!! राधा बाग में -“श्रीहित चौरासी” !!
( रसीली राधिका नागरी – “आजु नीकी बनी” )
गतांक से आगे –
रस से भरी हैं ये राधिका , रस का दान करतीं हैं ये ब्रह्म को ….वो ओप लगाकर पीते हैं ….पीते हैं …और पीते ही जाते हैं …अनन्त अनन्त युग बीत जाते हैं पर इन्हें तृप्ति नही मिलती …तृप्ति ही मिल जाये तो वो रस ही क्या ? रस की परिभाषा ही तो यही है कि पीते रहो फिर भी लगे अभी ओर ..अभी ओर । वेद में जो “नेति नेति” शब्द कहा जाता है वो रस के लिए ही तो है …वो ब्रह्म रस है स्वयं रस होने के बाद भी वो प्यासा है …इसलिए स्वयं से ही रस को आकार देकर प्रकटाता है राधिका के रूप में …फिर स्वयं ही स्वयं रस को पान करता है …अद्भुत और चमत्कृत करने वाली ये अनादि काल से चली आरही लीला है ….इसलिए वेद से लेकर उपनिषद , आरण्यकों में रस शब्द परमतत्व के लिए प्रयोग तो होता रहा ….पर उसका वर्णन नही किया गया …हाँ , उसका वर्णन हो भी नही सकता । रस का क्या वर्णन करते वेद ? उचित ही था कि कह दें ..नेति नेति …हम नही जानते ….हम कह नही सकते ।
अब उस रसीली राधिका के विषय में क्या कहें ? जो रस की महादानी हैं ….ब्रह्म को रस पिलाती हैं तो समस्त को ही रस देती हैं ….सृष्टि में रस वहीं से झर रहा है …..
सुनिये क्या कहते हैं श्रीहित हरिवंश गोसाईं जी श्रीराधा सुधा निधि में –
“शुद्ध प्रेम के विलास की निधि , किशोर अवस्था की शोभा निधि , चतुरता से भरी मधुर मधुर अंग भंगिमा की निधि , लावण्य रूपी सम्पत्ति की निधि , महारस की महानिधि , काम कलाओं की निधि , अमृतमय सौन्दर्य की अद्भुत निधि …मधुपति को मधु पिलाकर प्राण प्रदान करने वाली श्रीराधिका आपकी जय हो जय हो जय हो ।
ऐसी हैं हमारी राधिका , रसीली , छबीली, गर्विली राधिका ।
राधा बाग में “रस महोत्सव” चल रहा है । अद्भुत रस बरस रहा है ….श्रीहित चौरासी जी की चर्चा ही समस्त में रस का प्रसार कर रही है …..यहाँ की भूमि नृत्य करती है …यहाँ के अणु परमाणु प्रेम से उन्मद हो उठते हैं ….यहाँ पक्षी लता ये सब रसिक हैं …परम रसिक हैं …जब श्रीहित चौरासी जी की चर्चा चलती है तब ये शान्त मौन होकर डाल में बैठे रहते हैं …मानों ये भी इस रस को पी रहे हों । मधुरातिमधुर वातावरण का निर्माण हो रहा है ….मधु टपक रहा है ….कभी कभी शाश्वत कहता है …..ये समय , ये काल कितना सुन्दर है …किसी को भगवत्प्राप्ति करनी है तो करे …ऐसा काल फिर नही आयेगा । अभागे हैं वो जो इधर उधर भटक रहे हैं ….कहीं से कुछ नही मिलेगा , मिलेगा तो इसी रसोपासना में ही । ये दाक्षिणात्य ब्राह्मण है….वेद आदि को अच्छे से जानता है ….कह रहा था अब वेद पढ़ने से तुम्हारा उद्धार होने वाला तो नही ही है ….वेदान्त बुद्धि का रंजन मात्र रह गया है …..कहाँ जाओगे ? किस मार्ग से भगवत्प्राप्ति करोगे ? यही मार्ग है …समर्पित हो जाओ इस रस में…..इसमें कोई जाति बंधन नही है …न विद्वान और मूर्ख का …न पापी पुण्यात्मा का …जो थे , थे …अब आओ यहाँ …इस निकुँज की उपासना में ….अपने आपको सौंप दो …गाओ , उसके लिए नाचो …बहुत नाच लिये …सूरदास ने कहा ना …”अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल”। तुम भी कहो …संसार के आगे खूब नाचे हो …अब बन्द करो …रसीले युगल सरकार के आगे नाचो ….रोओ ….कितना रोये …कुछ मिला ? एक बार इनके आगे रोओ …..शाश्वत आज खूब बोला। पागल बाबा श्रीजी मन्दिर से आगये हैं …आकर वो बैठे ……शाश्वत की बातें इन्होंने सुन ली थीं …शाश्वत ने प्रणाम किया तो बाबा ने उसे हृदय से लगा लिया था ।
अब श्रीहित चौरासी जी का पद गायन होगा …पच्चीसवाँ पद है आज ।
गौरांगी ने वीणा सम्भाली साथ में अन्य कलाकार भी हैं …सब ने अपने अपने वाद्य राग बजाने प्रारम्भ कर दिये थे …अद्भुत राग रंग बन गया था । गौरांगी ने सुमधुर कण्ठ से गायन किया ।
आजु नीकी बनी श्रीराधिका नागरी ।
बृज जुवति जूथ में रूप अरु चतुरई, सील सिंगार गुन सबनितें आगरी ।।
कमल दक्षिण भुजा वाम भुज अंस सखी , गाँवती सरस मिली मधुर सुर राग री ।
सकल विद्या विदित रहसी श्रीहरिवंश हित , मिलत नव कुँज वर श्याम बड़ भाग री । 25 ।
आज नीकी बनी श्रीराधिका नागरी ………..
गौरांगी के मधुर कण्ठ से इसका गान अलग ही रस बरसा रहा था …..राधा बाग में बिराजे समस्त रसिक जन इस पद का गान करते हुए रस मत्त हो गये थे । अब बाबा ध्यान करायेंगे ।
!! ध्यान !!
परम कमनीय गौर श्याम उन्मत्त नृत्य कर रहे हैं……ताल से अपने चरण अवनी पर रख रहे हैं …सुरीली सखियाँ गान कर रही हैं …रस की प्यास श्याम सुन्दर में बढ़ने लगी ….वो कोमलांगी प्रिया के अत्यंत निकट चले गये ….उनके वक्ष प्रिया के वक्ष से सट गये थे ….अधर एक दूसरे के निकट आने लगे ….ये प्यासे हैं तो सारी सृष्टि प्यासी है …प्रिया के अधरों से रस का पान करना इन्होंने आरम्भ किया ….उन्मत्त हो गये पीते हुये …दोनों की साँसें एक हो चलीं ….रात्रि बीतने लगी …पर इनकी प्यास नही बुझी …..श्याम सुन्दर रस का जितना पान कर रहे थे वो उतने ही ज़्यादा अतृप्त हो रहे थे ….इस विलक्षण लीला का अनुभव वहाँ खड़ी सखियों को होने लगा ….अब क्या करें ? एक सखी ने कहा इन्हें ले चलो निभृत निकुँज में …जहां कोई नही है …बस ये दोनों ही होंगे …फिर दो एक हो जायेंगे । हाँ यही ठीक होगा । ऐसा कहकर चार सखियाँ श्याम सुन्दर को लेकर निभृत निकुँज में चली गयीं …..और इधर चार सखियाँ राधिका जू को लेकर जाने लगीं …..उस समय श्रीराधिका का रूप सौंदर्य जो खिल रहा था वो अनुपम था …उनका रूप , उनका माधुर्य जो भी सखी देख रही थीं वो देह सुध भूल रही थी ….चलते हुये नूपुर की ध्वनि हो रही है ..उस ध्वनि को सुनकर कामदेव मूर्छित हो रहा है ….राधिका के लट केश बार बार उनके कपोल को छू रहे हैं …आहा ! देखो , क्या बनी हैं हमारी श्रीराधिका नागरी …..हित सखी ने कहा ।
सखी ! इस “रस राज्य” की हमारी महारानी श्रीराधिका आज कितनी सुन्दर बनी हैं ।
पूर्ण यौवन सम्पन्न हैं …अन्य जितनी सखियाँ इनके साथ हैं वो सब की सब सृष्टि की सबसे सुंदरियाँ हैं पर हमारी श्रीराधिका रूप में तो इन सबसे आगे हैं हीं ….पर चतुरता में , सुन्दर स्वभाव में , और गुणों में सबसे आगे हैं । आहा ! रूप की बेली हमारी श्यामा कितनी सुन्दर लग रही हैं , सखी कह रही है ।
देखो , इनकी उन्मत्त दशा ….ये अपने प्रियतम से मिलने जा रही हैं इसलिए इनके मन में उमंग है …मन चंचल हो रहा है …..इसका प्रमाण देखना है तो देखो ….दाहिने हाथ में कमल है जिसे ये घुमाते हुए चल रही हैं ….और बायां हाथ सखी के कन्धे में …झूमती हुई चल रही हैं और गुनगुना भी रही हैं ….स्वर अत्यन्त मधुर है ….इनके मधुर स्वर को सुनकर तो वृक्ष में बैठी कोयली भी सकुचा गयी है ….आहा ! मन में आनंद की बेली फूट पड़ी है …ये बढ़ती ही जा रही हैं….क्यों की एकान्त में आज इनका मिलन होगा ….ये मिलन सौभाग्य का सूचक है ….और बड़ भागी तो श्याम सुन्दर होंगे जो इन सुन्दरी के साथ विहार करने वाले हैं । इतना कहकर हित सखी मौन हो गयीं …क्यों की झूमती मदमाती इस रसीली राधिका को देखकर सखी सब कुछ भूल गयी थी ।
पागल बाबा ध्यानस्थ हो गये थे …..गौरांगी ने फिर इसी पच्चीसवें पद का गायन किया ।
आजु नीकी बनी श्रीराधिका नागरी ……
आगे की चर्चा अब कल –


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