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September 13, 2025 10:03 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जाम्बवती परिणय – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 21” !!-भाग 2: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जाम्बवती परिणय – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 21” !!-भाग 2: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! जाम्बवती परिणय – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 21” !!

भाग 2

वो फिर उठा और अपनी गदा लेकर दौड़ा श्रीकृष्ण के ऊपर …….पर श्रीकृष्ण वहाँ से हट गए थे …..गदा का प्रहार उसका व्यर्थ गया था ।

वो इस बात से और क्रोधित हो उठा …… चिल्लाते हुये फिर मारनें के लिए दौड़ा ………….पर इस बार श्रीकृष्ण नें उसके हाथों को फुर्ती से पकड़ कर उसे पछाड़ दिया …………इतनी जल्दी वो हार कहाँ मानता ………..ये युद्ध चलता रहा ….चलता रहा………

तात ! एक दिन नही …….दो दिन नही …….28 दिन तक ये युद्ध चला ।

टूट गया था जामवन्त ……..उसकी हड्डियाँ अब बोलनें लगीं थीं ……वो थक गया था………पर ये अब उसका अंतिम वार था ।

मुष्टिक मारी थी उन कमलनयन के वक्षस्थल में ……….पर इस बार मुष्टिक मारकर वो दूर जाकर गिरा ……. श्रीकृष्ण के वक्षस्थल की पीताम्बरी हट गयी थी ओह ! मेरे आराध्य ! जामवन्त के नेत्र सजल हो उठे थे ………मेरे रघुनाथ जी !

वो साष्टांग गिर गया चरणों में श्रीकृष्ण के ।

मैं अपराधी ! मैं पापी ! अपनें ही आराध्य से लड़नें लग गया ।

श्रीकृष्ण मुस्कुराये………बस मुस्कुराये ।

नही नाथ ! नही………मेरे श्रीरघुनाथ जी की छबि में ही मुझे दर्शन दीजिये ना ! जामवन्त विनती करनें लगा ……तभी देखते ही देखते …..लोकाभिराम श्रीराम का स्वरूप श्रीकृष्ण में दिखाई देंने लगा ।

जामवन्त आनन्दित हो उठा ………..पर नाथ ! युद्ध क्यों ? अपनें भक्त से भगवान युद्ध क्यों करे ?

हे जामवन्त ! स्मरण करो …….रामराज्याभिषेक के अवसर पर तुमनें मुझ से वरदान माँगा था – युद्ध का ………..इसलिये मुझे तुम्हारी इस अभिलाषा को भी पूरी करनी ही पड़ी ।

जामवन्त गदगद् है………नयन उसके तृप्त नही हो रहे अपनें आराध्य के दर्शन करते हुए ……..तभी – पिता जी ! पीछे से जामवन्त की पुत्री आकर खड़ी हो गई थी और भुवन सुन्दर को निहार रही थी ।

ओह ! मेरे नाथ ………ये मेरी पुत्री है ………जाम्बवती इसका नाम है …………..अब इसका हाथ आपही सम्भालो ! जाम्बवती का हाथ उसी समय श्रीकृष्ण के हाथों में दे दिया था जामवन्त नें ………..शरमा रही थीं जाम्बवती ।

और हाँ, ये स्यमन्तक मणि आपके चरणों में ………जामवन्त नें वो मणि भी भगवान को सौंप दी ……………..भगवान नें जाम्बवती को स्वीकार किया और मणि लेकर भक्ति और प्रेम का वर देते हुये द्वारिका में लौट आये थे ……………..।

तात ! ये जाम्बवती श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी थीं……..उद्धव बोले तो विदुर जी मुस्कराये …………….हे उद्धव ! तुम इतनी मधुर भगवत्कथा सुना रहे हो ………..तुम श्रीकृष्ण के सदैव प्रिय बने रहो ……..गदगद् होकर उद्धव के प्रति विदुर जी बारम्बार यही कह रहे थे ।

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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