उद्धव गोपी संवाद( भ्रमर गीत)७१ एवं ७२ : Niru Ashra
उद्धव गोपी संवाद( भ्रमर गीत)७१ एवं ७२ करूनामई रसिकता है,तुम्हरी सब झूंठी।तब हीं लों कहौ लाख,जभी लौं बंध रही मूठी।।मैं जान्यौ ब्रज जाइकें,निरदै तुम्हारौ रूप।जो तुम्ह कों अवलंब ही,तिन्ह को मेलौ कूप।।– कौन यह धरम है?-भावार्थ:ऊधौ जी अब भगवान से कह रहे हैं कि तुम्हारी करूणा तुम्हारी दया,उन गोपियों के प्रति यह सब झूठ है। … Read more