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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 43 !!
महाकाल का प्रेमरूप – “गोपेश्वर महादेव”
भाग 3
हे वज्रनाभ ! महादेव के मुखारविन्द से ये सब सुनकर मुस्कुराते हुये इस सरोवर को दिखाया था ललिता सखी नें ।
महादेव ! इस सरोवर का नाम है “मान सरोवर”……नही नही …..ये आपका कैलाश वाला मान सरोवर नही है……..यहाँ एक दिन ब्रह्म की आल्हादिनी श्रीराधा रानी मान कर गयी थीं …….तब बड़े परिश्रम से उन्हें मनाया था तुम्हारे ब्रह्म नें …….साकार ब्रह्म कृष्ण नें ।
ललिता सखी नें बताया …………तब से इस सरोवर का नाम “मान सरोवर” पड़ गया है ।
इसमें जो स्नान करता है ….प्रेम देवता उसके अहंकार को नष्ट कर देते हैं……सखी भाव जाग जाता है उसके अंदर…….ललिता सखी नें कहा ।
भगवान शंकर आनन्दित हो उठे ….. मानसरोवर में गए ………उस सरोवर में सीधे जाकर एक गोता लगाया ……….उसी समय भगवान शंकर का रूप बदल गया ………….वो गोपी बन गए …………सुन्दर सी गोपी …..जटायें भी उनकी शोभा ही बढ़ा रही थीं ……गौर वदन की गोपी ……..अच्छी खासी मोटी ताज़ी गोपी ……….लहंगा फरिया पहनी हुयी …..सोलह श्रृंगार में सजी ये गोपी ………..
नजर न लग जाए मेरे गोपेश्वर को …………..हँसी ललिता सखी ।
साँप बिच्छु सब लहंगा के भीतर छिप गए ……………..बड़े बड़े नयन ……नसीले नयन …………ललिता सखी नें कुछ सजा दिया ……कुछ संवार दिया …………..।
और लेकर चल दीं गोपेश्वर को ।
दिव्य रास मण्डल है………अब रास शुरू होनें ही वाला है ।
यमुना के पुलिन में श्याम सुन्दर उठे…….अपनी श्यामा को उठाया ।
वाम भाग में श्रीराधा रानी को लिया……….और वर्तुल आकार बना ….. सारी सखियाँ नाच उठीं ।
मध्य में श्याम सुन्दर….वाम भाग में श्रीराधिका…..गोपियाँ हजारों की संख्या में……चाँदनी रात्रि है …..चन्द्रमा अपनी पूर्णता में खिला है ।
नृत्य शुरू हो गया …..गायन शुरू हो गया ………रागों का आलाप भी शुरू हो गया ……………वीणा बज रहे हैं ………….मृदंग की थाप पर सब थिरक रही हैं …………..
ललिता सखी लेकर आयी महादेव को ……..सबका ध्यान गया ललिता के ऊपर……..और ललिता के साथ में आयी गोपी के ऊपर भी ।
कृष्ण नें ध्यान से देखा अपनें महादेव को ……….हँसे …..खूब हँसें कृष्ण ……….कृष्ण को हँसते हुए देखा तो महादेव भी हंस पड़े ।
सब को छोड़ दिया कृष्ण नें ……और अपनी नई गोपी के साथ नाचनें लगे …………….हँसी रुक नही रही कृष्ण की ।
पर ये क्या ! साँप निकला भीतर से …………
क्यों की ये सब भीतर ही छुपे थे…..पर इन्होनें जब देखा कि हमारे मालिक को कोई पकड़ रहा है ……तो ये सब बाहर आगये ….
शंकर जी नें मन में सोचा ये पोलपट्टी खोलेंगें ………..पकड़ा साँप को और दवा दिया ………पर अब तो बिच्छु भी निकलनें लगे ।
श्रीराधा रानी हंस रही हैं ……ललिता सखी हंस रही हैं ….श्याम सुन्दर हंस रहे हैं ……महादेव तो भोले बाबा हैं ……….वो तो सबको हँसता हुआ देख नाच रहे हैं ………डमरू बजा रहे हैं ।
श्याम सुन्दर नें हँसते हुए कहा ……….गोपेश्वर महादेव की जय ।
सब सखियाँ समझ गयीं थीं कि महादेव आये हैं ….हमारे महारास में ।
वृन्दावन आनन्दित हो उठा था….शरद की निशा आज धन्य हो रही थी ।
देवि पार्वती ! ये तो तुम्हारे पति महादेव शंकर हैं !
लक्ष्मी जी नें पार्वती जी को कहा ।
ये सब अंतरिक्ष से महारास की लीला का दर्शन कर रही थीं ।
हाँ …..ये तो मेरे ही पति हैं ………..मैने मना किया था …
पर ये तो गोपी बन गए हैं ……..देवि पार्वती नें झेपतें हुए कहा ।
मैं जाती हूँ ……….और देखकर आती हूँ ……….
देवि पार्वती को अच्छा नही लगा……और वो यहाँ वृन्दावन आईँ ।
आँखें खोलीं महर्षि शाण्डिल्य नें ………….और वज्रनाभ को भी कहा …..आँखें खोलनें के लिये………..फिर उठ गए
और सामनें भगवान शंकर की जो पिण्डी थी उसके पास गए ……..
हे वज्रनाभ ! ध्यान से देखो ………दुनिया के जितनें शिवालय हैं …….उसमें शिव पिण्डी मध्य में होती है …..और उनके अगर बगल में ही पार्वती गणेश जी की मूर्ति होती है …………….है ना ?
पर यहाँ देखो एक विचित्रता ! महर्षि नें बताया ।
यहाँ गोपेश्वर महादेव कुञ्ज में हैं ……..पर बाहर है पार्वती माता का विग्रह………….ये तुम्हे और किसी शिवालय पर नही मिलेगा ।
महर्षि शाण्डिल्य नें समझाया ।
और ऐसा क्यों ? वज्रनाभ नें पूछा ।
महर्षि नें इसका उत्तर उस दिव्य प्रसंग को सुना कर ही दिया ।
आओ ! चलो कैलाश ! पार्वती जी नें कहा ।
कुञ्ज के भीतर बैठे हैं गोपेश्वर ।
मस्ती में हैं ……प्रेम की मस्ती है …….रास की मस्ती है …..महारास की खुमारी चढ़ी हुयी है ………वृन्दावन की भूमि में गोपेश्वर मस्त होगये ।
पार्वती की सुनते नही हैं गोपेश्वर ………पार्वती भीतर कुञ्ज में जाती नही है ……..और प्रेम सागर में डूबे महादेव बाहर आते नही है ।
पार्वती भीतर क्यों नही जातीं ? वज्रनाभ नें फिर प्रश्न किया ।
क्यों की ……..महर्षि हँसते हुए बोले…….पार्वती को लग रहा है ……इस कुञ्ज की सीमा में ही कुछ जादू है …………..भीतर जाते ही भगवान शंकर स्त्री हो गए …….कहीं मैं गयी और मैं पुरुष हो गयी तो ?
खूब हँसे महर्षि शाण्डिल्य ये कहते हुए ।
और आज तक देख लो वज्रनाभ ! इसी गोपेश्वर महादेव का स्थान है वृन्दावन में जहाँ भीतर अकेले हैं महादेव …….बाहर हैं पार्वती गणेश जी ।
क्यों की हम भी बदल गए तो …..इस डर से ये भीतर नही जा रहे ।
हँसे वज्रनाभ , खूब हँसे ………………
देखो ! प्रेम की महिमा …..मृत्यु के देवता , प्रलयंकर , संहार करनें वाले…….वो महाकाल …………आज वृन्दावन में गोपी बन गये ।
ध्यान में लीन हो गए थे इस “प्रेम प्रसंग” को सुननें के बाद दोनों ही ।
शेष चरित्र कल…🙏
✒️ राधे राधे✒️


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