!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 59 !!
सखी ! बैरिन निंदिया भी गयी….
भाग 2
नेत्र बह चले उस सखी के ……..रो गयी वो सखी ।
अरी ! क्या बताऊँ ? ऐसे ही बतियाते बतियाते वो मेरे घर तक आया था ……मैं उससे यही प्रश्न करनें वाली थी ………मैने पीछे मुड़कर देखा.. …..पर वो नही था ……….वो अंतर्ध्यान हो गया था ………मैं रोनें लगी ….तभी मेरे पति नें मुझे जगा दिया……..ओह ! जब उठी और मैने जब आस पास देखा ……तब लगा ……..रही कंगालन की कंगाल ।
मैने भी सपना देखा है……दूसरी सखी फिर बोली ।
श्रीराधा रानी नें उसकी ओर देखा…और इशारे में कहा – सुना !
मैं कल सो गयी थी जल्दी ………मुझे तीव्र ज्वर हो गया था …..तो मैं सो गयी …………….
“यमुना जल भरनें गयी …….जल भर लिया …….और उठा भी लिया ………..पर कुछेक कदम ही मैने आगे बढ़ाये थे कि ………..काँटा गढ़ गया …..मेरे पैरों में काँटा गढ़ गया ।
फिर क्या हुआ ? ललिता सखी नें पूछा ।
फिर क्या होना था ……..मैं रोनें लगी ………….मैने कोशिश की …..पर काँटा निकला ही नही ………..मेरे सामनें अब कोई उपाय नही रह गया था …………मेरे मन में तभी आया……..काश ! कन्हाई होता !
बस ………उसी समय कन्हाई आगया ……….कहाँ से आया पता नही ……….मैं उसे देखते ही आनन्द विभोर हो गयी ।
वो आया ………..बड़े प्रेम से उसनें मेरे पैर का काँटा निकाल दिया ….फिर मेरे साथ ही चलनें लगा बतियाते हुए ।
तुम तो मथुरा गए थे ना ? मैने पूछा ।
हाँ गया तो था……..मुस्कुराते हुए बोला वह ।
फिर कैसे आगये यहाँ ?
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था उससे बातें करना ।
सखी ! तू नही है ना मथुरा में इसलिये आगया !
रो गयी सखी ये कहते हुये ……….कन्हाई नें मुझ से कहा ।
हट्ट ! झूठे ! मैने भी उसे कह दिया ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल …..


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