!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 52 !!
अब सौ वर्ष का दारुण वियोग…
भाग 3
“जाओ ! मैं अब जा रही हूँ बरसाना …..और अब कभी नही आऊँगी ….तुम बजाते रहो बाँसुरी ………मैं गयी ……..श्रीराधा रानी जानें लगी थीं बरसाना वापस ……..श्याम सुन्दर को इशारा किया वृन्दा नें ……….कृष्ण श्रीराधा के सामनें प्रकट हो गए थे ।
मैं जा रही हूँ….अब तुम ही रहो इस वन में,
गुस्से में श्रीराधा रानी चल दीं ।
राधे ! क्या तुम सचमुच नाराज हो ? पीछे दौड़ पड़े थे श्याम सुन्दर ।
मुझे सजा दो ……..मुझे अपनें नखों से आघात करो ……अपनी बाहों में मुझे कैद करो …….अपनें दाँतो से मुझे काटो……..पर प्रिये ! . मान जाओ …..रूठो मत………हाथ जोड़कर बैठ गए थे कृष्ण ।
पर – श्याम सुन्दर रो गए …………इस तरह से रोते हुए कभी देखा नही था श्रीराधा रानी नें भी ।
हिलकियों से रो रहे हैं…….”हे राधे ! तुम ही मेरा श्रृंगार हो …….तुम ही मेरे जीवन की आधार हो …..तुम्हारा हृदय ही मेरा हृदय है ……नील कमल की तरह तुम्हारी ये आँखें क्यों आज रक्त हो रही हैं …….मैं अपराधी हूँ राधे ! मैं अपराधी हूँ ……मैं जन्मों जन्मों का अपराधी हूँ तुम्हारा ……मुझे क्षमा कर सको तो……इससे आगे कुछ बोल न सके कृष्ण ।
श्रीराधा रानी चकित भाव से अपनें प्यारे को देख रही थीं ………कि क्या हुआ इन्हें ! मान करना ….रूठना ये तो मेरा सहज था ……..पर इस तरह कभी रोये नही श्याम सुन्दर ……….क्या हुआ ?
कुछ बोलो राधे ! कुछ तो बोलो ! मैं आज तुम्हारे चरणों में महावर लगाता हूँ ………..ना ! मना मत करना ………….
श्रीराधा के चरण अपनी गोद में रख लिये थे श्याम सुन्दर नें ।
बड़े प्रेम से श्याम सुन्दर महावर लगाते रहे ………नेत्रों से अश्रु बहाते रहे ………अश्रु तो वृन्दा देवी भी बहा रही थीं इस दृश्य को देखकर ……क्यों की अब ऐसे प्रेमपूर्ण दृश्य कहाँ दिखाई देंगें ………..
दाहिनें चरण में महावर लगा दिया था श्याम सुन्दर नें ……….बाएं चरण में जब लगानें लगे …….ना ! ना ! राधे ! दाहिने चरण को धरती पर मत रखो …………ये महावर अभी गीला है ………..मेरे हृदय में रख दो दाहिनें चरण को ……..सूख जाएगा …………….
आज नयन भी नही मिला पा रहे हैं श्रीराधा से श्याम सुन्दर …….बस नयन बरस रहे हैं ………….मैने क्षमा कर दिया प्यारे! कृष्ण के कपोल को छूते हुये श्रीराधा रानी नें कहा ।
पर राधे ! मैं अपनें आप को कभी क्षमा नही कर पाउँगा ।
श्याम ! कान्हा ! कन्हाई !
वृन्दा देवी नें देखा………..ग्वाल बाल सब आगये हैं ……और कृष्ण को पुकारते हुए आरहे हैं ………………
आलिंगन में भर लिया था श्याम सुन्दर नें अपनी प्यारी को ……
कन्हैया ! कहाँ है रे तू ? फिर पुकारा ग्वालों नें ।
एक रथ चला आरहा है…….उस रथ में बैठे हैं अक्रूर ।
ये रथ ! कृष्ण का ध्यान गया रथ की ओर ……….
ग्वाल बाल सब रथ के साथ थे ………………..
क्या हुआ ? श्रीराधा नें पूछा ………
नही …………मुस्कुरा रहे थे पर नेत्र बरस रहे थे कृष्ण के ।
ये कौन है ….जो रथ में आरहा है ………कौन है ये ?
श्रीराधा नें कृष्ण को पूछा ……………बताओ ना ?
कोई नही ……………..इतना कहते हुये अपनें बाहु पाश में बांध लिया था श्याम नें फिर अपनी प्रिया को ।
बता दो ना ! कि तुम कल जा रहे हो मथुरा ……और फिर कभी नही आओगे …..बता दो ………..बताना तो पड़ेगा ही ना !
वृन्दा देवी नें श्याम सुन्दर से कहा ।
नही बता पाउँगा……..मुझ से नही होगा ये……जोर से बोले थे कृष्ण ।
क्या नही बता पाओगे ? श्रीराधारानी नें पूछा ।
नही …..कुछ नही …………..कृष्ण इतना ही बोले ।
कन्हाई ! कृष्ण ! कहाँ है तू ?
देख तेरे काका आये हैं मथुरा से……अक्रूर काका ।
ग्वालों नें चिल्लाते हुए कह दिया था ।
क्यों आये हैं तुम्हारे काका मथुरा से ? श्रीराधा रानी नें पूछा ।
मुझे लेनें के लिये ! इतना ही बोल सके कृष्ण ……..
श्रीराधा रानी स्तब्ध हो गयीं ………..क्या ! तुम जाओगे अब मथुरा !
पूरा वृन्दावन रो उठा ….वृन्दावन की अधिदेवी वृन्दा रो पड़ी ।
पर श्रीराधा रानी ? ओह ! उनकी दशा क्या बताऊँ वज्रनाभ !
शेष चरित्र कल –
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