श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “परमधाम गमन की भूमिका”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 84 !!
भाग 1
भयभीत हो उठे थे कार्ष्णि …..इनके लिए तो ये मात्र एक विनोद था ….किन्तु पूरे वंश के ही समाप्त हो जाने का श्राप इन ऋषियों द्वारा मिलेगा …..ये इन्होंने सोचा भी नही था ।
भयभीत साम्ब ने अपनी साड़ी निकाल दी ..और उदर में बांधा वस्त्र जैसे ही खोला ….धम्म करके एक लौह पिण्ड नीचे गिरा था …..काँटे थे उसमें नुकीले । इसका अब क्या करें ? भय से काँपते साम्ब ने अन्य कुमारों से पूछा था ।
क्या भगवत् श्री के पास चलें ? सत्यभामा के पौत्र ने साम्ब से पूछा ….वो भी भयभीत है ।
नही , भगवत् श्री के पास नही ……साम्ब ने मना किया …..वो हमें समझाते थे …ऋषियों का आदर करो ….वो ये सब जानेंगे तो ……तो पता नही क्या होगा ! साम्ब रोने लगा था ।
पर किसी को तो बताना ही पड़ेगा ……क्यो कि ये लौह पिण्ड अब मुशल की तरह अपना आकार बढ़ा रहा था …..ये मात्र लौह की कोई वस्तु नही थी …इसमें ऋषियों के श्राप का संस्कार भी भर चुका था ।
महाराज उग्रसेन के पास चलें उन्हीं से समाधान निकलेगा ….एक कुमार ने ये उपाय निकाला ।
पर उन्होंने भगवत् श्री से कह दिया तो ……..साम्ब अभी भी रो रहा है ।
नही कहेंगे वो …..उनको हम प्रार्थना करेंगे …और कहेंगे अब आप ही कुछ समाधान निकालिये …
सत्यभामा के पौत्र ने साम्ब को हिम्मत दी।
तात ! सामर्थ्यवानों से ही समाधान निकलता है …..इसलिए सामर्थ्यवानों से ही विनती करके समाधान माँगना चाहिए ……ओह ! कितना अच्छा होता कि ये लोग भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में बैठ उनसे ही इस समस्या का समाधान माँगते ….उनसे समाधान निकलता …क्यो की वही एक सामर्थ्यवान थे …किन्तु ये लोग गए उग्रसेन के पास …..जो संकल्प हीन है ….अरे ! पुत्र कंस ने कारागार में बन्द कर दिया तो जो बन्द ही रहे ….येसे बल हीन से क्या समाधान निकलता , ओह ।
उद्धव विदुर जी को लम्बी साँस लेते हुए बोले थे ।
हमसे बहुत बड़ा अपराध बन गया है ….अब आप को इसका समाधान निकालना पड़ेगा ।
साम्बादि श्रीकृष्ण कुमारों ने आकर महाराज उग्रसेन से विनती की थी …उग्रसेन उस समय यज्ञ में बैठे हुए थे …..वो कुमारों की बातें सुनते ही यज्ञ से उठ गए ….और आकर एकान्त में कुमारों से पूछा ……क्या हुआ कुमारों !
सारी बातें , समस्त घटनाएँ महाराज उग्रसेन को बता दिया था कुमारों ने ….फिर रोने लगे थे ….यही वो लौह पिण्ड है ….हमसे अपराध हो गया …ऋषियों का अपराध !
इससे यदुकुल का संहार होगा ? उग्रसेन हंसे ….वो ऋषियों के द्वारा दिए गए श्राप को गम्भीरता से ले ही नही रहे थे ……..
तुम बालकों ! रोते क्यो हो ….कुछ नही होगा ….ये ऋषि लोग कुछ भी बोलते रहते हैं ।
उग्रसेन सांत्वना दे रहे थे …….किन्तु समाधान क्या है ….ये लौह पिण्ड बड़ा होता जा रहा है ।
कुमारों की चिन्ता बढ़ती ही जा रही थी ।
इसको शीघ्र ले जाओ ….और काट कर समुद्र में चूर्ण बनाकर बहाते जाओ ……बस ।
ये समाधान नही था ….क्यो की चूर्ण बनाने से आकार बदल जाएगा …पर वस्तु नष्ट नही होगी ।
शीघ्र कुछ लौहकारों को बुलावा कर समुद्र में भिजवा दिया कुमारों के साथ उग्रसेन ने ।
आप भगवत् श्री से कुछ नही कहेंगे …..ये कहते हुए साम्ब चल पड़े थे अपने भाइयों के साथ ।
चिन्ता मत करो…..कुछ नही होगा ……मैं नही कहूँगा वासुदेव से …..उग्रसेन ने ये कहकर कुछ निश्चिन्तता प्रदान की थी कुमारों को ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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