!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी !!
( रस लीला की सृष्टि करते नैंन- “नैंननि पर वारौं” )
गतांक से आगे –
“कटीले , कुटीले , रूप के लुभीले, बरछीले , तिरछीले , सरसीले , लजीले , सकुचीले ।
कहाँ तक दें नैंनों की उपमा …..सारे उपमा इनके आगे तुच्छ हैं ।
चपल नयन तो श्याम सुन्दर के हैं …पर उन चपल नयनों की चंचलता को भी कुण्ठित कर देने का सामर्थ्य किसी में है तो हमारी प्यारी जू के नयनों में ही है । सृष्टि के निर्माता पालक और संहारक श्यामसुन्दर हैं ….पर श्रीराधा जब अपने नयनों को अर्ध मूँद कर कुटिल मुस्कान देती हैं …तब इनके लिए सृष्टि आदि वार्ता व्यर्थ हो जाती है …इतना ही नही , नारद जैसे भक्तों को भी ये भूल जाते हैं …मनसुख श्रीदामा आदि सखा भी इनके हृदय से निकल जाते हैं …तब ये इन्हीं श्रीराधा के परम उपासक बनकर निकुँज वीथी की उपासना करने लग जाते हैं । अजी ! क्या समझते हो प्रेम को ? ये प्रेम है । इस प्रेम के बंधन में श्याम सुन्दर यहाँ बंधे हुये हैं ….श्रीराधा के नयन गम्भीर हो उठते हैं तो श्याम सुन्दर भयभीत हो जाते हैं …जब इनके नयन मुस्कुराने लगते हैं तो श्याम सुन्दर का हृदय कमल खिल जाता है …ये नाच उठते हैं । बोलना नही पड़ता श्रीराधा को …श्याम सुन्दर इनके नयनों को ही निहारते हैं …और अपने आपको न्यौछावर किए रहते हैं । बलिहारी हो इन प्रिया के नयनों की …जो रस लीला की नित्य निरन्तर सृष्टि करते ही रहते हैं ।
पागल बाबा ने आज श्रीराधा रानी के नयनों का ध्यान कराया ….ये नयन श्यामसुन्दर को वश में रखते हैं ….ये नयन श्यामसुन्दर को नचाते हैं …..ये नयन साधारण नही हैं …प्यारी जू के करुणापूरित नयन हैं ….जो सखियों पर निरन्तर करुणा बरसाते रहते हैं ।
राधा बाग में आज पागल बाबा करुणा से भर गये थे …उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु बह चले थे ….स्वामिनी इतनी करुणा निधान हैं कि कभी कभी हमारे लिए अपने नेत्रों को वो वक्र कर लेती हैं ….तो उनके प्रियतम भयभीत हो जाते हैं ….पूछते हैं …क्या हुआ ? तब वो हमारा पक्ष लेती हैं ….स्वामिनी ने सदैव अपनी सखियों का ही पक्ष लिया है ….हमारे हजारों अवगुण-दोषों को भी उन्होंने अनदेखा ही किया है ….वो करुणा की मूरत हैं …वो कृपा की सागर हैं ….श्याम सुन्दर फिर भी दोषों को देखते हैं ….पर हमारी स्वामिनी ! बाबा हिलकियों से रो पड़े …उन्हें कुछ भान नही रहा …..उनको बस अपनी स्वामिनी के करुणा से भरे नयन ही दिखाई दे रहे थे ।
आज राधा बाग करुण रस से भर गया था …..हा स्वामिनी ! हा स्वामिनी ! कहते हुए हिलकियों से रो पड़े थे बाबा ….पता है ! श्याम सुन्दर हम सखियों को भूल जाते हैं ….वो कभी कभी जान बूझ कर हमको छोड़कर अकेले ही कुँज वन में श्रीजी को लेकर चले जाते हैं …पर हमारी स्वामिनी कभी नही छोड़तीं हमें ….बाबा हिलकियों से रो रहे हैं ….उनके नयनों में मात्र करुणा है …..
इतना बोलकर वो पछाड़ खाकर भूमि में गिर गये थे ।
आधे घण्टे तक बाबा को कुछ भान नही रहा देह का ….
“गाओ आज के पद”…..बाबा आधे घण्टे बाद उठे हैं …उन्हें देह सुध हुई ..तो उन्होंने गौरांगी से कहा ….”श्रीहित चौरासी जी का बाईसवाँ पद है आज”……गान करो ।
वीणा में गौरांगी ने इस पद का गायन किया ….अद्भुत रस बसरा था आज …आप भी गाइये ।
नैंननि पर वारौं कोटिक खंजन ।
चंचल चपल अरुण अनियारे , अग्र भाग बन्यौं अंजन ।।
रुचिर मनोहर वक्र विलोकनि, सुरत समर दल गंजन ।
श्रीहित हरिवंश क़हत न बनैं छबि, सुख समुद्र मन रंजन । 22 ।
नैंननि पर वारौं कोटिक खंजन ……..
बाबा सीधे आज ध्यान की गहराइयों में ले जाते हैं …पूरा राधा बाग निकुँज में ही चला गया था ….सबको लग रहा था कि हम निकुँज में ही हैं और हित सखी के पीछे खड़े हैं ….अपनी स्वामिनी को निहार रहे हैं …वो बैठीं हैं यमुना के किनारे ….बाबा ने कल जहां छोड़ा था वहीं से आगे ले चलते हैं हम सबको ।
!! ध्यान !!
सुन्दर श्रीवन है …..हरित भूमि है ….चारों ओर श्रीवन में फूल खिले हैं ….ऋतु शरद है ….इसलिये वातावरण शीतल है ….श्रीवन की अवनी मणि माणिक्य से खचित है ….एक सुन्दर शिला है जिस पर प्रिया जू बैठी हैं ….एक चरण दूसरे पर रखी हुई हैं ….स्वर्ण कान्ति युक्त उनका मुखारविंद है ….घुंघराली अलकें हैं ….जो उनके कपोल को छू रही हैं ….नीलांबर साड़ी पहनी हैं …पर ऊपर पीताम्बर ओढ़ी हुई हैं …..नयन नीचे देख रहे हैं …..फिर सामने यमुना को देखने लग जाती हैं …चारों ओर सखियों ने घेरा हुआ है ….प्रमुख सखी हित सखी है …जो आगे बैठी हुई है …और श्रीराधा को ही देख रही है …..श्रीराधिका नीचे देखती हैं …फिर ऊपर देखती हैं …सखियां चुप हैं वो बोल नही रहीं तो उनकी ओर देखती हैं …जब सखियाँ मुस्कुराती हैं तो शरमा कर अपने नयनों को उन से हटा लेती हैं …फिर नीचे देखने लगती हैं …उनकी बड़ी बड़ी पलकें.. ..भारी पलकें जब गिरती हैं और उठती हैं तब सौन्दर्य की एक अद्भुत झाँकी बन जाती है ….नयनों में काजल है …जिसने इन नयनों की शोभा को और सुन्दरता प्रदान कर दी है । बोल नही रहीं पर नयन सब कुछ बोल रहे हैं ….नयन मुस्कुरा रहे हैं …नयन गम्भीर हो रहे हैं ….नयन चपल हो रहे हैं ….पर्दे की तरह लग रहे हैं और खुल रहे हैं ….उफ़ ! ये नयन …जिन नयनों ने ब्रह्म को खिलौना बना दिया उन नयनों की बात कौन कर सकता है …..बहुत देर तक यही सब चलता रहा …कोई नही बोल रहा ……तब श्रीजी ने ही नयनों से संकेत किया …..क्या है ! हित सखी मुग्ध हो गयी और बोली …….सब सखियाँ सुन रही हैं ……
हे प्यारी जू ! इन नयनों पर करोड़ों खंजन वार दूँ …मुझे तो ऐसा लगता है ।
( खंजन पक्षी होता है जो अत्यंत चंचल होता है ) सखी कहती है ।
क्यों ? नयनों के संकेत से ही प्रिया जू पूछती हैं ।
इसलिए कि आपके नयन चंचल हैं ….किन्तु चंचल ही नही अतिशय चंचल हैं …इसलिए एक खंजन वारने से काम नही चलेगा ….करोड़ों खंजन वारने का मन कर रहा है । सखी कहती है ।
श्रीप्रिया जू इस बात पर संकोच कर गयीं …और अपने नयनों को झुका लिया ।
पर सखी नयनों के झुकाने की इस झाँकी पर मुग्ध हो गयी और बोली …बस बस …इन्हीं नयनों की चंचलता ही लीला पूर्ण है …प्यारी ! यही नयन रस लीला की सृष्टि करते रहते हैं …यही नयन श्याम सुन्दर को वश में किए हुए हैं ….कहते हैं श्याम सुन्दर सर्वतन्त्र स्वतन्त्र हैं पर प्यारी जू ! आपके इन नयनों ने उनकी स्वतन्त्रता छीन ली है ..वो आपके वश में हो गये हैं , कहीं नही जाते ।
पर आज तो कुछ ज़्यादा ही सुन्दर लग रहे हैं ….
कुछ देर बाद हित सखी मुग्ध भाव से फिर कहती है ।
प्रिया जू फिर ऊपर नयनों को ऊपर उठाकर पूछती हैं …..क्यों ?
सखी कहती है ……
आज इन नयनों में लाल डोरे और पड़ गये हैं ….इसलिये इनकी सुन्दरता और बढ़ गयी है ।
नयनों से ही प्रश्न करती हैं …..क्यों लाल डोरे पड़े ?
हित सखी हंसते हुये कहती है …..बड़ी भोरी हो …नही नही , भोरी नही हो ….वो सुरत सुख की चर्चा सुनना चाहती हो , है ना ?
ये सुनते ही श्रीराधिका मन्द मुस्कुराते हुये अपने नयनों को फिर झुका लेती हैं ।
तो सुनो , रात भर चले रस विलास के कारण इन नेत्र कमल में लाल डोरे पड़ गये हैं ….सच ! बहुत सुंदर लग रहे हैं । सखी श्रीराधा को बताती है ।
श्रीराधा जी मुस्कुराते हुये नीचे ही देख रही हैं ……
सखी कहती है …..फिर जो अंजन लगे हैं पलकों में ….वो तो किसी को भी घायल करने के लिए पर्याप्त हैं । ये सुन्दर हैं …नही , मात्र सुन्दर नही हैं ….सखी आगे जाकर श्रीराधिका को देखती है ….फिर कहती है …..पैने कटाक्ष हैं ….लगता है कोई शस्त्र हैं ….तभी तो श्याम सुन्दर जब देखो तब घायल होते रहते हैं । सुरत संग्राम में यही विजय दिलाते हैं आपको …वो बेचारे श्यामसुन्दर आते होंगे तैयार होकर लड़ने के लिए पर आपके ये नयन कटारी एक ही बार में , एक ही वार से उन्हें घायल ही कर देते होंगे …..वो बेचारे आपसे क्या लड़ेंगे ? सखी उन्मद भाव से भर जाती है और कहती है ….ये नयन प्रेम के रंग में ऐसे रँगे हैं कि इनका ही रंग श्याम सुन्दर के नयनों को भी रँग देता होगा ……है ना प्यारी जू ! ये कहते हुये जब हित सखी ने प्रिया के चिबुक को पकड़ा ….तो प्रिया ने इस अपनी प्यारी सखी को देखा ….अपनी इस सखी के लिये उनके नयनों में करुणा का सागर उतर आया था ….तुरन्त उठकर प्रिया ने सखी को अपने हृदय से लगा लिया …ये दृश्य देखकर सारी सखियाँ ….अपनी लाडिली की जय जयकार करने लगीं थीं ।
बोलो लाड़ली श्रीकिशोरी जू की …….जय जय जय ।
पागल बाबा को कम्पन हो रहा था ….मानों श्रीजी ने उन्हें ही आलिंगन किया हो ।
पागल बाबा ….राधा राधा राधा राधा राधा ….कहकर उन्मादी हो गये थे …..प्रेम की ऊर्जा से भर गया था वो बाग …..पक्षी जो नित्य चहकते थे आज वो शान्त थे ..मानौं उन्होंने भी इस भाव रस को अनुभव करके मुनि की तरह मौन व्रत ले लिया था ।
अन्तिम में गौरांगी ने इसी बाइसवें पद का नित्य की तरह गान किया ।
नैंननि पर वारौं कोटिक खंजन ……..
आगे की चर्चा अब कल –


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