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October 24, 2025 11:29 am

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!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!-चतु:पन्चाशत् अध्यायः Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!-चतु:पन्चाशत् अध्यायः Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!
( चतु:पन्चाशत् अध्यायः )

गतांक से आगे –

हम भक्त हैं …जानते हो भक्त की परिभाषा क्या है ? भक्त उसे कहते हैं जो कभी विभक्त न हो …यानि अपने सनातन प्रियतम को छोड़कर वो कहीं और मन न लगाये । नाम , प्रियतम के नाम के प्रति रुचि हो …..गौरांग देव अपने भक्तों के मध्य में बैठकर बोल रहे थे …रुचि …इसी पर जोर दे रहे थे …मात्र नाम जाप नही करना है …उस नाम के प्रति रुचि हो …ये आवश्यक है ।

आज अठारह वर्ष हो गये गौरांग देव को जगन्नाथ पुरी में आये …….

नाम संकीर्तन करते हुये हमारे नेत्रों से अश्रु बहने चाहिए ….रोना और हरिनाम …बस ये दो चीज अगर तुम्हारे जीवन में आगयी तो समझो तुम्हारे पास श्रीकृष्ण आ गये । आँसु ही भक्तों के आभूषण हैं …सूखी आँखें अच्छी नही लगतीं ….अरे आँखों की शोभा ही इसमें है कि ये अश्रुजल से भरी रहे ..आह ! गौरांग देव आज बहुत दिनों के बाद बोल रहे थे ..अठारह वर्ष में अन्तिम बारह वर्ष तो गौरांग देव के भावोन्माद में ही बीते । इन्हें देह सुध कहाँ थी …नेत्रों से अश्रु बहते नही थे पिचकारी की तरह छूटते थे…..भगवान जगन्नाथ के मन्दिर में जाते तो वहीं मूर्छित हो जाते …भक्त उनको सम्भाल कर लेकर आते थे । यही क्रम था इसलिये पण्डे पुजारियों ने मन्दिर प्रवेश में रोक लगा दी थी । कृष्ण , हा कृष्ण ! हा नाथ ! हा गोविन्द ! हा प्रिय ! हरि बोल ..ये नाचते …पर देह में शक्ति रही नही अब …क्यों की न आहार था न नींद थी ..देह कब तक सहेगा ये सब ।


इधर नवद्वीप में विष्णुप्रिया बैठीं हैं….
गौरांग देव की चरणपादुका को सिंहासन में विराजमान करके ।

ध्यानस्थ हैं ….किन्तु ध्यान में गौरांग ही प्रकट हो रहे हैं । ध्यान गहरा होता गया …विष्णुप्रिया गौरांग देव के दर्शन करना चाहती हैं ……ध्यान में ही उनकी ये इच्छा शतगुणी बढ़ गयी । स्थूल देह में बैठी हैं ….किन्तु सूक्ष्म देह चल दिया नीलान्चल धाम । जहां भगवान जगन्नाथ के साथ साथ महाप्रभु गौरांग देव भी विराज रहे हैं । इस दिनों आषाढ़ मास भी है …..रथ यात्रा की धूम है ….जगन्नाथ पुरी में …..विष्णुप्रिया देखती हैं ……


भक्त लोग चिन्तित हो उठे हैं …..क्यों की गौरांग महाप्रभु इस तरह गम्भीर कभी हुए नही ।

उनके ललाट से दिव्य तेज प्रकट हो रहा था …..भक्त चकित थे ….मुखमण्डल इतना तेज पूर्ण था कि उनकी ओर कोई देख नही पा रहा था ।

तभी उनके मुख से कृष्ण नाम निकलने लगा …..कृष्ण नाम मुख से ही नही उनके रोम रोम से प्रकट हो रहा था ….भक्त लोग कुछ समझ नही पा रहे थे कि तभी ….श्रीजगन्नाथ मन्दिर की ओर गौरांग देव दौड़ पड़े , ये देखते ही भक्त जन भी उनके पीछे भागे ….पर कोई समझ नही पा रहा था कि इतनी शक्ति गौरांग देव में कैसे आयी । वो किसी के पकड़ में नही आरहे थे …मन्दिर में लोग ज़्यादा नही हैं आज …..कुछ गिने चुने हैं ….महाप्रभु गौरांग देव दौड़ते ही गये …उनका उत्तरीय कहाँ गिरा किसी को पता नही …वो उन्मत्त दशा में थे । गौरांग देव दर्शन करते थे गरूणस्तम्भ से …किन्तु आज ये वहाँ भी नही रुके ….ये दौड़ते चले गये सीधे गर्भगृह में …..दो चार लोग ही थे उन्होंने ध्यान दिया नही …..पुजारी थे किन्तु अपने कार्य में व्यस्त थे ….गौरांग गये और हाथ जोड़कर खड़े रहे ….उनके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे ….वो पुकार रहे थे ….हे दीन बन्धु ! हे दयामय देव ! हे कृष्ण ! हे कृपा सिंधो ! आप इन कलियुग के जीवों पर दया कीजिये ! हे नाथ ! नाम संकीर्तन सर्वोच्च साधना है ….नही नही , ये साधना नही है ये तो स्वयं साध्य है …क्यों की नाम भी तो आप ही हो ….इसलिये जो आपका नाम ले उसे आप स्वीकार करो …हे नाथ ! जो आपका एक बार भी नाम ले ले वो कितना भी बड़ा पापी हो उसे आप अपना लो । नाथ ! मेरी प्रार्थना सुन लो ….इतना कहते हुए गौरांग देव भगवान जगन्नाथ को आलिंगन करने लगे ….ओह! वो तो आलिंगन करते करते ही समा गए भगवान जगन्नाथ में ।

कहाँ गए महाप्रभु ?
भक्त खोजने लगे …..किन्तु गौरांग महाप्रभु तो अपने स्वस्वरूप में स्थित हो गये थे । भगवान जगन्नाथ में समा गये थे ।


ये क्या ! नाथ भी चले गये ?

विष्णुप्रिया ने सब देखा था …अपने सूक्ष्म देह से वो वहीं तो थी ………

रोना ? अब क्या रोना ? विष्णुप्रिया साष्टांग प्रणाम करती है …भगवान जगन्नाथ को …क्यों की अब उसके पति जगन्नाथ से विलग नही हैं । वो देखती रहती है …भक्त जन रो रहे हैं ….बिलख रहे हैं ….कितने भक्तों ने तो अपने प्राण ही त्याग दिये । विष्णुप्रिया सब कुछ देखती है …..फिर वापस अपने नवद्वीप में आजाती है …और अपने स्थूल देह में प्रवेश कर जाती है ।

वो अब गम्भीर हो गयी है …..अतिशय गम्भीर …..माता शचि देवि चली गयीं नाथ भी छोड़ गये ….वो नेत्र खोलती है ….कान्चना रो रही है …..वो पूछती है – क्यों रोती है तू ? कान्चना उत्तर देती है ….सूचना आई है ……क्या सूचना है ? विष्णुप्रिया फिर पूछती है ।

“गौरांग देव चले गये”…….कान्चना इतना कह पाती है ।

विष्णुप्रिया शान्त है …..वो उठकर गंगा की ओर चल देती है …….

गंगा घाट है …..वो देखती है ….फिर अपने प्राण त्यागने के लिए तैयार होती हैं ।

“निमाई ! ऊपर से मत कूदना ….विष्णुप्रिया ! मत जा गंगा घाट वहाँ निमाई है …वो छेड़ता है ।

चल लड्डू दे ……निमाई छोटा सा है माँग रहा है , विष्णुप्रिया भी तो छोटी है ….वो दे देती है …तुझे अच्छा पति मिले ….मेरे जैसा सुन्दर पति मिले । “

विष्णुप्रिया गंगा घाट को देखती है …उसे पहले का सब स्मरण में आने लगता है ।

नही , तुम्हें अभी जीना है ….स्वामी सच में ही कठोर हैं …आदेश और दे दिया इस बेचारी को ।

चलो प्रिया !

केश काटने के लिए सब महिलायें आगयीं हैं ।

केश काट लेती है विष्णुप्रिया …गहने उतार देती है …गैरिक वस्त्र …..गैरिक वस्त्र जो उसके पति के हैं …माता शचि लाईं थीं …उन्हीं को पहन लेती है ..और मौन हो कर अपने घर चली आती है ।

शेष कल –

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