श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मणि का कलंक – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 23” !!
भाग 2
श्रीकृष्ण बिना द्वारिका आये मिथिला के लिये वहीं से चल दिए थे ।
शतधन्वा जहाँ था रथ वहीं रुका …..श्रीकृष्ण को शतधन्वा नें देखा तो वो भागनें लगा ……..पर श्रीकृष्ण से वो कहाँ भाग पाता ……….एक मुष्टिक के प्रहार से ही श्रीकृष्ण नें शतधन्वा का वध कर दिया ……..किन्तु !
दादा ! मणि कहाँ है ? शतधन्वा के मृत देह को टटोला श्रीकृष्ण नें ……उन्हें मणि नही मिली……तो बलभद्र की ओर देखकर वो बोले थे ।
क्यों लीला कर रहे हो ! मुझ से लीला ?
बलराम व्यंग में बोले थे ।
चौंक गए श्रीकृष्ण …..बलराम की ओर देखा …………..
तुम्हारे पास ही है मणि ………..चलो अब द्वारिका !
बलराम की बात सुनकर श्रीकृष्ण दुःखी हो गए …..ओह ! मेरे बड़े भाई को आज मेरे ऊपर विश्वास नही है ।
सब समझते हैं श्रीकृष्ण …….अर्थ अनर्थ का कारण है ……….आज बलराम को कृष्ण के ऊपर विश्वास नही हो रहा ।
उद्धव ! पता करो अक्रूर कहाँ हैं ? मुझ से श्रीकृष्ण नें पूछा ।
मैने गुप्तचरों से पता लगवाया ……..और श्रीकृष्ण को कहा …..
प्रभो ! वो भी मिथिला में ही हैं ……..और हाँ, यज्ञ बहुत कर रहे हैं ब्राह्मणों को दान दे देकर उस क्षेत्र को स्वर्ण से भर दिया है ।
इतनी सम्पत्ती कहाँ से आयी अक्रूर के पास ? श्रीकृष्ण नें मुझ से पूछा ।
तो मैने यही कहा …….आप मिथिला में ही हैं आप जाकर मिल लीजिये अक्रूर से !
नही , मैं द्वारिका आरहा हूँ ………..इतना कहकर श्रीकृष्ण द्वारिका कुछेक दिनों में पहुँच गए थे ……अपनें ससुर सत्राजित का संस्कार करवाया बाकी सब कर्म विधि से करवाये ……..जब सारे कर्मकाण्ड सम्पन्न हो गए ………तब – उद्धव ! अक्रूर को मिथिला से बुलवाओ ।
मैने चर भेजे ……और अक्रूर को बुलवाया ……..अक्रूर मान नही रहे थे मैने श्रीकृष्ण का नाम लिया तब वो आये द्वारिका ।
सभा लगी है …..द्वारिका के समस्त सभासद गण मान्य वहाँ उपस्थित थे ………श्रीकृष्ण नें बलराम को भी अपनें साथ रखा ।
आओ काका ! जब सभा में अक्रूर नें प्रवेश किया तो उठकर श्रीकृष्ण नें उनका स्वागत किया ।
अक्रूर कुछ नही बोले ……बस मुस्कुराये ।
काका ! बहुत यज्ञ कर रहे हो ? व्यंग को अक्रूर समझ गए थे ।
काका ! सुवर्ण की थाल में ब्राह्मण भोजन करते हैं ….और वो थाल ले जाते हैं अपनें साथ !
हाँ, थोड़े घबड़ाये अक्रूर ! वो , वो मेरे पास सुवर्ण था तो यज्ञ में मैने लगा दिया ….अक्रूर जैसे तैसे इतना ही बोल सके ।
आँखों में आँखें डालकर श्रीकृष्ण नें अक्रूर से कहा ………नाटक बन्द करो काका ! मणि दे दो …..नही तो आपको पता है मुझे मणि निकालनी आती है ……….श्रीकृष्ण के इतना कहते ही मणि दे दी अक्रूर नें ।
बलराम लज्जित हुए ……..दादा ! मेरे ऊपर आपको विश्वास नही हुआ ?
बलराम सिर झुकाये खड़े रहे ……….कुछ नही बोले ।
अक्रूर ! मणि तुम ही रखो …..ये मणि अच्छी नही है……कलंक ही दे रही है ये तो ……..अक्रूर खुश हुये …….पर श्रीकृष्ण नें भरी सभा में कहा …मणि आप रखोगे …..पर मणि का जितना सुवर्ण होगा वो नित्य तौल कर द्वारिका के राजकोष में जमा कराना पड़ेगा ……अगर नही किया तो आप को दण्डित किया जायेगा ……..श्रीकृष्ण नें अपना निर्णय सुना दिया था ……अक्रूर क्या करते ! उन्हें बात माननी ही पड़ी ।
उद्धव बोले विदुर जी से – तात ! अर्थ अनर्थ का कारण है ।
शेष चरित्र कल –
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