[4/5, 10:41 PM] Niru Ashra: 📖✨ श्री गौरदासी ✨📖
भाग – 1
गोपेश्वर महादेव के निकट ही ये बाई रहती थी…बंगाली शरीर …”भजनाश्रम” में कीर्तन करके अपना जीवन यापन किया …आज सुबह ही इनका देह शान्त हो गया ….क्या नाम है इसका ?
“गौर दासी”….मकान मालिक ने बताया । इसका मीत कृष्णा है ….और ये गौर दासी कहती थी जब तक वो न आये इसके शरीर को यमुना में प्रवाहित न किया जाये । मीत ? कौन कृष्णा ? आस पड़ोस के लोग जो आये थे इस बंगाली बाई के शरीर को घाट ले जाने के लिये …वो मुस्कुराने लगे । अरे भगवान श्रीकृष्ण को कहती थी ….अच्छा ! अच्छा ! क्या करना है काम हमें ये बताओ ! पड़ोस के लोगों को और भी काम हैं ….अब इसी गौर दासी के पीछे थोड़े ही रहेंगे दिन भर ….”वैसे भी वृन्दावन में बहुत बंगाली हैं”…..एक ने ये भी कहा ।
“पर ये तो बांग्लादेश की थी”…..पड़ोसी आपस में बातें कर रहे हैं ….हाँ तो बांग्लादेश अपने भारत में ही तो था कल तक …बांग्लादेश के जो भी होंगे वो सब मुसलमान ही हैं ऐसा थोड़ा ही है ।
इसको इतिहास का ज्ञान नही है …दूसरे ने ये भी कह दिया …अच्छा अच्छा , बातें न बनाओ भीतर से समान हटाने में मेरी कुछ तो सहायता करो । मकान मालिक गौर दासी के कमरे से उसका सामान भी निकाल रहा था ….बाहर गौर दासी का शरीर तुलसी के पौधे के पास है …..कुछ इसकी मित्र बंगाली बाईयां आगयीं हैं और रोते हुये महामन्त्र सुना रही हैं ।
देखो ! ये चित्र था इसके पास …एक बड़ा सा चित्र भगवान श्रीकृष्ण का …..घुंघराले बाल …हाथ में मुरली …..मुस्कुराते ….जो भी देखे बस देखता रह जाये । इसे मैं रख लूँ ? पड़ोस के आदमी ने पूछा । ना , इतनी सुन्दर छबि ….ये चित्र यहीं रहेगा …मकान मालिक ने कहा ….पर वो चित्र में मुस्कुराहट ऐसी की सबको लग रहा था भगवान श्रीकृष्ण हमें ही देख रहे हैं ।
गौर दासी का सारा सामान बाहर निकाल दिया है मकान मालिक ने …..महामन्त्र का संकीर्तन चल रहा है । अब ये लोग जो कीर्तन कर रहे हैं इनका पैसा कौन देगा ? मकान मालिक को चिन्ता है …..क्यों पैसा नही निकले कमरे से ? पड़ोसी ने व्यंग में पूछा । अरे ! बेचारी भजनाश्रम में अठन्नी में आठ घण्टे कीर्तन करती ….तब जाकर भात बनाकर खाती ….कहाँ था पैसा इसके पास …..मेरे ही छ महीने से पैसे नही दिये थे इसने ….पर कुछ भी कहो परम भक्त थी ! पूरी रात कीर्तन करती रहती थी …हम तो रोने की आवाज भी सुनते थे ..”कृष्णा कृष्णा” कहती हुयी खूब रोती , हम भी सुनते थे …..पड़ोसी ने भी कहा ।
चल भाई , मेरी तरफ से दो रुपये ले ….पड़ोसी लोग गौर दासी के लिए पैसे उठाने लगे थे …मकान मालिक ने कहा …अरे रहने दो….दस रुपये मैं लगा रहा हूँ …हो जायेगा …यमुना में प्रवाहित ही तो करना है …..कोई बात नही भक्त थी ….भजन करती …कभी किसी से कुछ नही कहती …बस …”मेरा मीत , मेरा मीत कृष्णा” यही कहती फिरती थी …..मकान मालिक और पड़ोसी आपस में बातें करते जा रहे हैं ….और अर्थी भी तैयार कर रहे हैं….बाँस लेकर साइकिल में दो लोग आगये हैं ….मैं कहता माई ! तेरा बेटा है कृष्णा ? तो मुँह बना लेती …कहती हट्ट ! मीत है….मेरा मीत ! और ये कहते हुए उसका मुख लाल हो जाता था …जैसे कोई नयी नवेली छोरी शरमा गयी हो ।
अर्थी तैयार हो गयी थी ….”हरे कृष्ण महामन्त्र” लिखी हुयी चादर ओढ़ा दी थी ….उसके मस्तक में गौड़ीय वैष्णव तिलक लगा दिया था …अभी भी देखो – कितना तेज है ….मुस्कुराता हुआ मुख है अभी भी …मकान मालिक गौर दासी के शरीर को उठाकर अर्थी में रखता है …दो पड़ोसी लोग बांधते हैं ..और फिर ….”गोपाल नाम सत्य है”…..”राम नाम सत्य है” ..लोग लेकर चल दिए हैं ।
कि तभी –
पीछे से एक ताँगा आया….उसमें एक युवा बैठा है ….उसने रुकवायी अर्थी को ….सब लोग देख रहे हैं ये क्या है ? ये कौन है ? पर वो देखने में अत्यन्त सुन्दर है …घुंघराले केश …सुन्दरतम बड़े बड़े नयन …बड़ी किनारी की ताँत की धोती ..ऊपर सिल्क का सुन्दर कुर्ता …अत्यन्त मोहक ।
उसने आगे आकर अर्थी को पकड़ा ….उस समय कोई क्या पूछे ….अर्थी को लेकर वो चल रहा था ….ओह ! ये मुख तो चित्र में भगवान श्रीकृष्ण से मिलता है …..ये गौर दासी का मीत ? मकान मालिक को रोमांच हुआ ….क्यों की आगे अर्थी मकान मालिक ही पकड़े हुये था और साथ में ये सुन्दर युवा ।
यमुना में जाकर रज लगा दिया मस्तक में गौर दासी के …उसने एक बार झुक कर गौर दासी को देखा …उसके झुर्रियों से भरे कपोल को छुआ …..फिर यमुना में प्रवाहित ।
वो कहाँ गया ?
मकान मालिक ने चारों ओर देखा वो चला गया था … .मकान मालिक इधर उधर दौड़ा पर नही मिला वो ….वो कौन था …कहाँ से आया था ….किसी को पता नही …..ये कुछ दिन तक चर्चा का विषय बना रहा श्रीवृन्दावन में ।
क्या आप नही मानोगे कि वो गौर दासी का ही मीत श्रीकृष्णा था ?
सन् 1899 क्षितिश चन्द्र चक्रवर्ती और उनकी पत्नी लोलिता ने एक कन्या को जन्म दिया ।
ढाका के “चांगडी” नामक गाँव में ….क्षितिश चन्द्र बंग क्षेत्र के महान वैद्य थे ….नाड़ी विज्ञान के श्रेष्ठ ज्ञाता थे …कुछ नही , रोगी को अपना रोग बताना नही पड़ता था …क्षितिश चन्द्र स्वयं ही नाड़ी देखकर बता देते ….कलकत्ता से लोग ढाका आते सिर्फ अपना इलाज कराने …..मान प्रतिष्ठा खूब थी पूरे ही बंग क्षेत्र में ….एक बालक हुआ , नाम रखा बालक का – शिशिर चक्रवर्ती ….बालक होनहार था …बड़े होने पर इसे वकील की पढ़ाई के लिए इंग्लेंड भेज दिया ।
ढाका में एक प्रसिद्ध गौडिया मठ …..जिसके बारे में कहते हैं कि श्रीचैतन्य महाप्रभु वहाँ पधारे थे ….वहाँ के एक वैष्णव साधु से क्षितिश चन्द्र जी की मित्रता हो गयी …..धीरे धीरे वो वैष्णव भी बन गये ….वो ही क्यों उनकी पत्नी लोलिता भी वैष्णव बनकर ठाकुर जी की सेवा-पूजा करने लगीं ….उन्हीं दिनों इनके एक पुत्री हुयी …….पुत्री बहुत सुन्दरी थी ….गौर वर्णी ….बड़ी बड़ी आँखें ……इसका नाम माता पिता ने बड़े प्यार से रखा “गौरा” । ये जब गर्भ में थी तभी भागवत की कथा बंगाली भाषा में चक्रवर्ती महोदय अपनी पत्नी को सुनाते थे । गौरा अभी दो महीने की ही हुयी थी कि इसकी वात्सल्यमयी माँ लोलिता परलोक सिधार गयीं ।
बहुत कष्ट हुआ क्षितिश चन्द्र जी को …अब इस बालिका की सम्भाल कौन करेगा ?
लोगों ने सलाह दी दूसरा विवाह कर लो …पर ये नही माने …और स्वयं ही अपनी पुत्री का सार-सम्भाल करने लगे …उसे हरिनाम सुनाते …उसे भागवत की कथा सुनाते ….इस तरह गौरा बढ़ी हो रही थी ।
शेष कल –
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भाग – 2
गतांक से आगे –
माता के बिना बालिका गौरा का पालन पोषण उसके पिता क्षितिश चन्द्र चक्रवर्ती कर रहे थे …उसे पढ़ा रहे थे …अक्षर ज्ञान घर में ही देते गौरा को ….पर गौरा को “कृष्ण” कहना और पढ़ना यही प्रिय था ….ये जब रोती थी …कोई आकर “हरे कृष्ण” महामन्त्र सुना देता तो ये प्रसन्न होकर ताली बजाने लगती चाहे कितनी भी रो रही हो ।
खिलौना सामने रख देते चक्रवर्ती महाशय …पर इसे खिलौने से प्रेम नही था …मृदंग झाँझ मंजीरा …इसको उठाकर …आँखें बन्दकर के संकीर्तन का स्वाँग करती गौरा…क्षितिश चन्द्र गदगद हो जाते …इस तरह ये बड़ी हो रही थी ।
आज सात वर्ष की हो गयी ….बच्ची गौरा सुन्दर तो इतनी है कि कोई सीमा ही नही ….शायद “ढाका” में कोई इतना सुन्दर नही होगा । पढ़ने अभी भेज नही रहे पिता …इसलिये कि अंग्रेजों की दृष्टि इन दिनों भारतीयों पर अच्छी नही है ….”मुसलमान और हिन्दू में फूट डालने की राजनीति पर अंग्रेज काम कर रहे हैं” ..इस बात से बहुत दुखी भी हैं चक्रवर्ती महाशय …कल की ही तो बात थी ….गौडिया मठ की एक भक्तिन को मुसलमान उठाकर ले गये ….और बाद में पता चला इसके पीछे अंग्रेज ही थे । हे भगवान ! ऐसा बंग देश में आज तक नही हुआ था ..हम लोग कितने प्रेम से रहते थे ।
चक्रवर्ती महाशय स्वभाव से शान्त हैं ….ये शान्त प्रिय व्यक्ति हैं …अध्यात्म की गूढ़ता पर चर्चा इनका प्रिय विषय है …..इनका ढाका में बहुत सम्मान था ….है , अभी भी है ….पर कल की घटना के विरोध में ये जब हिन्दू के पक्ष में रोड में उतरे तब से मुसलमान इनसे चिढ़े हुये हैं ….ढाका बन्द …..हिन्दू आक्रोशित हैं …..और हों भी क्यों नहीं ….हिम्मत तो देखो इन मुसलमानों की गौडिय मठ से उस बेचारी भक्तिन को उठा लिया …भजन करती थी वो तो …..कुछ दिन से क्षतिश चन्द्र चक्रवर्ती बाहर नही जा रहे …वो अपने घर में ही बैठते हैं और नाड़ी देखकर लोगों का ईलाज करते हैं । इनके घर के काँच के द्वार को कल किसी अज्ञात व्यक्ति ने तोड़ दिया है …पड़ोसी कह रहे हैं वो अब्दुल्ला है ….वही अब्दुल्ला जो चक्रवर्ती महोदय की मोटर गाड़ी बनाने आता था ..ओह ! इतने छोटे लोग अब ऐसी हरकत करने लगे हैं ..हे कृष्ण ! कुछ करो ..नही तो ।
बाबा ! मैं पढ़ने जाऊँगी ….अब गौरा पढ़ने की जिद्द कर रही है ।
नही गौरा ! मैं ही पढ़ाऊँगा तुझे …उसके माथे को चूमते हुये चक्रवर्ती महाशय कहते थे ।
अभी ढाका की स्थिति ठीक नही है , हिन्दू बच्ची पढ़ने नही जा सकती …इसलिए घर में ही पढ़ाने लगे थे …गौरा पढ़ रही थी ….साथ साथ ठाकुर जी की सेवा , आरती सुबह शाम घर में होता ही था …पण्डित जी आकर कर देते थे ..गौरा बड़े आनन्द के साथ उसमें भाग लेती ..गदगद हो जाती इस तरह समय बीतता गया गौरा आठ वर्ष की हो गयी ।
एक दिन –
बाबा ! दादा आये हैं …दादा आये हैं …..
इसका बड़ा भाई शिशिर आया है ….इंग्लैंड से वकील बनकर ….पिता कितने खुश थे …वो बहन गौरा कितनी आनंदित थी ….पर ….
“शिशिर ! तुम ऐसा नही करोगे”….जोर से चिल्लाये थे पिता चक्रवर्ती अपने बेटे से ।
बेचारी गौरा डर गयी थी ……
“नही , मैं अब उसी के साथ रहूँगा ….और विवाह भी उसी के साथ करूँगा “। बेटा अपने पिता को ये सब कहकर कलकत्ता चला गया था ।
बेचारी बहन गौरा संदेश लाई थी ….अपने भाई को खिलाऊँगी कहकर पर…..
“कलकत्ता की एक मुसलमान लड़की जो इसी के साथ इंग्लैण्ड गयी वकालत की पढ़ाई करने ….वहाँ दोनों का प्रेम हो गया ….और अब ये शिशिर कह रहा है मैं विवाह करूँगा तो उसी से”……ठाकुर जी की सेवा आरती करने आये वैष्णव पण्डित से अपना दुःख दर्द बता रहे थे चक्रवर्ती ….ये उसको दिखाई नही देता क्या ? मुसलमान कितना हिंसक हो उठा है !
पण्डित क्या कहें ……वो भी तो दुखी ही हैं …..
दादा क्यों चले गये ? बेचारी गौरा पूछ रही है पण्डित जी से ही ।
बेटी ! अब जो भी हैं तेरे यही हैं ….इन्हीं से कहा कर …इन्हीं को बताया कर । अब कोई दादा नही ……यही हैं तेरे दादा …….
भगवान श्रीकृष्ण का एक सुन्दर सा चित्र है उसी को दिखाते हुये पण्डित जी गौरा को बता रहे थे ।
ये सुनते हैं ? गौरा पूछती है ….हाँ क्यों नही सुनते …यही तो सुनते हैं ….पण्डित जी कह रहे हैं ।
पर ये तो भगवान हैं ….मेरी जैसी बच्ची की क्यों सुनेंगे ?
तभी क्षितिश चन्द्र चक्रवर्ती वहाँ आगये ….गौरा ! कल मैंने रात में किसकी कथा सुनाई थी ?
बाबा ! “बालक ध्रुव की” …गौरा ने अपने पिता से कहा …तो बालक ध्रुव कितने वर्ष के थे ?
“पाँच वर्ष के” …उत्तर दे रही है गौरा …ये सबकी सुनते हैं और बच्चों की तो पहले सुनते हैं ।
ये कहते हुए पिता ने अपनी बेटी को गोद में ले लिया था …पण्डित जी ने चरणामृत दिया …..
पर गौरा भगवान श्रीकृष्ण के उस मुस्कुराते हुये चित्र को ही देख रही थी ।
नही , दादा नही …मीत ….दादा गन्दे हैं ….मुझ से बात भी नही किये …मेरा सन्देश भी नही खाया ….तुम मेरे दादा नही मेरे मीत बनो ….मीत । कितनी खुश हो गयी थी गौरा ये कहते हुये और उसने ये भी कहा था ….ये बात किसी को मत बताना …पण्डित जी को भी नही …और बाबा को भी नही ।
बीस वर्ष की हो गयी अब गौरा ….बहुत सुन्दर है ये …इसकी सुन्दरता कहीं इसकी शत्रु न बन जाये यही डर लगा रहता है चक्रवर्ती महाशय को …पढ़ने के लिए भी बाहर नही जाने दिया ….घर में पढ़ाते रहे हैं गौरा को ।
गाँधी ने अनशन क्या किया कलकत्ता में उससे तो और भड़क गये हैं मुसलमान ….
ओह ! आज अख़बार पढ़ते हुए चक्रवर्ती महाशय के जीवन में फिर वज्रपात हो गया ….इनके बेटे शिशिर को कलकत्ता में मुसलमानों ने मार दिया था । पर क्यों मारा ? तुम्हारा धर्म तो उसने स्वीकार कर ही लिया था ना ! क्रोध और दुःख से चीख निकल गयी थी चक्रवर्ती महाशय की ।
गौरा बहुत दुखी हुयी है …..बहुत दुखी ।
वैसे इसने भी अनुभव कई बार कर लिया है इन साम्प्रदायिक हिंसा का …..इसको भी कई बार छेड़ा है ….पर आज तक इसे कोई छू नही सका है , ये बची है …बार बार बची है ……
मेरे “मीत” ने मुझे बचाया है …वो मेरे साथ कुछ नही होने देगा ….कोई मुझे छूकर तो दिखा दे ।
बांग्लादेश में रहकर भी ये गौरा ऐसा बोल सकती है ….कौन मीत है तेरा ? कोई पूछता तो मुस्कुरा देती ….विवाह के लिए चक्रवर्ती महाशय ने कलकत्ता से एक दो नही दसियों रिश्ता देखा होगा पर ये नही करती ….इसका मीत किसी से रिश्ता जोड़ने ही नही देता ।
ये श्रीकृष्ण के चित्र को अपने कक्ष में रखती है ..अब ये “पूजा” नही करती “प्यार” करती है ।
ये अपने मीत श्रीकृष्ण से बातें करती हैं ….श्रीकृष्ण को चूमती है ….हाँ गौरा अपनी सारी बातें नियम से अपने मीत को बताती है …और इसके मीत को आदत पड़ गयी है गौरा की बातें सुनने की ….ये चित्र में से ही इसकी सारी बातें सुनता है ….मुस्कुराता है …नाराज़ होता है ….अपनी बात मनवाता है …और उसकी बात मानता है ….क्यों नही मानेगा ?
शेष कल –
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