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जय श्री कृष्ण
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मार्ग की गहराई। what is our marg depth????
महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी के आचार्यत्व की गरिमा को अपन एक बार गहराई से निहारें तो ग्यात होगा कि,आचार्यश्री ने किस शाश्वत सोच के आधार पर पुष्टिसम्प्रदाय की नींव रखी है.
हमें काल की गरज नहीं है,देश की गरज नहीं है,मन्त्र की गरज नहीं है,द्रव्य की गरज नहीं है,कर्ता की गरज नहीं है ,कर्म की गरज नहीं है, फिर भी श्रीकृष्ण की शरणागति, श्रीकृष्ण को आश्रय हमें प्राप्त हो सके है...
यदि हमें वैभव प्राप्त है तो सेठ पुरूषोत्तमदासजी की तरह ५२ बीड़ा को नेग ठाकुरजी को बांध सके हैं,यदि हम अकिंचन है तो पद्मनाभदासजी की तरह छोला,भीगी हुई बाजरी भी प्रभू को भोग धर सके हैं.
हमें किसी पुजारी,पंडा को दर्शन के लिए रिश्वत देने की जरूरत नहीं है( श्रीनाथजी के मंदिर में वीआईपी दर्शन के १०० रूं मांगने पर मांगने वाला गिरफ्दार,दै.भा.७ जून २०१५)हमें किसी समाज या संस्था की दरकार नहीं है,
ना किस अट्टालिका,मठ या आश्रम की.गृहस्थ हों तो घर में सेवा कर सकते है,विरक्त हों तो जहां रहे वहां झांपी में सेवा कर सकते हैं,यहां तक कि दारागार अनुकूल न हो तो शून्य देवालय में अपनी निधि को पधराकर सेवा कर सकते हैं.
सामर्थ्य होतो सोने के हिंडोरा,ना हो तो वस्त्र के टूक में प्रभू को झुला सके हैं,महाप्रभूजीने एसो ठाकुर पधरायो है,जो हाथ में डोल झूलकर आनन्दित हो सके है.हम अव्यावृत हों तो सेवा कथा कर सके हैं,व्यावृत हों तो कथा का अवलंबन कर सके हैं.
महाप्रभूजीने ये सब काल्पनिक धरातल पर प्रतिपादित नहीं किया. व्यवहार के ठोस धरातल पर यह मार्ग प्रशस्त किया है.हमारे सामने प्रमाण है कि, दिनकरदासजी जैसे कितनेक भगवदीयों ने केवल कथापक्ष को अपना कर पुष्टिप्रभू को रिझाया है,तो वो हम पर भी रीझेगो,रीझेगो और रीझेगो ही...
वल्लभके लाडलों ! आओ, आज एसे विलक्षण,मार्ग के प्रवर्तक, आचार्य श्रीवल्लभ को केवल इसी भाव से सर्वात्मना नमन करें.


Author: admin
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