!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 61 !!
“श्रीराधारानी का स्वयं से सम्वाद” – प्रेम की विचित्र स्थिति
भाग 1
रात्रि में नन्दगाँव से लौट आयी थीं ललिता सखी ………
सब कुछ तो स्पष्ट बता दिया था महर्षि शाण्डिल्य नें ।
सोचकर गयी थी ललिता महर्षि के पास कि ……..कोई तन्त्र मन्त्र इत्यादि हो तो ……….क्यों की श्रीराधा की ऐसी दशा देखी नही जा रही थी इन सखियों से ……..पर महर्षि शाण्डिल्य नें कुछ और ही रहस्य उजागर कर दिए थे …….कृष्ण परब्रह्म हैं ……..और श्रीराधा उनकी आल्हादिनी शक्ति ……….ये दोनों अनादिकाल से हैं …..और रहेंगें ………..ये सब “वियोग संयोग” लीला है ………..और इस लीला में अब सौ वर्ष का लम्बा वियोग !
ओह ! सौ वर्ष का ? ललिता सखी को घबराहट होती है ।
वो पहुँच गयी है बरसाना…….कुञ्ज में ही मिलेंगी श्रीराधा……..क्यों की जब से कृष्ण मथुरा गए हैं ……तब से महल में कम ही रहती हैं श्रीराधा रानी ।
अकेली हैं कुञ्ज में ………अर्धरात्रि होगयी है ………
पर अकेले बोले जा रही हैं ……….एक लता की ओट से सुनती है सारी बातें ललिता सखी …..श्रीराधा जी बोल रही हैं –
ललिता ठीक कहती है ……..मैं इन दिनों अस्वस्थ हो गयी हूँ ……..
अस्वस्थ तो होऊँगी ही ……….जो न माननें योग्य बातें हैं उन्हें भी मैं मान लेती हूँ …….और फिर अकेले बैठी रोती हूँ ।
अब देखो ! ये भी कोई माननें योग्य बात है कि ………..मेरे जो सर्वस्व हैं ……जीवनधन हैं ……….प्राण हैं मेरे ………उन्होंने मेरा परित्याग किया और मथुरा चले गए …………भला ये सत्य हो सकता ?
वो कहाँ करुणा निधान ………और मुझ पदाश्रिता को त्यागेंगें ?
अरे ! फिर कुछ देर श्रीराधा रानी हँसती हैं ……….कुञ्ज गूँज जाता है श्रीराधा की हँसी से ………….
जैसे तैसे अपनी हँसी को शान्त करती हैं………सुना है कंस की दासी कुब्जा को भी अपना लिया…….भैया श्रीदामा बता रहा था कि …….कंस दासी कुब्जा है ना …….जो तीन जगह से टेढ़ी थी …….उसे अपना लिया कृष्ण नें …………
अब जो कुब्जा जैसी को अपना सकता है ……..वो भला मुझे त्यागेगा ?
नही वे करुणावान हैं ………..वे किसी का त्याग नही करते ………..
मुझे तो लगता है वे मथुरा भी नही गए…..यहीं कहीं छुप गए हैं ।
अक्रूर आया था……हाँ उसके रथ में बैठे भी थे मेरे प्राणधन …..पर !
चार कदम ही तो है आगे मथुरा ………….चले गए और आ भी गए ।
पता नही क्यों इतनी सी बात को लेकर, इतनी ऊहापोह ?
सखियाँ हैं…….आपस में खूब बोलती हैं बतियाती हैं …..पर मेरे सामनें आते ही ……वो चुप हो जाती हैं ……मुझे कुछ नही बतातीं ।
पर मैं क्या समझती नही हूँ …………………
अब हे कृष्ण ! तुम ही समझ लो ……….मैं तो कहीं जानें वाली हूँ नही ……इस बृज को छोड़कर मैं कहीं नही जा सकती ………..
क्यों जाऊँ ! तुम्हारी चरण धूल यहीं है………..इसी वृन्दावन में है …….
मथुरा में कहाँ है तुम्हारी चरण धूल !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ….


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