श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालिन्दी विवाह – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 24” !!
भाग 1
महारानी कालिन्दी !
द्वारिकाधीश नई वधू लाये हैं ……..ये नाम है उनका – “कालिन्दी”। सत्यभामा नें जाकर रुक्मणी और जाम्बवती से ये बात कही ।
कैसी है ? स्त्री स्वभाववश रुक्मणी जी नें भी पूछ लिया ।
अपनें नाथ की तरह है ……..श्याम वर्ण है ……..पीत वस्त्र में अच्छी लग रही है ……प्रसन्न मुख मुद्रा है …….सत्यभामा बस बोले जा रही थीं ।
पर तुमनें कहाँ देखा ? जाम्बवती नें पूछा ।
अट्टलिका से , आप भी देख लो …….सत्यभामा की बात मानकर रुक्मणी आदि सब अट्टालिका में गयीं …………
दिव्य शहनाई की गूँज हो रही थी …………कालिन्दी के साथ साथ द्वारिकाधीश चल रहे थे …….मन्द गति से ………पुष्पों की वर्षा से पथ दिव्य लग रहे थे ……………
कैसी है ? नयन मटकाते हुये रुक्मणी जी से सत्यभामा नें पूछा ।
सुन्दर है …….पर धरती में पांव बड़े सम्भल कर रख रही है ………क्या धरती में इन्हें चलना नही आता !
“सूर्य की पुत्री है”… …..सत्यभामा नें कहा ।
क्या ! रुक्मणी जी के सहित जाम्बवती भी चौंकी ।
तुझे बड़ी खबर रहती हर बात की ? जाम्बवती नें सत्यभामा को छेड़ा ।
रखनी पड़ती है ……..अब जीजी रुक्मणी को तो कोई मतलब नही है ……….आप भी निश्चिन्त हो …..पर मुझे तनाव बना रहता है ।
आज पूरे एक वर्ष में लौट कर आरहे हैं द्वारिकाधीश…द्वारिका…… …..हस्तिनापुर गए और पता है जीजी ! मुझे तो चिन्ता थी कि कहीं द्रोपदी से व्याह न कर लें…..उसके स्वयंवर में भी तो गए थे ये…….पर ……अर्जुन के साथ उसका व्याह करवा दिया ……हे भगवान ! ये बहुत अच्छा किया ।
सत्यभामा बोलती बहुत हैं……..
क्या आप सूर्य पुत्री हो ?
कालिन्दी जब महल में आगयीं……तब स्वागत के लिये ये तीनों रानियाँ वहाँ पहुँच गयीं थीं…..जलपान आदि करके जब बैठीं और परिचय हुआ सबका आपस में……..तब सत्यभामा नें प्रथम प्रश्न यही किया था ।
हाँ, कालिन्दी नें सिर हिलाया – मैं सूर्य पुत्री हूँ ।
फिर कैसे द्वारिकाधीश से मिलना हुआ ……….और सम्बन्ध कैसे जुड़ा ।
सत्यभामा कुछ भी पूछ लेती हैं……….थोडा चंचल स्वभाव है ।
शरमा कर कालिन्दी नें अपनें विवाह के बारे में बताया ।
सूर्य मेरे पिता है ………यमराज मेरे भाई हैं हाँ, भाई तो मेरे शनि देव भी हैं पर मेरा संग उनसे ज्यादा नही हुआ …….क्यों की पिता जी नें उन्हें अपनें से दूर कर दिया था ………..हाँ, यमराज भैया की मैं लाड़ली बहन बनी रही ……..मैं अपनें पिता की भी लाड़ली थी ।
मुझे श्याम रंग प्रिय है………मैं विवाह करूंगी तो श्याम सुन्दर से ।
एक दिन मैने भी कह दिया ।
श्याम सुन्दर ? मेरे पिता और भैया चौंक गए…..
हाँ गोलोक बिहारी श्याम सुन्दर ।
पर वो कैसे मिलेंगे तुम्हे ? भैया यमराज नें कहा ।
क्यों ? तप करूंगी मैं ! मैने भी कह दिया था ।
ओह ! तप के लिये तो तुम्हे पृथ्वी में जाना पड़ेगा ……….क्यों की ऊपर के लोकों में तप का फल मिलता नही है ।
बहन ! अगर सच में तुम श्याम सुन्दर को वर के रूप में पाना चाहती हो तो पृथ्वी में जाओ ……….द्वापर में श्याम सुन्दर गोलोक से अवतार लेकर पृथ्वी में जानें वाले हैं ……वहीं तप करना और जल के रूप में प्रवाहित होती रहना ………..।
फिर ?
इतना कहकर कालिन्दी जब रुकीं तब सत्यभामा नें अपनें कपोल में हाथ रखकर पूछा …….फिर ?
फिर ……..मैं कलिन्द नामक पर्वत में उतरी थी ……वहाँ से जल के रूप बहती हुयी चली ……………….
मैं जब पृथ्वी में आयी थी तो वो दिन था कार्तिक शुक्ल द्वितीया ……..मेरा पृथ्वी में आना और मेरे भैया यमराज का भी मुझ से मिलनें आना ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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