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विरही- गोपी- उध्धव छे- संवाद-१३🦚
🌹 भ्रमर -गीत🌹
👉 गोपियां की व्यथा भाव-२
🪷 यमुनाजी के किनारे सब गोपियाँ ब्रजजन जब मिलते हैं तो सभी अपनी अपनी विरह व्यथा का एक-दूसरे से बातें करते हैं। प्रभु विरह, दुःखसागर में डूबे हैं कौन, किसको सांत्वना देवे समझ नहीं आता है? कौन, कैसे धीरज संतोष करावें। सभी श्याम के ताप से तप रहे हैं, प्रभु के बिना कौन मन समझावे?
👏 समय अपनी गति से चल ऋतुऐं आ जा रही है, गोपियोनो की पसन्द वर्षा ऋतु आई बादल घुमड़-घुमड़ आ गोप-गोपियाँ बादलों को आकाश में देख निरख रही। एक विरहिणी ऊंची आवाज में पुकारने लगी “सखी, देखो तो प्रभु ‘श्याम पधार्या’, ‘श्याम पधार्या’ ‘श्याम’ शब्द सुन पास खड़ी गोपी भी दौड़ पड़ी और वे भी चिल्लाने लगी ‘श्याम पधार्या’, ‘श्याम पधार्या’ किन्तु कोई भी खुलासा नहीं करती प्रभु कहाँ है?”
🌻 विरह में पागल हो एक ही धुन में ‘श्याम पधार्या’, ‘श्याम पधार्या’ श्याम प्रभु कहाँ है सखी ?
अरे सखी! मुझे तो लगता है तुम्हारी आँखों की रोशनी कम हो गई, ऐसा लगता है? देख तो आकाश में श्याम पधार्या है गोपी विरह में पागल-बावरी हो कहती देख तो घन-घन बादल को कृष्ण समझ बैठी विरह बावरी गोपी तो सिर्फ एक ही रटते रही प्रभु श्याम पधार्या। श्याममोहन पधार्या।
🌹 “जित देखो तित श्याम मई है
कुंज वन यमुना श्यामा श्याम
गगन सब रंगन में श्याम भर्यो है”
गोप-गोपियों को काले बादलों और श्याम एक से लगते हैं काले बादल आकाश में चलते देख श्याम समझ दर्शन करते और इंद्रधनुष दिख रहा, मानो प्रभु का पीतांबर लग रहा है। चमकती बिजली में श्याम की झाँकी अनुभव हो रही। मानो बादलों में उड़ते बगुले, पक्षी, हार, मोतीमाला सी प्रतीत हो रही। बादलों की गर्जना, मानो श्याम पुकार बुला रहे हो।
*गोपियाँ बादलों को उलाहना ठपका दे कहती है : हे मेघ, तू हमारे माधव गोविंद के बिना बेकार में क्यों गरज कर हमारा दिल जला रहा हैं। तुझे थोड़ी भी लाज शरम नहीं आती है ? ऐसे में तेज बादलों की घनघोर गर्जना होते ही मोरों के झुंड नाचते टहलने लगे। गर्जना का स्वागत कर रहे और सभी आवाज करने लगे। ऐसे माहौल में गोपियाँ मोरों के पास जा मोर के चरणों में प्रार्थना कर कहती “हे मोर भैय्या, तू तो श्याम प्रभु का अतिप्रिय है, तुम्हारे पंख श्याम अपने मस्तक पर धराते हैं” मोरों के बीच खड़ी गोपी बोली।🪷 *विरही गोपी- १४*
🍁 क्रिष्णा 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

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