!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 8 !!
जब आँखें नही खोलीं, श्रीराधारानी नें….
भाग 2
बरसानें के लोग कितनें खुश थे ……..पर अब बरसानें में उदासी सी छानें लगी थी …….सब नारायण भगवान से प्रार्थना करनें लगे थे …….कि हमारी “भानुदुलारी” को आप ठीक कर दें । हमारे जीवन का सारा पुण्य हम अपनें बृषभान जी को देते हैं …………बस उनकी पुत्री ठीक हो जाए ……आँखें खोल ले ……और दूध पीनें लगे ।
हे वज्रनाभ ! इन भोले भाले लोगों को क्या पता ………..की आस्तित्व किस दिव्य प्रेम का दर्शन करानें जा रहा है जगत को ।
यशोदा ! तुम्हे पता चला …………..हमारे मित्र बृषभान के यहाँ पुत्री हुयी है ………बृजपति नन्द आनन्दित होते हुए बतानें लगे थे ।
कब ? बृजरानी आनन्दित हो उठीं ……….वो दूध पिला रही थीं …….अपनें कन्हैया को ………….कन्हैया नें भी सुना ……….तो वो भी मैया की गोद में पड़े पड़े मुस्कुरानें लगे ।
कब हुयीं हैं उनके लाली ? बृजरानी नें पूछा ।
सिर झुकाकर बड़े संकोच से बोले नन्द ………दो दिन हो गए !
देखो ना ! अब बड़े नाराज होंगें बृषभान …………पता नही कैसे मनाऊँगा मैं उन्हें !
चलिये कोई बात नही ……..मैं कीर्तिरानी को समझा दूंगी ………पूतना , तृणावर्त , शकटासुर …….इन सब राक्षसों का कितना आतंक फैला दिया है कंस नें…….कन्हैया को हमनें कैसी कैसी विपत्तियों से बचाया है ……..मैं समझा दूंगी……वो मान जाएंगीं ।
बृजपति ! आपनें मुझे बुलाया ?
एक ग्वाले नें आकर नन्द को प्रणाम करते हुए पूछा ।
हाँ ……..सुनो ! शताधिक बैल गाड़ियों को सुन्दर सुन्दर सजा दो ………और शीघ्र करो ………….हम लोग बरसानें जा रहे हैं ।
नन्द राय की आज्ञा पाकर वो ग्वाला गया ………बैल गाडीयों को सजा दिया…..सुन्दर तरीके से सजाया था ।
यशोदा और बृजपति नन्द एक गाडी में बैठे ………..यशोदा की गोद में कन्हैया ………देखो देखो ! कैसे हँस रहा है ….कितना खुश है ……..ऐसा प्रसन्न तो ये आज तक नही हुआ था ……………”ससुराल जा रहा है मेरा कान्हा”………….इतना जैसे ही बोला यशोदा ने ……..कन्हैया तो खिलखिला उठा ।
नन्द और यशोदा नें एक दूसरे को देखा ……..और खूब हँसे ।
कितना अच्छा होता ना कि रोहिणी भी आजातीं ……………
पर यशोदा ! मथुरा में अपनें पति वसुदेव से मिलनेँ गयीं हैं रोहिणी ….दाऊ को तो छोड़ जाती ! …..यशोदा नें फिर कहा ।
अपनें पुत्र को भला कोई छोड़ता है ! छोडो यशोदा तुम भी ।
…..बृजपति चले जा रहे हैं इस प्रकार चर्चा करते हुए ।
सौ से अधिक बैल गाडी हैं ……….आधे गाडी में तो लोग बैठे हैं …………कुछ गाड़ियों में मणि माणिक्य सुवर्ण ………कुछेक गाड़ीयों में ..वस्त्र ….आभूषण इत्यादि ……..कुछेक गाड़ियों में दूध माखन दही ……ये सब रखकर चले जा रहे हैं बरसानें की ओर ।
ये क्या ! बरसाना उदास है ………..लोग सजे धजे हैं ………..पर वो उल्लास और उमंग नही है किसी में ।
बृजपति नें बरसानें में प्रवेश किया, तो कुछ उदासी सी देखी, लोगों में ।
महल में चहल पहल तो है …….बन्दनवार भी लगाये हैं …………..केले के खंभे बड़ी सुन्दरता से सजाएं हैं ……………रंगोली तो हर बरसानें वाले के द्वार पर बना हुआ है ………..मोतियों की चौक भी पुराई है ।
पर कुछ उदासी सी छाई है ।
महल में प्रवेश किया ………..याचकों की लाइन लगी है महल के द्वार पर ……स्वयं खड़े हैं बृषभान जी …………सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए ……माथे में पगड़ी ………..मोतियों की लड़ी गले में…….सोनें के कड़ुआ हाथों में ……बृषभान जी प्रसन्नता से सब कुछ लुटा रहे हैं ।
बधाई हो ! मित्र बधाई हो !
जोर से आवाज लगाई बृजपति नन्द नें …………बरसानें के अधिपति बृषभान को ।
देखा बृषभान जी नें ।
क्रमशः …..
शेष चरित्र कल …..
: पहल तो है …….बन्दनवार भी लगाये हैं …………..केले के खंभे बड़ी सुन्दरता से सजाएं हैं ……………रंगोली तो हर बरसानें वाले के द्वार पर बना हुआ है ………..मोतियों की चौक भी पुराई है ।
पर कुछ उदासी सी छाई है ।
महल में प्रवेश किया ………..याचकों की लाइन लगी है महल के द्वार पर ……स्वयं खड़े हैं बृषभान जी …………सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए ……माथे में पगड़ी ………..मोतियों की लड़ी गले में…….सोनें के कड़ुआ हाथों में ……बृषभान जी प्रसन्नता से सब कुछ लुटा रहे हैं ।
बधाई हो ! मित्र बधाई हो !
जोर से आवाज लगाई बृजपति नन्द नें …………बरसानें के अधिपति बृषभान को ।
देखा बृषभान जी नें ।
कई बैल गाडीयाँ सजी धजी खड़ी हैं महल के द्वार पर …….
मित्र बृजपति ! और बृजरानी !
दौड़ पड़े बृषभान जी .....।
पास में गए …..तो गले नही मिले । ….हम आपसे नाराज हैं ……..दो दिन हो गए … …और आप अब आये हो ! हम आपसे बात नही करते ?
मित्र का रूठना अधिकार है ।
हाँ …….हमसे गलती तो हो गयी है ………अब आप जो दण्ड दें ……वैसे भी मैं तो कहता ही था …….की सम्पत्ती वैभव इन बरसानें वालों के पास ही ज्यादा है ………”बृजपति” तो इन्हें ही बनाना चाहिये …..
नन्द जी नें हाथ जोड़कर आगे कहा ………….हम तो नाम के ही बृजपति हैं …….सच्चे बृजपति तो हे बृषभान जी ! आप ही हो ।
तो क्या दण्ड दोगे हमें बृषभान जी ? “वैसे लड़के वालों के सामनें लड़की वालों को ज्यादा बोलना नही चाहिये” ……..हँसते हुए बृजपति नें बृषभान जी को अपनें हृदय से लगा लिया था ।
क्या बात है उदास हो ? हे बृषभान जी ! आप सत्य पर दृढ रहनें वाले हैं …….इसलिये आपकी वाणी सदैव सत्य ही होती है ।
आपनें कहा था …………मुझे तो “लाली” चाहिये……..और देखिये आपके लाली हो गयी ………….हँसते हुए बोले बृजपति नन्द ।
पर आप उदास हैं ? क्यों ? नन्द नें फिर पूछा ।
महल में चलते हुए बातें हो रही थीं ……..कीर्तिरानी के पास में आगये थे सब लोग …….बृजरानी यशोदा के साथ कई गोकुल की सखियाँ चल रही थीं उनके हाथों में हीरे मोती मणि माणिक्य से भरे थाल थे …जो “लाली” को न्यौछावर करनें के लिए लाईं थीं बृजरानी ।
बधाई हो कीर्तिरानी !
लाला कन्हैया को गोद में लेकर ही दौड़ पडीं यशोदा ।
यशोदा भाभी ! कीर्तिरानी उठकर बैठ गयीं ।
नही ……लाली कहाँ है ? मैं देखूंगी , लाली कहाँ है ?
ये रही हमारी प्यारी लाली ………..कीर्ति रानी नें दिखाया ।
ओह ! कितनी सुन्दर है ये तो ! ………ओह ! अपलक देखती रहीं उन “भानु दुलारी” को ….बृजरानी यशोदा ।
क्या न्यौछावर करूँ मैं ? थाल के मणि माणिक्य को छोड़ दिया बृजरानी नें …….अपनें गले का सबसे मूल्यवान हार उतार कर किशोरी जी को न्योछावर में दे दिया …….फिर भी मन नही माना ………अपनें हीरे से जड़े कड़े उतार कर …….लाली के ऊपर न्यौछावर कर लुटा दिया ……….पर नही ……..इसके आगे ये हार , ये कड़े क्या हैं !
क्या दूँ ? क्या दूँ मैं ? बृजरानी भाव में उछल रही हैं ।
कुछ नही मिला तो अपनी गोद में खेल रहे कन्हैया को ही “श्रीजी” के ऊपर घुमा कर उनके ही बगल में रख दिया ………इससे बढ़िया न्यौछावर और कुछ नही है …………गदगद् भाव से बोलीं बृजरानी ।
पर ये क्या !……..कन्हैया खुश ……कन्हैया को तो अपनी “प्राण” मिल गयीं ……वो खिसकते हुए अपनी “सर्वेश्वरी” के पास गए ………अपनें नन्हे करों से “प्रिया जू” के नन्हे नन्हें नेत्रों को छूआ ……….बस फिर क्या था ।
नेत्र खुल गए श्रीराधा के ………..खोल दिए नेत्र श्रीराधा नें ।
बृषभान जी नें देखा ……….मेरी लाली नें अपनें नेत्र खोल दिए…….
वो तो बृजपति का हाथ पकड़ कर नाचनें लगे ………बृजपति ! आप पूछ रहे थे ना …..कि मैं उदास क्यों हूँ ? मेरी कन्या नें नेत्र नही खोले थे …….।
ये बात फ़ैल गयी हवा की तरह पूरे बरसानें में …………अब तो सब लोग आनन्द मनानें लगे …..नाच गान फिर से शुरू हो गया ।
कीर्तिरानी के नेत्रों से आनन्दाश्रु बह चले थे …….यशोदा भाभी ! आप सोच नही सकतीं मैं कितनी खुश हूँ आज ।
हृदय से लगा लिया था बृजरानी नें कीर्तिरानी को ………..
अरे ! देखो ! देखो ! ये दोनों कैसे खेल रहे हैं ………….
ऐसा लग रहा है ………….जैसे ये दोनों ही प्रेम के खिलौनें हैं ……..और प्रेम से खेल रहे हैं …………प्रेम ही इनका सर्वस्व है ।
श्रीराधा कृष्ण दोनों बालक रूप में एक दूसरे को देखकर किलकारियां भर रहे थे ।
अरी ! कीर्ति ! बहुत खेल लिए अब थोडा दूध तो पिलाकर देखो ……
मुखरा मैया सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं…..उन्होनें आकर दूध पिलानें के लिए कहा …….कीर्ति रानी जब दूध पिलानें लगीं…..नही पीया दूध ……मात्र कन्हैया को ही देखती रहीं “लली श्रीराधा” ……..पर कन्हैया नें अपनें कोमल हाथों से श्रीराधा के मुख को कीर्ति रानी के वक्ष की ओर कर दिया …..मानों कह रहे हों….राधे ! अब तो मैं आगया ……अब तो दूध पी लो । ……बस प्रियतम के सुख के लिए …….प्रियतम की बात सर्वोपरि है ये जानकर श्रीराधा रानी नें दूध पी लिया ।
हे वज्रनाभ ! ये प्रेम की लीला अद्भुत है …..इसे बुद्धि से नही समझा जा सकता …..ये तो हृदय के माध्यम से ही समझ में आता है ।
!! घर घर मंगल छायो आज, कीरति नें लाली जाई है !!
शेष चरित्र कल …..
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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877