उद्धव गोपी संवाद:-
( भ्रमर गीत)
३३ एवं ३४
कोहू कहै,अहौ स्याम!कहा इतराइ गये हौ।
मथुरा कौ अधिकार पाई, महाराज भए हौ।।
ऐसें कछु प्रभुता,अहो जानत कोऊ नाहिं।
अबला -वध सुनि डर गए,बली जगत के माहिं।।
पराक्रम जांनि कें।।
भावार्थ:- कोई गोपी स्याम से बातें करते हुए कह रही हैं कि,हे स्याम तुम इतने क्यों इतराए रहे हौ,क्या मथुरा को राज मिल गया है और तुम महाराज बन गए हो इसलिए। ऐसी प्रभुता को कोई नहीं जानता,हम अबला बुद्धि डर गई तो क्या बली से जग डर जायेगा?
कोऊ कहै अहौ स्याम!चंहत मारन जो ऐसें।
गिरि-गोवरधन-धारि,करी रच्छा तुम कैसें।।
ब्याल -अनल विष -ज्वाल तें,राखी लई सब ठौर।
अब विरहानल दहत हौ,हंसि हंसि नंदकिशोर।।
चोरि चित लै गयौ।।
भावार्थ:-
कोई गोपी कह रही हैं कि अहो स्याम,जो तुम हमें ऐसे ही मारना चाहते हो तो फिर गिरिराज पर्वत को धारण करके हमारी रक्षा क्यों करी। जंगल में आग की विष भरी ज्वाला से हमें एकजुट क्यों रखा। और अब उसी विरह रुपी अग्नि में हमें दहका रहे हो और हंस हंस के हमारे चित को चुरा रहे हो।
🙏🌹जय श्रीकृष्ण 🌹🙏


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