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July 8, 2025 9:26 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!-प्रेम में “मैं” कहाँ ? भाग 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!-प्रेम में “मैं” कहाँ ? भाग 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!

प्रेम में “मैं” कहाँ ?
भाग 2

महर्षि शाण्डिल्य नें वज्रनाभ को समझाया ….

….अहंकार बाधक है प्रेम मार्ग में ।

तो क्या गोपियों के मन में अहंकार आया ?

हाँ वज्रनाभ ! महर्षि नें कहा ।

कैसा अहंकार गुरुदेव ? और फिर क्या श्रीश्याम सुन्दर नें उन्हें छोड़ दिया……त्याग दिया ? एक ज्ञानी और योगी की भाँती इन प्रेमियों का भी पतन हो गया ?

नही वज्रनाभ ! नही ……..योगियों की तरह और ज्ञानियों की तरह प्रेमियों का पतन नही होता ……क्यों की प्रेमियों को सम्भालनें वाला स्वयं उसका प्रेमास्पद उसके साथ होता है ….उसके पीछे होता है ।

वो गिरनें नही देगा तुम्हे………अगर गिर भी गए तो वह तुम्हे अपनी बाँहों में भर लेगा…….हाँ वज्रनाभ !

पर उस अहंकार के रहनें तक वो इतना रुलाएगा ……कि तुम्हारा समस्त “मैं” भाव……बहा देगा…….निर्मल बना देगा तुम्हे वो ।

पर ऐसा हुआ क्या था उस रास मण्डप में ?

वज्रनाभ के प्रश्न बार बार पूछनें पर महर्षि आगे का चरित्र सुनानें लगे ।


श्याम सुन्दर ! ओ श्याम सुन्दर !

हाँ क्या है ?

श्याम सुन्दर ! मेरे केश बिखर गए हैं इन्हें बाँध दो !

श्याम सुन्दर ! ओ ! फिर दूसरी गोपी नें पुकारना शुरू किया ।

मेरे नाचते नाचते पसीनें आरहे हैं……अपनी पीताम्बरी से हवा कर दो !

श्याम सुन्दर उस गोपी को हवा करते हैं ….
..पहली गोपी के बालों को सुलझा देते हैं ।

“मेरे तो पैर दूख रहे हैं……मुझ से नही नाचा जाएगा “

बोलो ! बोलो ! नाचना है क्या मुझे ?

.श्याम सुन्दर से ही पूछती है वो गोपी ।

हाँ …..तुम अच्छा नाचती हो ……..श्याम सुन्दर मुस्कुरा के कहते ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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