—– राधा कृष्ण की प्रथम मुलाकात (श्री सूरदास जी के सब्दमें) —–
एक बार भगवान श्री कृष्ण ब्रज गलियों में खेल रहे थे।
भगवान बाल कृष्ण का रूप अत्यंत सुंदर है, कजरारी मोटी-मोटी आँखे हैं, घुँघरारे बाल हैं, कानों में मकराकृति कुण्डल हैं। सर पर मोर मुकुट हैं, दांत ऐसे चमक रहे हैं जैसे बिजली चमक रही है। और भगवान ने सुंदर पीताम्बर धारण किया हुआ है। भगवान के हाथ में एक लड्डू है तथा चकई है और उन्हें घुमाने की डोरी हाथ में पकड़ी हुई है।
उसी समय वहां पर अचानक श्री राधा रानी जी आ जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण जी ने श्री राधा रानी को देखा तो बस देखते ही रह गए। राधा जी की बड़े-बड़े मनभावन नेत्र हैं, और माथे पर लाल रोली का टिका लगाया हुआ है। कटी में नीलवर्ण घाघरा(फरिया) पहना हुआ है, कमर पर घने बालों वाली वेणी इधर से उधर झकझोरती हुई डोल रही है।
श्री राधा रानी अपनी सखियों के साथ यमुना तट की और चली आ रही है जहाँ कृष्ण जी खेल रहे हैं। राधा जी की उम्र कम है वो अभी बालिका है, तन की गोरी और अत्यधिक सुंदर और मनमोहिनी रूप-लावण्य वाली हैं।
सूरदास जी कहते हैं ऐसी सुंदर राधा रानी को पहली बार देखकर श्री कृष्ण जी के होश उड़ गए हैं और वो उन पर मोहित हो जाते हैं। दोनों के नेत्र परस्पर मिले और दोनों के ह्रदयों में जैसे प्रथम प्रेम का अंकुरण हो गया, दोनों पर जादू का सा असर हो गया।
अब श्रीकृष्ण जी, श्रीराधा रानी जी से पूछते हैं कि:-
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बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहां रहति का की है बेटी, देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥
काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥
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सुरदास जी द्वारा रचित इस सुंदर पद का अर्थ हैं:-
श्रीकृष्ण ने पूछा कि:- ‘हे गोरी, तुम कौन हो, कहां रहती हो, किसकी बेटी हो?
हमने पहले कभी ब्रज की इन गलियों में तुम्हें नहीं देखा, तुम हमारे इस ब्रज में क्यों चली आई?’
श्री राधा जी अपनी मीठी वाणी से मुस्कुराते और व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहती हैं:- ‘हम भला ब्रज की इन तंग गलियों में क्यों आएँगी?
हम तो अपने ही घर के आंगन में खेलती रहतीं हैं।’
फिर राधा जी कहती हैं:- ‘मैंने सुना है की नंदजी का लड़का माखन-दही की चोरी करता फिरता है।’
(कृष्ण जी ने सोचा ये तो पहली ही बार मिली हैं और इसने तो हमारे साथ हंसी मजाक शुरू कर दिया)
तब कृष्ण बोले:- ‘लेकिन तुम्हारा हम क्या चुरा लेंगे?
अब ये चोरी की बहस छोड़ और चलो साथ मिलकर जोड़ी बनाकर खेलने चलते हैं।’
सूरदास जी कहते हैं कि इस प्रकार रसिक कृष्ण ने बातों ही बातों में भोली-भाली राधा को बहला ही दिया।
!!! आपलोग इस मिलन को केवल पढ़ना नहीं, बल्कि एक बार आँख बंद करके इस लीला के दर्शन अनुभव अवश्य करना।
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जय श्री राधा माधव हरि हरि बोल…. !!
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