!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 36 !!
वेद पुरान हमें नही सूझे …
भाग 2
गलत बात है ….गलत बात है ………सिर हिलाया कामदेव नें कृष्ण को देखकर …….ये ठीक नही है ।
क्या ठीक नही है कामदेव ? कृष्ण नें कामदेव से ही पूछा ।
इन गोपियों का मन ही नही है…..तो मैं “वासना” किस में प्रकट करूँगा ?
वाह ! कृष्ण ! ये अच्छी बात है ……….बेटे से युद्ध करना है तुम्हे ……इस बात को जानते हुए ……मेरे पिता को ही अपनें वश में कर लिया ?
कामदेव की बात सुनकर कृष्ण हँसे………..तुम्हारे पिता ?
तुम सब जानते हो …………मेरी उत्पत्ति “मन” से हुयी है ……….इसलिये तो मुझे लोग “मनोज” भी कहते हैं ………..पर तुम बहुत चतुर हो ……तुमनें तो मेरे पिता मन को ही अपना भक्त बना लिया……गोपियों का मन तुम्हारा भक्त है …….ऐसे नही होता ! कामदेव बोला ।
तो कैसे होता है ? कृष्ण मुस्कुराये ।
इन गोपियों के मन में अभिसार की इच्छा प्रकट करो ……….तुमसे मिलनें के लिए ये तड़फे ………मिलन की कामना जगाओ ……..मुझे जगह दो इन के हृदय में………कामदेव नें कहा ।
ठीक है ……..तुम जैसा चाहो …..करो ……..करो …..मैं तैयार हूँ मनोज ! कृष्ण नें इतना कहकर ……..गोपियों के मन में मिलन की तीव्र इच्छा को प्रकटा दिया …….अब ठीक है ? कृष्ण नें पूछा ।
हाँ ….अब ठीक है ….कामदेव नें कहा …और वह फिर देखनें लगा ।
पतियों नें रोक दिया है पत्नियों को…..नही जानें दूँगा तुम लोगों को ।
पर उन गोपियों की स्थिति …..ओह ! कामदेव देखकर स्तब्ध हैं ।
पतियों नें जब रोक दिया अपनी गोपियों को …….तब वह गोपियाँ वहीँ बैठ गयीं …….कृष्ण के वियोग में उनका शरीर काला पड़नें लगा …..उन गोपियों नें अपनें नेत्रों को बन्द कर लिया …हा कृष्ण ! हा कृष्ण ! कहते हुए उनके पूर्व जन्म के जितनें कर्म संस्कार थे वे सब जल उठे …….पर आश्चर्य ! ये क्या ? अब तो इनका शरीर दिव्य हो गया था …..सुन्दरता मानों इनके अंग अंग में समा गयी थी ……..ये इतनी सुन्दर लग रही थीं ………मानों स्वयं कृष्ण हों …..हाँ …..उनके ध्यान का प्रभाव ही तो था ये सब ।
इस आश्चर्य को देख कामदेव मूढ़ सा हो गया ………एक देह से गोपियाँ अपनें पतियों के पास ही थीं ……..पर दूसरे दिव्य देह से ……वो सब कृष्ण की ओर बढ़ रही थीं ……….उनके देह से ज्योति निकल रही थी …….वो सर्वत्र फैलती जाती थी ।
ये सब क्या हो रहा है कामदेव की समझ से परे था ।
सब सौन्दर्य की साकार देवियां छुपते छुपाते ……..उसी स्थान पर पहुँच गयी थीं ……..उसी शिला के पास ……..जहाँ बैठे मुरली मनोहर मुरली बजा रहे थे ।
घेर लिया उस शिला को……..हजारों गोपियों नें ।
ये इतनी सुन्दरीयाँ हैं ……..इनमें से तो एक भी काफी थीं इस कृष्ण का मन हरण करनें के लिये ….अब देखना होगा ये कृष्ण कैसे मुझ से पराजित नही होते ? कामदेव हँसता है ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल ……
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