होने से होता है।
कुलदेवी की उपेक्षा अथवा भूलने के कारण-
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, विजातीयता पनपने, इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया ।
क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ?
कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती। कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं,
व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है। कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है। शादी-विवाह संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। जिन नकारात्मक शक्तियों को कुलदेवी रोके रखती हैं, सुरक्षा चक्र के अभाव में वे सभी शक्तियां घर में प्रवेश कर परेशानियां उत्पन्न करती हैं। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति परिवार को अपने कुलदेवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा-उन्नति होती रहे । यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं
किसी योग्य विद्धवान ब्राह्मण से मिलकर कुलदेवी प्रसन्ता केलिए पूजा ,अनुष्ठान ,होम हवन बिगैरे कर्म करे ताकि उनकी जागृति हो । तीर्थ स्थानों में जाकर पंडितो से मिलने और उनके पास आपके जो पूर्वजो की किताबें होती है वो आपके वंश के तीर्थ ब्राह्मण भी बता सकते है आपकी कुलदेवी ओर इष्टदेव कोन है । आपकी जाती शाख के अन्य लोगो से भी ये जानकारी मिल सकती है । और सबसे महत्वपूर्ण जब आप रदयस्थ भाव से जय कुलदेवी नाम स्मरण शुरू करेंगे तो वो आपके अंदर ही है ,उनकी जागृति अवश्य होती है और किसी न किसी रास्ते आपको उनकी सारी जानकारी वो ही दिला देती है।
गर कुलदेवी ओर इष्ट प्रसन्न न ही तो भगवान भी आपको फलदायी होनेमें असमर्थ है ,क्योंकि वो उनका ही स्वरूप है ।
आप सभी के रदय में विराजमान कुलदेवी स्वरूपा महात्रिपुर सुंदरी को कोटि कोटि वंदन सह अस्तु ..श्री मात्रेय नम
जय हो जय
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