!! जाम्बवती परिणय – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 21” !!
भाग 1
गुफा में प्रवेश करते ही श्रीकृष्ण नें देखा चारों और घना अन्धकार है …….और साथ में कोई आ भी नही रहा ………स्वयं ही देखते हुये बड़ी सावधानी से बढ़ते जा रहे थे…….पर कुछ ही समय बाद गुफा के भीतर एक बड़ा साम्राज्य दिखाई दिया……..मणि माणिक्य से भरा हुआ जगमगाता एक राज्य ! ओह ! जामवन्त नें भीतर ही इतना सब कुछ कर लिया था……..सरोवर, पर्वत, बाग़ बगीचे सब थे गुफा के भीतर …….श्रीकृष्ण देखते हुए आगे बढ़ रहे हैं……तभी उन्हें एक जगमगाता महल दिखाई दिया……उसी महल से प्रकाश छिटक रहा था ।
ये प्रकाश तो स्यमन्तक मणि का है …….श्रीकृष्ण समझ गए थे ।
वो आगे बढे ……..तो देखा एक कन्या , सुन्दरी कन्या ……..बैठी हुयी है और स्यमन्तक मणि से खेल रही है ……….हाँ, जामवन्त नें ही लाकर उसे ये मणि दी थी…….अपनी लाड़ली को खेलनें के लिये ।
श्रीकृष्ण आगे बढे ……..और उस कन्या के सामनें जाकर खड़े हो गए ।
कन्या का ध्यान श्रीकृष्ण पर अभी नही गया था वो खेल ही रही थी मणि से …………कुछ देर खड़े रहे श्रीकृष्ण फिर आगे बढ़कर बोले –
मणि मुझे दे दो…….कन्या नें ऊपर देखा ….श्रीकृष्ण को देखा …..तो वह एकाएक मानव को अपनें राज्य में देखकर भयभीत हो गयी और चिल्लाई …….दास दासी बहुत थे वहाँ सब दौड़े अपनी राजकुमारी की पुकार पर……श्रीकृष्ण अभी भी उस कन्या से मणि ही माँग रहे थे …..चिल्लाती क्यों हो मणि ही तो माँग रहा हूँ…..श्रीकृष्ण बोल रहे थे ।
तभी पीछे से जामवन्त आया और श्रीकृष्ण को अपनी ओर घुमाकर वक्ष पर एक मुष्टिक का प्रहार किया ……ये वही प्रहार था जो एक बार त्रेतायुग में लंकापति रावण के ऊपर किया था पर वो सहन कहाँ कर सका ….मूर्छित हो गया उसका सारथि उसे ले गया था ।
ये बात सोचनी चाहिये थी जामवन्त को कि मेरे मुष्टिक के प्रहार से तनिक भी विचलित नही हुए ये ….तो ये साधारण नही है …….किन्तु क्रोध में व्यक्ति का विवेक समाप्त ही हो जाता है ……..वही हुआ था ।
श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहे ………….जामवन्त नें फिर प्रहार किया ये दूसरी बार था ……….हाँ इस बार श्रीकृष्ण थोड़े लड़खड़ाये ……पर सम्भल कर श्रीकृष्ण नें प्रहार किया ………दूर जाकर गिरा जामवन्त ।
वो फिर उठा और अपनी गदा लेकर दौड़ा श्रीकृष्ण के ऊपर …….पर श्रीकृष्ण वहाँ से हट गए थे …..गदा का प्रहार उसका व्यर्थ गया था ।
वो इस बात से और क्रोधित हो उठा …… चिल्लाते हुये फिर मारनें के लिए दौड़ा ………….पर इस बार श्रीकृष्ण नें उसके हाथों को फुर्ती से पकड़ कर उसे पछाड़ दिया …………इतनी जल्दी वो हार कहाँ मानता ………..ये युद्ध चलता रहा ….चलता रहा………
तात ! एक दिन नही …….दो दिन नही …….28 दिन तक ये युद्ध चला ।
टूट गया था जामवन्त ……..उसकी हड्डियाँ अब बोलनें लगीं थीं ……वो थक गया था………पर ये अब उसका अंतिम वार था ।
मुष्टिक मारी थी उन कमलनयन के वक्षस्थल में ……….पर इस बार मुष्टिक मारकर वो दूर जाकर गिरा ……. श्रीकृष्ण के वक्षस्थल की पीताम्बरी हट गयी थी ओह ! मेरे आराध्य ! जामवन्त के नेत्र सजल हो उठे थे ………मेरे रघुनाथ जी !
वो साष्टांग गिर गया चरणों में श्रीकृष्ण के ।
क्रमशः….
शेष चरित्र कल –


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