उद्धव गोपी संवाद:
भ्रमर गीत
३७ एवं ३८
कोहू कहै,ए परम धरम स्त्री जित पूरे।
लछ-लाघव-संधान धरें,आयुध अति सूरें।।
सीता जू के कहे तें,सूपनखा पै कोपि।
छेदे अंग विरूप करि,लोंगन लज्जा लोपि।।
कहा ताकी कथा।।
भावार्थ:
गोपियां कह रही हैं कि, कोई तो इनको इन्द्रजीत और धरम के पक्के कहते हैं और इनके भ्राता लक्ष्मण अस्त्र शस्त्र के साथ रहते हैं। सीता जी के कहने पर, शूर्पणखा पर क्रोधित हो गए और उसके अंग छेद कर कुरुप बना दिया, इन्हें लज्जा भी नहीं आयी, अतः ऐसों की क्या बात कहें।
कोहू कहै री, और सुनों गुन इनके आली।
बलि राजा पै गए,भूमि मांगन बनमाली।।
मांगी वामन रूप धरि,परबत भए अकाई।
सत धरम सब छांडि कें,धरयौ पीठ पै पांई।।
लोभ की नाव ए
भावार्थ:
गोपियां कह रही हैं कि कोई इनके और गुन सुनो सखी,ये बलि राजा के पास भूमि मांगने चले गए और वामन रूप धरि के भूमि मांगी,नापते हुए पर्वत के समान हो गए। इसके कारण सच धरम सब छोड़ के बलि राजा की पीठ पर अपना पांव रख दिया,ऐसे लालची नाव हैं ये।
🙏🙏जय श्रीकृष्ण 🙏🙏


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