!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 9 !!
नामकरण संस्कार
भाग 2
प्रेम की सुगन्ध को छुपाया नही जा सकता…….आप जाइए …….आपको जिस ओर से वो प्रेम की सुवास आती मिले …….बस चलते जाइए ………मैने मुस्कुराते हुए कहा …….आचार्य को शीघ्रता थी …….आल्हादिनी के दर्शन करनें की…….उस ब्रह्म के साकार प्रेम को देखनें की …….वो मेरी कुटिया से बाहर निकले ……और चल पड़े जिधर से आल्हादिनी खींच रही थीं उन्हें ।
हे वज्रनाभ ! जब बरसानें पहुँचे आचार्य गर्ग ………तब उन्हें मार्ग में ही बृषभान जी मिल गए …………..उन्होंने आचार्य के चरणों में प्रणाम किया ………कहाँ से पधारे आप आचार्य ? आज आपके चरणों को पाकर ये बरसाना धन्य हो गया है ।
मैं तो बृजपति नन्द के पुत्र का नामकरण करवा के आरहा हूँ ।
ओह! तो फिर आपको मेरे महल में चलना ही पड़ेगा…और मेरा आतिथ्य स्वीकार करना ही पड़ेगा ……..विशेष आग्रह करनें लगे थे बृषभान जी ।
आचार्य की इच्छा पूरी हो रही थी ……वो इसीलिए तो आये थे बरसानें में ताकि एक झलक दर्शन के मिल जाएँ “श्रीकिशोरी” के ।
वो गए महल में ……..कीर्तिरानी नें प्रणाम किया ……..फिर बृषभान जी नें उन्हें एक उच्च आसन में बैठाकर उनका अर्घ्य पाद्यादि से पूजन किया ……………….
पर आपकी पुत्री कहाँ हैं ?
आचार्य अपनें को पूजवानें तो आये नही थे .....उन्हें तो दर्शन करनें थे ।
हे आचार्य ! मेरी और मेरी अर्धांगिनी की इच्छा है कि अगर तिथि मुहूर्त आज का ठीक हो …….तो आज ही नामकरण संस्कार आप कर दें ।
हाथ जोड़कर बृषभान जी नें कहा ।
ठीक है …….इतना कहकर मुहूर्त का विचार करनें लगे आचार्य गर्ग ।
पर कुछ ही देर में उनका मुखमण्डल प्रसन्नता से चमक उठा …….आज के जैसा मुहूर्त तो वर्षों बाद भी नही आएगा …………..
कीर्तिरानी अपनें महल में गयीं ……..बृषभान जी आनन्दित हो यमुना स्नान करनें चले गए ……इधर पूजन की तैयारियाँ आचार्य नें शुरू की……..सामग्रियाँ सब ला लाकर ग्वाले देने लगे जो जो माँगते गए आचार्य ।
पर नामकरण संस्कार की तैयारियों में तो बिलम्ब हो जाएगा ……क्यों की मेरे साथ यहाँ कोई विप्र भी नही है …….महर्षि शाण्डिल्य नें मुझे गोकुल में सात विप्र दिए थे ………….हे वज्रनाभ ! इतना सोच ही रहे थे आचार्य की तभी आकाश मार्ग से नवयोगेश्वर उतरनें लगे बरसानें में …….उनके साथ साथ ऋषि दुर्वासा भी आगये ।
आप ? चौंक कर उठ खड़े हुये आचार्य गर्ग …………
हाँ , आल्हादिनी के दर्शन का लोभ हम भी छोड़ नही पाये ……..इसलिये हम भी आगये ……….ऋषि दुर्वासा नें हँसते हुए कहा ……इनके दर्शन का लोभ स्वयं ब्रह्म नही त्याग पाते तो हम क्या हैं ।
हम को सेवा बताइये ……..हम आपकी सहायता करगें आल्हादिनी के नामकरण संस्कार में ……कृपा करें ……नवयोगेश्वरों नें हाथ जोड़े ।
अच्छा ठीक है …….आप लोग अपना परिचय छुपाइयेगा ……..बरसाने में किसी को पता न चले ………क्यों की प्रेम जितना गुप्त रहता है …….वो उतना ही खिला और प्रसन्न रहता है ।
बड़ी प्रसन्नता से आचार्य गर्ग की बात सबनें मानीं ……..और तैयारियों में जुट गए ।
“हो गयीं सारी तैयारीयाँ…….महाराज और रानी को बालिका के साथ बुलाया जाए” …….आचार्य नें महल के सेवकों से कहा ।
तभी सबनें देखा……….रेशमी पीले वस्त्र पहनें ……..सूर्य के समान दिव्य तेज़ वाले बृषभान जी सुन्दर सी पगड़ी बाँधे ……आये ।
उनके साथ उनकी अर्धांगिनी “कीर्तिरानी” वो तो ऐसी लग रही थीं जैसे स्वर्ग की अप्सरा भी लज्जित हो जाए ।
पर सबकी दृष्टि थी कीर्तिरानी की गोद में ……………
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ….
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