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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 46 !!
सती शिरोमणि “श्रीराधारानी”
भाग 2
हाँ बाबा ! हम बहुत दुःखी हैं ……….ये हमारा पुत्र है ………पर पता नही आज दो दिन हो गए हैं……न ये आँखें खोलता है ……न ये जल ही पी रहा है…..बाबा ! कृपा करो आप ! यशोदा बिलखते हुये बोली थीं ।
अच्छा ! मैं देखता हूँ ………ऐसा कहते हुये उन बाबा नें नाड़ी देखी कन्हाई की…….आँखें बन्दकर के नाड़ी को सुना …….फिर वक्ष को भी छूआ……आँखें देखीं……..मुँह देखा ।
फिर आकाश की ओर देखते हुये कुछ बुदबुदाये ……………..
बाबा के माथे में चिंताओं की रेखाएं उभर आयी थीं ।
बाबा ! बताओ , सब ठीक तो है ना !
यशोदा रो पडीं ……….बाबा ! कुछ तो बोलो ।
हे बृजरानी ! बस एक ही उपाय रह गया है अब ………….कि इस बृज मण्डल की जो सती हों वो यहाँ पधारें ………..और –
इतना कहकर वो साधू बाबा कन्हैया के पास गए …….और उनकी एक घुँघराली लटें खींचीं………..उस बाल को जोड़ जोड़ के लम्बा किया ……….सामनें यमुना में गए यमुना के इस पार से उस पार कन्हैया के केश को बांध दिया …………
फिर बृजरानी से बोले ……..एक कोई कलश होगा ?
हाँ हाँ है बाबा ! यशोदा नें कलश मंगवाया ……………
बड़ा विचित्र बाबा था ये ……..एक सुवर्ण की कील निकाली ……और उस घड़े में शत छिद्र कर दिए ।……फिर लंबी साँस ली ……बृजरानी ! अब तैयार हो गया ……..इस कलश को उठाकर इस केश के पतले तार पर चलना है ………मध्य में यमुना जल भरते हुये मेरे पास तक कलश को ले आना है …….पर ये कार्य कोई महान् सती ही कर सकती है.. ….पूर्ण सतीत्व होना चाहिये उसमें…..पतिव्रता ……बाबा मुस्कुराये ।
पिटवा दिया ढिंढोरा पूरे बृजमण्डल में, बृजपति नन्द जी नें……
” कि बृज की आदरणीय सतियों को निमन्त्रण है………वे पधारें और मेरे पुत्र को जीवन दान दें…….बड़ी विनम्र प्रार्थना थी मुखिया जी की ।
आईँ सतियाँ ………बड़ी बड़ी पतिव्रतायें ……..पर उस पतले से केश के बाल में पैर रखकर छिद्र वाले कलश में जल भरना …….अधिकतर सब डर गयीं ……….किसी नें तो प्रयास ही नही किया, किसी नें किया भी तो वो असफल रहीं ।
ये सब देखकर बृजरानी यशोदा से रहा नही गया ……….”किसी से ये कार्य नही हो रहा है ……कलशा लेकर स्वयं ही चल पडीं यशोदा …….मैं भी सती हूँ……..मैं लाऊँगी जल ……..आवेश में आगयीं थीं ।
पर आपके लानें से नही होगा………उन बाबा नें साफ मना कर दिया ।
क्या मैं सती नही हूँ ? यशोदा को आवेश था ।
नही माँ ! आप परम सती हैं…इसमें किसी को सन्देह नही है ……पर आप इनकी माता हैं इसलिये आपके द्वारा लाया गया जल आपके पुत्र के लिये उपचारक सिद्ध नही होगा ।
ओह ! फिर विलाप करनें लगीं यशोदा ।
“हमारे बरसानें में एक बड़ी सिद्ध माता हैं”……..बरसानें की एक स्त्री वहीँ थी ………वो सब देख रही थी………तो उसनें कह दिया ……”जटिला” नाम है उनका……..बड़ी सती हैं……..सिद्ध सती हैं ……और इतना ही नही उनकी पुत्र वधू भी परम सती हैं ।
बृजपति नें बात पहुँचाई बरसानें …………बरसानें में बात जैसे ही पहुँची……..वहाँ तो हल्ला हो गया…….जटिला बुढ़िया के पास सूचना गयी……..वो बड़ी खुश ………
बृजपति के यहाँ सतियों का बड़ा सम्मान हो रहा है ……आपको भी बुलाया गया है…….और आपकी बहू को भी ।
तुनक कर बोली जटिला – बृजपति के यहाँ क्या……सतियों का सम्मान तो बड़े बड़े देवता भी करते हैं …….अरे तुमको क्या पता तीनों देवताओं को अपनी गोद में खिलाया था महासती नें ………तुम क्या जानों सतियों की महिमा को ?
अच्छा ! चलो अब दावत है तुम्हारी नन्द गाँव, अपनी बहु को भी ले लो …….बरसानें की अन्य महिलाओं नें कहा जटिला से …….जटिला अपनी बहु को साथ में लेकर चल पड़ी थी नन्दगाँव ।
ललिता सखी नें देख लिया…….क्या कारण है, वहाँ नन्द गांव में कि इस जटिला को बुलाया गया है…….चलूँ ! देखूँ मैं !
इतना कहकर चल पड़ी ललिता सखी भी पीछे पीछे जटिला के।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल…🙏
🌸🍃 राधे राधे🍃🌸

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