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October 22, 2025 4:36 am

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“श्रीराधाचरितामृतम्” 44 !!-महारासभाग 2 : Niru Ashra

“श्रीराधाचरितामृतम्” 44 !!-महारासभाग 2 : Niru Ashra

🙏🙏🙏🙏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 44 !!

महारास
भाग 2

हे वज्रनाभ ! यही महारास है ।

कोई नही है इस वृन्दावन में आज ……………..

न कोई पुरुष है, न कोई स्त्री है, न कोई कृष्ण है न ही गोपी हैं ।

बस रस है …….मात्र एक ही तत्व है इस वृन्दावन में ……वो है रस ।

रस ही गोपी हैं …..रस ही गोपाल हैं …..रस की रसीली ही श्रीराधा हैं…. …रस ही वृन्दावन है ….उन्हीं रसो के समूह का ही नाम “रास” ……महारास है ।

हे वज्रनाभ ! इस भूमि नें …..इस पवित्रतम भूमि श्रीधाम वृन्दावन में जो रस बरसा ……..जिस रस के समूह का एक साथ नर्तन हुआ ……..वो देवों को भी और महादेवो को भी चकित करनें वाला था ।

देव विमानों में बैठ अंतरिक्ष में आगये थे …….वे सब अकेले नही थे उनकी पत्नियाँ भी साथ में थीं ……….पूरा अंतरिक्ष विमानों से छा गया था ………और जैसे ही महारास प्रारम्भ हुआ वृन्दावन में …….फूलों की वर्षा शुरू कर दी थी देवों नें……..गन्धर्वों नें वाद्य सम्भाले थे …..नारद जी अपनी वीणा बजाते हुए नाच रहे थे ।

हाँ अप्सराओं नें गोपियों की नकल करनी चाही नृत्य में……पर कहाँ ?

हाँ ये गोपियाँ, जो भोग विलास से दूर मात्र विशुद्ध प्रेम की दीवानी ……और कहाँ ये स्वर्ग की अप्सरायें ……जिनका उद्देश्य ही भोग में लिप्त रहना है ……….कोई बराबरी ही नही थी इन दोनों में ।

इन्द्र पत्नी नें अप्सराओं को बिठा दिया …………….भद्दा लग रहा है तुम्हारा नाचना ……कहाँ ये देहातीत गोपियाँ और कहाँ तुम ?

अप्सरायें बैठ गयीं ।……श्रीधाम वृन्दावन में महारास चल रहा है ।

कृष्ण नें स्पर्श किया गोपियों को ………बस उन मुरली मनोहर का स्पर्श पाते ही , सन्निधि मिलते ही गोपियों की पद गति तीव्र से तीव्रतम होती गयी ………।

मध्य में रसशेखर श्याम सुन्दर ……..अपनी “श्री जी” के साथ ठुमुक रहे हैं ……इतना ही नही …….बाँसुरी भी बजा रहे हैं …….और गा भी रहे हैं …….श्याम सुन्दर और उनकी श्रीराधारानी अन्य गोपियों की ये मण्डली इतनी सुन्दर लग रही थी कि देवों को भी देह सुध न रही ।

अप्सरायें उनकी चोटी ढीली हो गयी ………..उनमें से फूल गिरनें लगे ………साड़ी जो पहनी हुयी थीं………वो साड़ी खिसकनें लगी ।

उन सबका देह काँपने लगा था ।

इधर वृन्दावन में चाँदनी रात है ………….पूर्णिमा है, चन्द्रमा अपनी पूर्णता में खिला है ….यमुना का सुन्दर पुलिन है ………….

रासेश्वर नें सप्तम स्वर उठाया ………..और वह गूंजता चला गया ……सारे ब्रह्माण्डों को चीरता वह स्वर ब्रह्म लोक से भी आगे निकल गया था ।

गगन में सब स्तब्ध हो गए थे ……गायन अपनें चरम पर था ………सब नाच रही थीं गोपियाँ ……और द्रुत गति से नाच रही थीं …… साथ में गायन भी चल रहा था …………….

क्रमशः …
शेष चरित्र कल ……🙏

🍃🌸 राधे राधे🌸🍃

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