!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 51 !!
“होरी” – मधुर रस का अद्भुत समर्पण
भाग 2
कहाँ खेलकर आये हो होरी ? किसनें खिला दिया तुम्हे होरी ?
व्यंग बाणों की चोट सह रहे थे श्याम सुन्दर ।
आँखें तो लाल हो गयीं ………..पर तुम्हारे लाल अधर कैसे काले पड़ गए ? ये होंठ तो तुम्हारे लाल थे ना ……..फिर कैसे काले पड़े ?
श्रीराधा रानी फिर व्यंग कसती हैं ।
सखी के काजल लगे नयनों को चूमा होगा तुम्हारे अधरों नें …….मैं सब समझती हूँ …………..जाओ ! मेरे पास से जाओ ।
तभी …………..बाहर से हल्ला शुरू हो गया ………”होरी है”….
नन्द गाँव के सब ग्वाले बृषभान जी के महल में आ खड़े हुए थे ।
श्रीराधा जी नें देखा कन्हैया को ………सिर झुकाये खड़े हैं ……..नयनों से अश्रु टपकनें लगे ……………हाथ जोड़ लिए ।
श्रीराधा को दया आगयी ……………….कृष्ण को पकड़ कर अपनें हृदय से लगा लिया …………दोनों युगलवर गले मिलते रहे ………।
अब थोड़ा इधर भी तो आओ ………………हँसते हुए ललिता सखी नें कृष्ण को अपनी तरफ खींचा ………………..
रंग देवी सखी लहंगा फरिया ले आई …………….और बड़े प्रेम से …….जो जो पहनें हुए थे सब उतार दिया …….और लहंगा पहना दिया ….फरिया पहना दिया …………चूनर ओढ़ा दी ………लाल टिका लगा दिया …………बेसर लगा दी नाक में ……………पैरों में पायल ………बालों को गूँथ दिया …….बड़े सुन्दर लग रहे हैं अब तो ये ।
लो जी ! सिन्दूर दान भी स्वयं श्रीराधा रानी नें किया ….कृष्ण की माँग में ……..आहा ! नजर न लगे ….श्रीराधा रानी देख रही हैं बड़े प्रेम से ।
“होरी है”………फिर चिल्लाये सब नन्दगाँव के ग्वाले ……….।
सखियों ! जाओ तो इस बार इन नन्दगाँव के ग्वालों को ठीक करके ही आओ…….देखो ज्यादा ही उछल रहे हैं ये सब ।
रँग गुलाल से नही मानते ये ……….ललिता सखी बोली ।
तो लठ्ठ बजाओ इन सब पर ……….हँसते हुए श्रीराधा रानी बोलीं ।
बस फिर क्या था ………..ऊपर से कुछ सखियों नें रंगों की वर्षा कर दी ……और कुछ नीचे लठ्ठ लेकर तैयार ……………..
रंग से भींग गए ….नहा गए ……कोई किसी को पहचान नही पा रहा ……अबीर उड़नें लगे आकाश में …………फूलों की वर्षा रंगों के साथ साथ हो रही है ………अब तो पिचकारी लेकर खड़ी हैं भानु दुलारी ।
तभी सखियों के पास जानें की जैसे ही कोशिश की ग्वालों नें…….
सखियों नें लठ्ठ बजानें शुरू कर दिए …………ग्वाल बाल भागे ……पर सखियाँ भी कहाँ कमजोर थीं ……वो भी भागीं पीछे ।
हँसते हुए इस प्रसंग को बता रहे थे महर्षि शाण्डिल्य ………….
पूरे बरसानें में कीच ही कीच मच गयी है ……केशर की कीच है चारों ओर ………..पिचकारी की झरी लग गयी है ………..
और कुछ सखियाँ लगातार लट्ठ बजा रही है नन्दगाँव के ग्वालों के ऊपर…..भागते जा रहे हैं ग्वाले…….अपनें आपको बचाते जा रहे हैं ।
पर ये क्या ? श्रीराधा रानी अद्भुत सौन्दर्य के साथ, अपनी अष्ट सखियों के साथ ………चली जा रही हैं ।
नन्दगाँव दूर नही है बरसानें से …….पैदल ही चलीं नन्दगाँव ।
पर ग्वालों को इस बार मार मारकर भगाया है इन सखियों नें………..लट्ठ से खूब पूजा करी है इनकी ।
पर अब श्रीराधा रानी अपनी सखियों के साथ नन्दगाँव पहुँची …….और बड़ी खुश थीं ……….गारी गा रही थीं सखियाँ ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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