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November 21, 2024 1:16 pm

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-जब श्रीराधारानी बोलीं – “नन्द के लाल हरयौ मन मोर” : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-जब श्रीराधारानी बोलीं – “नन्द के लाल हरयौ मन मोर” : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( जब श्रीराधारानी बोलीं – “नन्द के लाल हरयौ मन मोर” )

गतांक से आगे –

कभी श्रीधाम वृन्दावन में आकर यहाँ के रसिकों का समाज गायन सुनो ।

“श्रीहित चौरासी जी” का समाज गायन होता है ….श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में “महावाणी जी” का समाज गायन होता है …..रसिक सन्त बैठते हैं …तो इन रस भरे शब्दों को राग पूर्वक यहाँ की रसाभिव्यक्ति-परिपाटी अनुसार गाते हैं …पुनः पुनः गाते हुये उस रस का चिन्तन करते हैं । ये श्रीवृन्दावन की एक पद्धति है ….नए नए भजन नही …वही पुराने पद ….जो रसिकाचार्यों ने अनुभव करके लिखे हैं ……वही श्रीहित चौरासी जी, वही महावाणी जी ….उन्हीं के पद नित्य गाते रहते हैं । आपको पता है इससे क्या होता है ? इससे मन के अन्दर जितना संसार भरा होता है ना …वो सब बाहर आजाता है …और भीतर युगल सरकार जाकर विराजमान हो जाते हैं ।

कैसे मिलते हैं श्यामा श्याम ? आज बाबा से फिर पूछ लिया ।

“नाम वाणी जहाँ , श्याम श्यामा तहाँ।
नाम वाणी निकट , श्याम श्यामा प्रकट “

वाणी जी का पाठ करो …नित्य करो …और इन वाणी जी के एक पद को कमसे कम आधे घण्टे तक गाओ……एक एक शब्द का अनुसंधान करो …जो लीला पद में है उसका चिन्तन करो …जिस झाँकी का वर्णन किया गया है पद में उस झाँकी को अपने हृदय में बिठाओ ।

बातें बनाने से कुछ नही होता ।

मेरे पागल बाबा न उपदेश देते हैं , न आदेश देते हैं …वो तो श्यामा श्याम के लीला जगत में जाकर वहीं की बातें बताते हैं …समझ में आए तो सुनो …..नही तो जाओ ।

मेरे पागल बाबा की एक बड़ी प्यारी आदत है …कोई भी इनके पास जाता है और हाथ जोड़कर बैठ जाता है …तो बाबा उसे श्रीहित चौरासी जी थमा देते हैं ….वो हाथ जोड़कर कहता है ….मैं तो कुछ समस्या लेकर आया था ….बाबा कहते हैं …तुम्हारी समस्या आज तक कभी ख़त्म हुयी है जो आज हो जाएगी …..तुम तो पद सुनाओ । वो बेचारा पद सुनाता है । अब जो बेटे की नौकरी नही लगी …बहु का तलाक़ होने वाला है …ऐसी समस्या वाले आए हों तो वो भाग जाते हैं ….फिर नही आते इनके पास ।

किन्तु कोई भगवत्प्राप्ति करने के लिए ही आया हो , तो वो निहाल हो जाता है …क्यों की ये उसे वाणी जी का पाठ करवा कर निकुँज में आखिर प्रवेश करा ही देते हैं ।

हाँ , ये बात मैं प्रत्यक्ष बोल रहा हूँ ।

आप रसिकों की वाणियों का पाठ करो , इससे आपको बहुत कुछ समझ में आजाएगा ।
राधा नाम , और वाणी जी का पाठ , बस और कुछ नही चाहिये , तुम्हारे सामने युगल सरकार प्रकट हो जायेंगे …..”गारण्टी से” …पागल बाबा ये कहते हुये अत्यन्त तेजपूर्ण लग रहे थे ।

ये हमारे श्रीधाम के रसाभिव्यक्ति की सिद्ध परिपाटी है …इसी के अनुसार चलोगे तो निकुँज में प्रवेश मिल जायेगा ,नही तो ..कर्म के अहंकार में डोलते रहो , उससे कुछ होने वाला नही है ।


राधा बाग में नित्य उत्सव हो रहे हैं …अब तो आस पास के बृजवासी अपने अपने घरों से कुछ न कुछ बनाकर लेकर आते हैं ….और श्रीजी के सामने रख देते हैं । बाबा आज बहुत प्रसन्न हैं …क्यों की गौरांगी ने दो पाँच पाँच वर्ष की बच्चियों को श्रीराधा कृष्ण का स्वरूप बनाकर सिंहासन में विराजमान कर दिया ….बाबा ने जब ये देखा तो प्रथम तो उन्होंने साष्टांग प्रणाम किया …फिर चरण पखारे ….फिर भोग लगाया । निहारते रहे श्रीजी को बाबा । भावावेश भी बाबा को हुआ था पर ये छुपा जाते हैं …..फिर खड़े होकर पंखा झलने लगे ।

उस समय का दृष्य अद्भुत था …मोर सब उतर गए थे वृक्षों से और झूम कर इधर उधर घूम रहे थे ।

बादल छाए हैं नभ में ….वातावरण सुहावना हो गया है ।

तभी पंखा झलते हुए बाबा बोले ….सुनाओ गौरांगी ! आज का पद …कौन सा पद है ? गौरांगी बोली …तेरहवाँ पद है । बाबा मुस्कुराये ….और आज का ये पद बाबा ने ही गाया ….गौरांगी ने पीछे गायन किया …बाबा जब गा रहे थे तब ऐसा लग रहा था कि कोई सखी गा रही है । लोगों की भीड़ बहुत है …माईक लगाने की बात थी ताकि राधा बाग के बाहर भी लोग बैठें और सुनें …पर बाबा ने मना कर दिया । जो अधिकारी होगा वही सुनेगा । और श्रीजी उसी को बुलायेंगी । बाबा गा रहे हैं …बाबा के पीछे सब लोग गा रहे हैं ।

आहा ! “नन्द के लाल हरयौ मन मोर” ।


                            नन्द के लाल हरयो मन मोर ।

                     हौं अपने मोतिनु लर पोवति,  काँकरि डारि गयौ सखि भोर ।।

                    बंक बिलोकनि चाल छबीली , रसिक सिरोमनी नन्द किशोर ।

                   कहि कैसें  मन रहत श्रवण सुनि,  सरस मधुर मुरली की घोर ।।

                    इंदू गोविंद वदन के कारन,    चितवन कौं भये नैंन चकोर ।

                   श्रीहित हरिवंश रसिक रस जुवती ,  तू लै मिलि सखि प्रान अँकोर ।13 ।


                   “नन्द के लाल हरयो मन मोर ........”

इस पद के गायन पश्चात् बाबा ने साष्टांग प्रणाम किया युगल स्वरूप को और उनके ही चरणों में बैठ गये ….नेत्र बन्द कर लिये …और अब ध्यान ।


                        !! ध्यान !! 

सुन्दर श्रीवृन्दावन है …प्रातः के समय ये श्रीवन और सुन्दर लगता है …पक्षियों की चहक से पूरा निकुँज गूंजता है …सखियों के घुँघरू की आवाज श्रीवन को रस से भिगों देते हैं । वृक्ष लता पत्र सब प्रमुदित हैं , आह्लादित हैं ….क्योंकि रात्रि में “युगल केलि” का सुख इन्हीं सबने तो लूटा है ।

सखियाँ आगयीं कुँज में ….ये सब भी कितनी जल्दी आजाती हैं ? श्याम सुन्दर ने देख लिया था की सखियों का झुंड आगया कुँज में । वो श्रीजी से कहते हैं …..रात कितनी छोटी थी ना ?

प्यारी जू ! तिहारो मुख चन्द्र अभी तो मैंने देखना प्रारम्भ ही किया था कि ……श्याम सुन्दर आगे कुछ कहते कि गोपियों का दल परदा हटाने लगा था ……तभी जल्दी जल्दी में श्याम सुन्दर ने अपनी पीताम्बर ओढ़ ली और श्यामा जू ने नीलांबर । अपने केशों को संवारा प्रिया जू ने …लटें उलझी हैं ….श्याम सुन्दर सुलझा ही रहे थे कि सखियों ने परदा हटा दिया ……..

जय जय श्रीराधे ……

हजारों सखियाँ एक साथ बोलती हुई कुँज के भीतर चली आईं ।

श्याम सुन्दर ने जब देखा सखियाँ आगयी हैं ….तो वो उतरे पर्यंक से …उस समय उनकी शोभा अलग ही थी …..घुंघराले केश बिखरे हुए थे …उनके श्रीअंग से सुगन्ध प्रकट हो रहा था ।

वो गए और दूर जाकर बैठ गए …..साँवरी सखियाँ श्याम सुन्दर के पक्ष की हैं तो गोरी श्रीराधा जू के …..साँवरी सखियाँ श्याम सुन्दर के साथ खड़ी हो गयीं और उनको पंखा करने लगीं ।

पर सामने श्रीराधा जी विराजी हैं ….उनकी सखियाँ उनके पास हैं जो उनको भी पंखा कर रही हैं ।

श्याम सुन्दर अपलक निहार रहे हैं अपनी प्यारी को ….पर ये क्या ! श्याम सुन्दर को अब रोष आरहा है …क्यों ? क्यों की उनकी प्यारी का ध्यान अब उनकी ओर नही है । और श्याम सुन्दर चाहते हैं उनकी प्रिया उन्हीं को देखें । पर …उठ गए श्याम सुन्दर , उनका मुख कोप से फूला हुआ है …..जाते जाते एक कंकड़ उठाया और श्रीजी की ओर उछालते हुए चले गए ….श्रीजी ने देखा ….आहा ! बड़ी प्यारी झाँकी थी …एक बार पलट कर देखा था फिर मुँह बनाते हुये चले गए …..उनका वो मुँह बनाना श्रीजी को भा गया …वही छवि उनके हृदय में बस गयी । अब तो श्रीजी को कुछ नही सुहा रहा …..वो बेचैन हो उठी हैं । इस बात को हित सखी समझ गयी तो निकट जाकर उसने पूछा ।

अब अपनी प्यारी सखी को श्रीराधा रानी बता रही हैं …….


मेरी प्यारी सखी ! नन्द नन्दन ने मेरा मन हर लिया ।

महाप्रेम में डूबी हुयी श्रीराधिका कहती हैं ।

पर कैसे ? ये तो आश्चर्य था क्यों की निकुँज में तो आप ही हो सर्वेश्वरी ….आप ही नन्दनन्दन का मन चुराती रहती हो …पर आज ऐसा क्या हुआ ?

उफ़ ! सखी के कन्धे में अपना सिर रख दिया प्रिया जू ने …और कुछ देर तक खोई रहीं ।

रात्रि की रति केलि में मेरी माला टूट गयी थी …..थोड़ी शरमा कर बोलीं श्रीजी ।

तो सखी , मैं प्रातः उठी नन्दनन्दन तो पर्यंक से उतर गये ….पर मैंने देखा मेरी माला टूट गयी है ..मोती सब बिखर गये हैं …तो मैं माला पोने लगी ….मेरा ध्यान माला पिरोने में था …इसी बात पर गुस्सा हो गये और जाते जाते कंकड़ मार चले गये ।

पर क्या छवि थी वो सखी !

ये कहते हुए श्रीराधा जी फिर सखी के कन्धे में झूलने लग जाती हैं । उनकी वो बाँकी चितवन ! और जा रहे थे ना …तो उनकी चाल क्या कहूँ …छबीली चाल । सारे छवि जिनकी चाल पर वार दिए जायें ..ऐसी छबीली चाल । श्रीराधा जी आह भरती हैं …अब बताओ सखी ये सब देखकर किसका मन चंचल नही होगा ? तभी श्याम सुन्दर ने बाँसुरी बजा दी ….श्रीराधा जी प्रेम रस में डूबी कहती हैं …अब बताओ – जिसने उनकी बाक़ी चितवन देखी जिसने उनकी छबीली चाल देखी और ऊपर से ये बाँसुरी और सुना रहे हैं …सखी ! वो तो मन से हाथ धो बैठेगा …जैसे मैं…..श्रीराधा जी अपने को कहती हैं । क्या चाहती हो आप ? हित सखी ने मूल बात पूछी ।

मैं तो उन चन्द्र को देखना चाहती हूँ ..गोविन्द चन्द्र को …जिनके लिए मेरे नेत्र चकोर बन गए हैं ।

मानों श्रीराधा जी यहाँ सखी से ही प्रार्थना करने लगीं कि मुझे मिला दो मेरे नन्दनन्दन से ..मेरे चन्द्र से …..या बता दो वो कैसे मिलते हैं ? सखी ! तू जो कहेगी मैं वही करूँगी ।

तब सखी ने हंसकर अपनी प्यारी से कहा …..हे राधिके जू ! ऐसे तो वो मिलेंगे नही । फिर ? प्रेम की उच्च अवस्था में श्रीराधा जी पूछती हैं ।

वो मिलेंगे जब आप उनके पास कुछ उपहार लेकर जाओ ।

क्या लेकर जाऊँ ? भोरी श्रीजी पूछती हैं …अपने प्राण उनको सौंप दो ….अपने प्राण उनको उपहार में दे दो । हाँ , ये सुनकर श्रीराधा जी बहुत प्रसन्न हुई …और उन्होंने तुरन्त अपने नेत्र बन्द कर लिए ….पर ये क्या , इनके प्राण इनके कहाँ हैं ? वो तो श्याम सुन्दर ही हो गये हैं । सखी हंसती है ..खूब खिलखिलाती है और श्रीजी के कपोल को छूती हुयी कहती है …”मेरी भोरी सखी”और सब सखियों को जाकर ये सुनाने लगती है ……..

पागल बाबा इतना कहकर फिर उन्मत हो गाने लगते हैं …….

“नन्द के लाल हरयो मन मोर”…

अब इस पद पर सब नाच उठते हैं ……बाबा स्वयं नाच रहे हैं ।

“हौं अपने मोतिन लर पोवति , क़ाँकरि डारि गयौ सखी भोर “

पागल बाबा खूब नाचे आज ।

आगे का प्रसंग अब कल –

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