!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 54 !!
वियोगिनी -“श्रीराधारानी”
भाग 2
चारों ओर से बस रोनें की आवाज ही तो आ रही थी ।
भैया ! तुम भी जा रहे हो ?
श्रीदामा श्रीराधा जी के भाई हैं …….वे भी जा रहे थे ।
हाँ ……राधा ! मैं भी जा रहा हूँ…..
…अपनें आँसू पोंछ लिए श्रीराधा रानी नें …….
कब तक आओगे भैया ? श्रीराधा नें पूछा ।
बस दो दिन में …….श्रीदामा नें कहा ।
कब तक आएगा तू लाला ?
बृजरानी यशोदा उधर कन्हैया से पूछ रही थीं ।
परसों आजाऊंगा मैया ! नन्दनन्दन का उत्तर था ।
अक्रूर नें इशारा किया ……….अब चलो !
हाँ अब चलना चाहिये ……बृजपति नन्द बोले …….और फिर अक्रूर से बोले ………..हम आगे चलते हैं ………अक्रूर ! तुम धीरे धीरे रथ में कृष्ण को लेकर आओ ………इतना कहकर बृजपति अपनी बैल गाडी में बैठ गए …..ग्वाले भी सब बैठ गए ……….और ये बैल गाडी चल दी थी ।
मैने स्वस्ति वाचन पढ़ना शुरू किया ………महर्षि बोले ।
पर स्वर मेरा स्पष्ट नही निकल रहा था……..मेरा गला रुंध रहा था ।
पर ये क्या ? एकाएक गोपिकाएँ उन्मादिनी हो उठी थीं ।
वे घोड़े और रथ के पहिये से लिपटनें लगीं थीं………….
श्याम सुन्दर नें इस दृश्य को देखा …………उनसे रहा नही गया ……सस्नेह उन्होंने समझाया ……….”मैं दूर कहाँ जा रहा हूँ ……..जब मेरी याद आये आजाना !
चाहे कितना भी पास हो …..पर हम मथुरा में आकर तुमसे नही मिलेंगी !
श्रीराधा रानी नें श्याम सुन्दर से कहा ।
क्यों ? क्यों राधे ! श्याम नें साश्चर्य पूछा ।
नही ……हमें राजाधिराज कृष्ण नही ………हमें हमारी मटकी उठानें वाला कृष्ण चाहिये …….हमारे घर का माखन चुरानें वाला कृष्ण चाहिये ……वो राजसी भेष ? ना ……………….
हे वज्रनाभ ! प्रेम की अपनी ठसक होती है …………..
अक्रूर के ऊपर मुझे भी क्रोध आया था ……….जब वह वृन्दावन में गोपियों की स्थिति देखकर नाक भौं सिकोड़ता था ……..और जल्दी जल्दी कर रहा था ………..एक गोपी रथ के नीचे ही आकर लेट गयी …….उसको देखकर अक्रूर एक बार आक्रोशित भी हुए ……।
हमें बहुत कष्ट हो रहा है…..अक्रूर ! हमें बहुत दुःख हो रहा है ……
हमारी निधि को लिए जा रहे हो तुम…….बताओ किसे कष्ट नही होगा ?
अक्रूर !
श्रीराधा रानी बता रही थीं ……..जिनको तुम ले जा रहे हो ना …ये वृन्दावन के प्राण हैं …….तुम इनको ही लिए जा रहे हो ……।
हम क्या कहें तुमको ? बस यात्रा मंगलमय हो ….शुभ हो ……..क्यों की अक्रूर ! इससे ज्यादा तुम कुछ समझोगे भी नही ………।
रथ में बैठे कृष्ण …….सबको हाथ जोड़ा कृष्ण नें………रो पडीं गोपियाँ ……..मत जाओ ना ! हम कैसे रहेंगीं तुम्हारे बिना !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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