!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( अद्भुत जोरी – “बनी श्रीराधा मोहन की जोरी”)
गतांक से आगे –
अद्भुत जोरी है ……इनका करो ध्यान ।
रस और आनन्द की ये जोरी …श्रीराधा रस हैं तो श्याम सुन्दर आनन्द ….जब रस और आनन्द मिल जाये …तब विचार करो …क्या हो ?
अजी ! क्षणिक सुख ( आनन्द नही ) के पीछे ही हम पागल हैं ..स्त्री पुरुष एक दूसरे में मर रहे हैं ..नैतिक अनैतिकता को फेंक दिया है ..परिणाम में अत्यन्त दुर्गति होगी , उसकी भी परवाह नही है ।
फिर विचार करो …..सुख में लोगों की ये स्थिति है तो आनन्द में क्या स्थिति होगी ? फिर उस आनन्द में अगर रस मिल जाये तो ?
विशुद्ध रस तत्व उस आनन्द से मिल कर बैठा है …सट कर बैठा है …रस का ही विस्तार है ..चारों ओर रस नाच रहा है ..आनन्द थिरक रहा है …ये देखकर सखियाँ गदगद हैं ..वो सब भूल गयीं हैं ।
अरे ! ये क्या है ? रंगदेवि सखी सुदेवी के गालों को चूम रही हैं ?
ओह , सुदेवी को नही चूम रही …रंग देवि ने देखा कि सुदेवी के अत्यन्त गोरे कपोल में युगल का प्रतिबिम्ब पड़ रहा है ..इसलिये उसने दौड़ कर सुदेवी के कपोल को चूम लिया ।
वो युगल की झाँकी कैसी होगी ! वो जोरी कैसी होगी ! दिव्य अद्भुत प्रेमघन के मूर्त रूप …श्रीराधा मोहन लाल जू आज सिंहासन में विराजे हैं …..ये रस और आनन्द का सागर हिलोरें ले रहा है …आप दर्शन कीजिये ….पर दर्शन करते हुये उनका जो सौन्दर्य है वो नव नवायमान लगता है …प्रेम सच में पुराना नही होता …प्रेम पुराना हो जाये तो वो प्रेम ही नही है ।
ये राधा बाग !
अब तो यहाँ के वृक्ष-लता , पक्षी आदि भी सब मुझे पहचानने लगे हैं …कल की घटना है …मैं श्रीवृन्दावन से बरसाना “राधा बाग” जैसे ही पहुँचा …बाहर मुझे देखते ही एक मोर उड़ गया ….और भीतर कुँज में पागल बाबा के पास जाकर अपने पंख हिलाने लगा …वो मुझे देख रहा था और बाबा को बता रहा था कि – ये आगये ।
मुझे क्या चाहिए अब ?
परसों की बात और सुन लो ..एक वृक्ष है राधा बाग में ..तमाल का …उसे मैं हृदय से लगाता हूँ जब मैं वहाँ जाता हूँ । कल मैं तमाल को हृदय से लगा रहा था कि मुझे तमाल वृक्ष की धड़कनें सुनाई दी …मुझे लगा मेरा भ्रम होगा …पर नही, मेरा वो भ्रम नही था । सच में उस तमाल का हृदय धड़क रहा था ।
ये सिद्धि है रसोपासना की ।
जब मोर आदि पक्षी आपको देखकर आनंदित हो जायें …वृक्ष के हृदय की आवाज आप सुन सको । आप श्रीधाम के लता पत्रों से बातें करो …और वो तुम्हारी बातें सुनें ..हरियाली देख कर तुम्हें युगल स्वरूप का स्मरण होने लगे …अजी ! ये सिद्धि है इस रसोपासना की ।
मैं भी आज ज़्यादा क्यों बोल रहा हूँ …आपको तो मेरे साथ आज ध्यान करना है …निकुँज में देखो , अखिल सौन्दर्य के निधि ये “श्रीराधा मोहन की जोरी” के दर्शन करो ।
गौरांगी लेकर बैठी है वीणा …चारों ओर रसिकों की भीर जुड़ गयी है …आज गायन है श्रीहित चौरासी जी के नौवें पद का …इसमें झाँकी है …क्या अद्भुत झाँकी है , उफ़ ।
गौरांगी ने प्रारम्भ किया गायन ….उसे पूरा राधा बाग गाने लगा था ।
बनी श्रीराधा मोहन जू की जोरी ।
इन्द्र नील मनि श्याम मनोहर , सात कुंभ तन गोरी ।
भाल विशाल तिलक हरि कामिनी , चिकुर चन्द्र बिच रोरी ।
गज नाइक प्रभु चाल गयन्दनि, गति वृषभान किशोरी ।
नील निचोल जुवति मोहन पट , पीत अरुण सिर खोरी ।
श्री हित हरिवंश रसिक राधा पति , सुरत रंग में बोरी ।9।
बनी श्रीराधा मोहन जू की जोरी ……………
बाबा ने आज अपने नेत्र खोले ही नही हैं ….वो उसी रूप सुधा का पान कर रहे हैं ….उनसे आज प्रार्थना करनी पड़ी कि आप बोलिए …ध्यान बताइये । तब जाकर कुछ बहिर्मुखता आयी …और बाबा ने बोलना शुरू किया ।
!! ध्यान !!
सुन्दर मान सरोवर है …उसका जल अत्यन्त निर्मल है ..उस मान सरोवर के घाट और सीढ़ियाँ मणियों से बनी हुई हैं ..शीतल हवा चल रही है ..हंस उस सरोवर में उन्मत्त होकर विहार कर रहे हैं ।
“अब स्नान कर लीजिये”…सखी ने आगे बढ़कर युगलसरकार से कहा ।
सखियाँ ही सब कुछ हैं …ये जो कहें ।
चलो सखी ! श्रीश्यामा जू ने कहा ..और श्याम सुन्दर को गलबैयाँ दिये , चल दीं । दोनों ने स्नान किया ..वस्त्र धारण कराये सखियों ने ..फिर श्रृंगार हुआ युगल का ..अब चलीं कुँज में ।
ये कुँज अद्भुत है ..इस कुँज में नाना प्रकार के पुष्प हैं ..इस कुँज के छ द्वार हैं । मध्य में एक जल कुम्भ भी है जिसमें कमल खिले हैं …इस कुँज के जो खम्भे और छत हैं ..सब जाली के हैं ..वो जाली रंग बदलते रहते हैं ..कभी स्वर्ण के लगते हैं तो कभी नीलमणि के ।
मध्य में चन्द्रमणि कान्ति लिए हुये एक दिव्य सिंहासन है …उसकी रचना अनुपम है ..उसी में जाकर प्रिया प्रियतम विराजमान हो गये हैं ..चारों ओर सखियाँ हैं , ललिता सखी चंवर ढुरा रही हैं तो विशाखा सखी पंखा कर रही हैं ..रंगदेवी और सुदेवी मधुर गान कर रही हैं । तुंगविद्या और चित्रा सखी वीणा और मृदंग बजा रही हैं । इन्दुलेखा सखी और चम्पकलता ये बीरी बनाकर रख रही हैं । गुलाब जल के फुब्बारे छूट रहे हैं ..जिसके कारण कुँज में शीतलता सुगन्ध और बढ़ गयी है ।
अब आगे हित सखी आती हैं …और श्यामाश्याम के इस झाँकी का वर्णन करके बताती हैं ।
आहा ! सखी , नज़र न लगे …कितनी प्यारी जोरी है श्रीराधा मोहन की …एक सी बनी है जोरी । देखो तो – दृष्टि से उतरती हुयी सीधे हृदय में पहुँचती है …..
क्या उपमा दूँ ! हित सखी मुस्कुराती है …क्यों की ये दोनों इतने सुन्दर हैं ….कि कोई उपमा देते नही बनता । कोई उपमा ही नही है ।
फिर भी कुछ तो बोल ….अन्य सखियाँ कहती हैं ।
तब हित सखी कहती है …इन्द्र नीलमणि के समान श्याम सुन्दर का वर्ण है और श्रीराधा जी गोरी हैं …गोरी तो हैं पर कैसी गोरी ? सखी कहती है ..सातकुंभ …यानि सुवर्ण के समान …सुवर्ण के समान गोरी हैं हमारी प्यारी जू । और सखी देखो …हमारे श्याम सुन्दर के विशाल और सुन्दर भाल में रोरी का तिलक लगा है तो हमारी किशोरी जी के भी भाल मध्य में रोरी की छोटी सी बिन्दु है …वो कितनी सुन्दर लग रही है ।
जोरी बन गयी है सखी !
अब देखो …रस राज्य के ये राजा श्याम सुन्दर जब चलते हैं तो ऐसा लगता है …जैसे कोई मत्त गजराज चल रहा हो ….और हमारी श्रीकिशोरी जी जब चलती हैं तो ऐसा लगता है जैसे – मत्त रूप यौवन सम्पन्न कोई मन्द गति से हथिनी चल रही हो । चाल में भी जोरी बनी है सखी ! ये कहते हुये हंसी हित सखी ।
अब सखियाँ अपलक नयनों से निहारती हैं अपने युगल सरकार को …..
कुछ देर के लिए सब मौन हो जाती हैं ।
सखी ! देखो ….पीताम्बर प्यारे के अंग में और प्यारी के अंग में नीलांबर , कितना सुन्दर लग रहा है ..और इतना ही नही …सिर में देखो …लाल पाग …इसकी शोभा तो और अनुपम है ।
इस झाँकी का दर्शन करते हुये हित सखी को भाव आजाता है …उसके नेत्रों से अश्रु बहने लगते हैं …वो भाव विभोर है ……अरी सखियों ! ये वर्णन तो बहिरंग है इन युगल का …बाहर से ही एक नही हैं ये , ये दोनों तो आत्मा से भी एक हैं …बहिरंग ही जोरी नही बनी …अंतरंग भी ये जोरी बनी है , देखो तो !
अद्भुत !
ये सखियाँ युगल के हृदय को भी समझती हैं ।
सखियों ! इनके हृदय में अभी भी प्रेम की चाह है …दोनों के हृदय में ….अभी स्नान करके सज धज के भले ही बैठे हों ये युगल …किन्तु अभी भी उसी सुरत रंग में रँगे हुये हैं …..एक दूसरे को छूते , देखते इन्हें रोमांच हो रहा है …ये अति अद्भुत झाँकी आज ही दिखाई दी है ।
इतना कहकर हित सखी मौन हो गयी ।
पागल बाबा भी मौन हो गये ….क्या बोलते इसके आगे ? ये तो झाँकी थी जिसे निहारना था ..निहारना है अपने हृदय पटल में …क्या उस अपार सौन्दर्य माधुर्य को बोला जाएगा ? नही इस माधुर्य का तो बस पान किया जा सकता है ।
गौरांगी ने फिर गायन किया इसी नौवें पद का ….सब झूम उठे थे ।
“बनी श्रीराधा मोहन जू की जोरी …….”
आगे की चर्चा अब कल –
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