अमेरिका में जब रेलवे ट्रैक का विस्तार हुआ।
तब कई रेल कंपनियों में रेलवे ट्रैक बिछाकर खूब सारी ट्रेन चला कर पैसे कमाने की होड़ मच गई लेकिन पूर्वी अमेरिका को पश्चिम अमेरिका को जोड़ते समय बीच में एक बेहद विशाल समुद्र जैसी झील थी जो अमेरिका की सबसे बड़ी झील है जिसका नाम द ग्रेट साल्ट लेक है।
बड़े-बड़े इंजीनियर के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी।
इस झील के आर पार रेलवे ट्रैक कैसे बिछाया जाए। यूनियन पेसिफिक की टीम में एक इंजीनियर था जिसने रामायण पढ़ी थी और उसे रामसेतु के बारे में जानकारी थी वह भारत आया और राम सेतु का अध्ययन किया
तब उसके दिमाग की घंटी बज गई और उसने यह पता लगा लिया कि यदि हम झील में एकदम सीधी रेलवे लाइन बिछाएंगे तब यह रेलवे ट्रैक लहरों से टूट सकता है और उसने ठीक रामसेतु के डिजाइन पर अपना रेलवे ट्रैक बनाया जो पिछले 60 सालों से अमेरिका में वही का वही खड़ा है और सेवा दे रहा है।
दरअसल जहां पर पानी लहरदार होती है वहां जिग जेग डिजाइन से ही स्टेबिलिटी मिलती है और रामसेतू रचना मुनिन्द्र ऋषि की कृपा से हुयी।
जो नल नील के पुज्य गुरूदेव थे ।
आख़िर वैज्ञानिकों ने भी माना कि राम सेतु मानवनिर्मित है ना कि कोई प्राकृतिक संरचना
रामसेतु को लेकर भारत में सदियों से ये मान्यता है कि भारत के धनुषकोड़ी से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लगभग 30 मील लम्बा पुल समुद्र के आर पार बनाया गया श्री राम की वानर सेना द्वारा लंका में चढ़ाई करने के लिए. किंतु पश्चिमी देश जो कि भारत के इतिहास को मात्र एक पौराणिक कथा (mythology) मानते है, उनके लिए इस तथ्य को स्वीकार करना अभी बाकी था.
11 दिसम्बर सन 2017 में अमेरिकी साइयन्स चैनल ने अपने अफ़िशल ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया “ क्या प्राचीन हिंदू मिथक के अनुसार भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला समुद्र में बनाया गया पुल एक सत्य है ? वैज्ञानिक विश्लेषण से इसका पता चलता है कि, ये है “ इसके बाद science चैनल ने इससे सम्बंधित एक video documentary भी जारी की.
डॉक्युमेंटरी के अनुसार प्रख्यात भूगर्भ वैज्ञानिक डॉक्टर ऐलन लेस्टर ने भी इस बात को माना कि हिंदूओं के आराध्य भगवान राम ने इस पुल का निर्माण करवाया. एक अन्य विश्लेषक ने NASA से ली गयी सैटलायट चित्र के आधार पर बताया कि ये एक रेत की दीवार पर रखी गयी चट्टानो की एक शृंखला है , रेत की दीवार (आधार) एक प्राकृतिक संरचना है किंतु उसके उपर रखी गयी चट्टाने मानव निर्मित है.
प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता चेलसी रोज़ ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा की वेज्ञानिको ने जब तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इन चट्टानो और रेत कि उम्र का पता किया तो मालूम हुआ कि चट्टानो की उम्र लगभग 7000 वर्ष पुरानी है जबकि इसके नीचे की रेत लगभग 4000 वर्ष पुरानी है जो कि एक बहुत बड़ा पहलू है जो दर्शाता है कि ये पुल प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवनिर्मित है. यानी पहले पुल बना और उसके 3000 सालों के बाद इसके नीचे प्राकृतिक रूप से रेत की दीवार बनी. वैज्ञानिको ने माना कि उस काल में समुद्र पर ऐसा तैरने वाला पुल बनाना एक अलौकिक उपलब्धि थी.
भारत के भूगर्भ विभाग GSI के तीन पूर्व Director General ने अपनी एक रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की और माना कि समुद्र के बीचोंबीच मूँगे की प्राकृतिक चट्टाने नहीं बन सकतीं बाद में इस रिपोर्ट को अदालत ने भी संदर्भ के लिए इस्तेमाल किया.
हैरानी की बात ये है की हमारे देश में ही श्री राम के अस्तित्व को लेकर विरोधाभास है जबकि पश्चिमी देश अब इस पर वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर विश्वास करने लगे है पृथ्वी ग्रह पर ऐसी संरचना बनायी जो हज़ारों वर्ष बाद आज भी अंतरिक्ष से देखी जा सकती है…
हमारी सनातन व्यवस्था का महात्म्य है कि राम सेतु के निर्माणकर्ता आज भी पूजे जाते हैं।
जय श्री राम 🙏🙏🙏
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