!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( रस मत्त दम्पति -“ आजु अति राजत दम्पति भोर”)
गतांक से आगे –
ये नित्य दम्पति , सनातन दम्पति हैं …इनके हृदय में सदा ही प्रेम समुद्र हिलोरें लेता रहता है …इस प्रेम समुद्र में दो लहरें प्रकट होती हैं ..एक मिलन की और एक वियोग की …वियोग कोई वर्षों का नही …बस कुछ क्षण का , उस “कुछ क्षण” भी श्रीराधा ने कृष्ण को नही देखा या कृष्ण ने श्रीराधा को नही देखा तो वो क्षण कई युगों के समान इनको प्रतीत होने लगते हैं …..और मिलन की लहरें जब उठतीं हैं …तब ये इतने उन्मत्त हो जाते हैं कि देह सुध ही भूल जाते हैं । ये चल रहा है , चलता रहेगा । और सखी गणों को ….दर्शन करते , सेवा करते …वही सुख दुःख का अनुभव समान होता है ….जो इन दम्पति को मिलन और वियोग में होता है । ये रसिक शिरोमणि इन्हीं प्रेम लहरी में फँसे निरन्तर प्रेम विवस होते रहते हैं ।
ये श्रीहित चौरासी कोई सामान्य काव्य ग्रन्थ नही है …ये रस साधना का मुख ग्रन्थ है ….आप इस “रस मार्ग” या कह लीजिए “प्रेम मार्ग” के पथिक हैं या बनना चाहते हैं तो आपके लिए ये अति महत्वपूर्ण है …अन्यथा नही ।
युगल बेसुध हैं …और उस बेसुध के बाद इनकी सुध लेती हैं ये सखियाँ ….”जो हम ही हैं”।
राधा बाग में अपूर्व रसानन्द बरस रहा है …..बरसा रहे हैं हमारे रसिक संत पागलबाबा ….इस रस सिद्धांत में “रस” को भी सर्वोच्च सत्ता घोषित किया गया है ….एक ही बात को मैं फिर न दोहराऊँ कि उसी रस का उछलना , सिमटना , खेलना , मत्त उन्मत्त होना यही निकुँज की सनातन रीति है ….इसी रस को पाना सभी का ध्येय है …शान्ति , अध्यात्म की प्रथम माँग है …किन्तु रसोन्मत्त अवस्था अन्तिम माँग है …ये अध्यात्म का अन्तिम लक्ष्य है ।
आज पूर्ण रस में मत्त हैं बाबा ….उनको देह भान नही है ….बिल्कुल भी नहीं हैं । उनको ऊपर से चुनरी और ओढ़ा दी गयी है …अब तो वो अपने को सखी रूपा ही मान लिये हैं …..माला पहनाई है गौरांगी ने श्रीजी की प्रसादी माला …आज उनकी आवाज भी सखी जैसी ही मधुर हो रही है …..वो किसी की ओर देख भी नही रहे ….वो नीचे देखकर ही बात कर रहे हैं …..ये स्थिति आज तक हमने बाबा की देखी नही थी ….कुछ देर बाबा नीचे ही देखते रहे ….फिर गौरांगी की ओर देखा ….धीरे से बोले …पद गाओ । किन्तु उससे पहले मुस्कुराते हुए गौरांगी ने श्रीजी की प्रसादी चूड़ियाँ पहना दीं …उस समय बाबा शरमा रहे थे …ये आरोपित नही , सहज उमड़ा भाव था ।
वीणा आदि सम्भाल ली …सारंगी की स्वर लहरी राधा बाग में गूंज उठी ..बाँसुरी के स्वर अद्भुत रस बरसा रहे थे राधा बाग में ..तब गौरांगी ने आज के इकत्तीसवें पद का गायन आरम्भ कर दिया ।
ये पद भोर का है …इसलिये राग भी “भैरव” गाने के लिए बाबा ने कहा । गौरांगी परम प्रसन्न हो गयी क्यों की ये राग उसका प्रिय है …उसकी वो पतली लम्बी उँगलियाँ वीणा के तारों में नाच उठीं। अद्भुत रस की स्थिति प्रकट हो गयी है बाग के वातावरण में ।
आजु अति राजत दम्पति भोर ।
सुरत रंग के रस में भीनें , नागरि नवल किशोर ।।
अंशनि पर भुज दियैं विलोकत , इंदु वदन विवि ओर ।
करत पान रस मत्त परस्पर , लोचन तृषित चकोर ।।
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ, ये याकैं चित चोर ।
परिरम्भन चुम्बन मिलि गावत , सुर मंदर कल घोर ।।
पग डगमगत चलत वन बिहरत , रुचिर कुंज घन घोर ।
श्रीहित हरिवंश लाल ललना मिली , हियौ सिरावत मोर । 31 ।
आजु अति राजत दंपति भोर …………
बाबा पद गायन के समय भी सखी भाव के अनुरूप अपने हाथों से भाव भंगिमा प्रकट कर रहे थे …वो हम लोगों को दिखाने के लिए नही …ये उनका सहज भाव था ….वो तो छुपा रहे थे ..किन्तु उनके हृदय का रसानन्द प्रकट हो ही गया था । अब बाबा इस पद का ध्यान करायेंगे ।
और आज के इस पद का ध्यान कोई पुरुष देह नही ….सखी भाव भावित चेतना ही करा रही थी ।
!! ध्यान !!
प्रभात का सुन्दर समय है ….श्रीवन के शीतल पवन ने युगल को जगा दिया था । ये उठ तो गये थे पर आलस से भरे थे ….एक दूसरे में अभी भी लिपटे हुए थे …अद्भुत झाँकी थी इनकी …सखियों ने कुँज रंध्रों से ही इन्हें निहारा था ….आज ये भीतर नही गयीं …ये बाहर से ही प्रभात की झाँकी का दर्शन करना चाहती हैं …..कुँज के भीतर दोनों अलबेले श्याम और गौर एक दूसरे में समाये हुए हैं ….गौर वदन की ज्योत्स्ना श्याम में जब पड़ रही थी तब उस श्याम की शोभा शतगुना बढ़ गयी थी ….और श्याम आभा जब गौर वदन में , तब गौर वदन जगमगा उठा था …वैसे ही कुँज सुगन्ध से व्याप्त था पर दोनों के उठने से ….एक बयार सी चल पड़ी थी सुगन्ध की ….सखी मत्त उन्मत्त हो रहीं थीं…..श्यामा के बिखरे केश श्याम देह को आच्छादित कर रहे थे ….एक दूसरे की माला एक दूसरे के माला में उलझे हुए थे …पीताम्बर श्यामा के ऊपर और नीलांबर श्याम के ऊपर …दोनों कनक बेल और तमाल की तरह शोभा पा रहे थे ।
पक्षियों ने कलरव करना शुरू किया तो सखियों ने उन्हें शान्त किया ….और संकेत में कहा ….बोलो मत नही तो युगल का ध्यान अपने से हट कर इधर उधर जाएगा ….या हमारी ओर आएगा । अद्भुत प्रेम से भरी हैं सखियाँ भी ….स्वसुख की किंचित भी वांछा नही है …हमें देखें ? नही ..आपस में ही केलि करते रहें ….ये तत्सुख की कामना ही इस निकुँज का परम धन है ।
पक्षी भी तो यहाँ की सखियाँ ही हैं ….सखियाँ ही पक्षी लता बनकर प्रिया लाल को सुख पहुँचाती हैं …यहाँ जड़तत्व है ही नहीं …सब चेतन हैं ….सब प्रेम तत्व का ही विलास है ।
पक्षियों ने भी शान्त होकर सखियों के साथ उस कुँज रंध्र से भीतर देखना प्रारम्भ किया ।
अब तो युगल सरकार उठ गये …और जैसे ही उठे …अपने अपने उलझे मालाओं को सुलझाना उन्होंने आरम्भ किया ….पर माला सुलझ नही रहे …मन में भय भी है कि कहीं सखियाँ न आ जायें …इसलिये कुँज के द्वार की ओर श्रीजी देखती भी रहती हैं …..ये झाँकी सखियों को और सुन्दर लग रही है ……अब तो हित सखी से रहा नही गया उसके हृदय का प्रेमरस उमड़ पड़ा और बोलने लगी …..सखी ! देख ……….
आज तो दुलहिन और दुल्हा दोनों प्रभात समय में बड़े ही सुन्दर लग रहे हैं !
हित सखी कुछ देर के लिए मौन हो जाती है ….पर सखियाँ हित के मुख से सुनना चाहती हैं …देखने के बाद भी सुनने का अपना रस है ….हित सखी ! तू बोल ना ! हम देखती भी जाती और तेरी वाणी भी सुनती जातीं तो रस दोगुना बढ़ जाता । क्यों की तब कानों को भी रस मिलता ना ..इसलिए तू बोल ! सखियों ने आग्रह किया तो हित सखी मुस्कुराकर बोलने लगी….
वैसे इन दोनों ने रात्रि भर विहार-विलास किया है …पर अभी भी ये तृप्त हुए नही हैं । उलझे माला को सुलझाते हुए भी दोनों कैसे एक दूसरे को देखकर मत्त हो रहे हैं …नयन अरुण हैं दोनों के ।
सारी सखियाँ कुँज रंध्रों से देखकर भाव विभोर होकर कहती हैं ….हाँ , हाँ सखी !
अब तो भूल ही गये हैं माला को सुलझाना , और दोनों ने अपने दोनों बाहु एक दूसरे के कंधों में रख दिया है ….और इक टक देखते ही जा रहे हैं …चित्र लिखित से हो गए हैं दोनों ।
तभी शीतल पवन चल पड़ा ….उसके कारण प्रिया जू के केश और बिखर गए …आहा ! उसके कारण उनकी शोभा और बढ़ गयी …उस गौर मुख पर काली घुंघराली लटें जब बार बार आने लगीं तब तो ऐसा लगने लगा कि मानों चन्द्र को बादल ढँक रहा हो । हित सखी बोली – एक लट बार बार आरही है ….है ना ? सारी सखियाँ बोलीं …हाँ , हाँ….बस ध्यान से देखो ….लालन का मन इसी लट पाश में उलझ कर रह गया है …है ना ? हित सखी के ये कहने-पूछने पर सारी सखियाँ रंध्रों से अपलक देखती हुयी आनंदित होकर बोलीं ….हाँ , हाँ , हाँ हाँ । पक्षी भी बोले …हाँ , हाँ ।
पर ऐसा नही हैं …मात्र इन्होंने ही प्रीतम का मन चुराया हो ऐसा नही है …प्रीतम ने भी अपने पूर्ण समर्पण के द्वारा प्रिया जू का भी मन हर लिया है …देखो , वो भी देह सुध भूल कर अपने प्रीतम श्याम सुन्दर को ही निहार रही हैं । सखियाँ हर्षित हो उछलने लगीं तो हित सखी ने उन सबको चुप कराया और कहा …अरी बाबरी सखियों ! चुप ! नही तो इनका ध्यान हमारी ओर हो जाएगा ….फिर क्या आनन्द आयेगा । हाँ , सखियाँ शान्त होकर फिर भीतर निहारने लगीं …..
अब तो ये दोनों गुनगुनाने लगे हैं …..गाने ही लगे हैं ….जय जय ।
सखियाँ प्रिया प्रियतम के गायन को सुनकर सुख सिंधु में डूब गयीं ।
हित सखी कहती है …..अब देखो ! ये सेज शैया से नीचे उतर रहे हैं ….माला सुलझ गयी है …पर इनके मन अभी भी उलझे हुए हैं ……देखो तो ! सेज शैया से उतर हुए लड़खड़ा रहे हैं ….क्यों ? सखियाँ पूछती हैं । क्यों कि दोनों ने रात भर रस पीया है …और ये रस कोई सामान्य रस तो है नही ….उसके ही कारण ये मत्त उन्मत्त हो रहे हैं । दोनों अब गलवैयाँ दिये बाहर आरहे हैं ….हित सखी बोली ….छुप जाओ …सखियाँ एक लता कुँज में छुप गयीं ….वहाँ से देखने लगीं ….दोनों बाहर आगये हैं ….आलस से भरे , मन्द गति से चल रहे हैं …सामने सांकरी गैल है ..जिसके दोनों ओर पुष्पों से झूलती लताएँ हैं …वहाँ से ये चल रहे हैं …पुष्प झर रहे हैं …सुबह की शीतल बयार चल रही है । सखी ! ये युगल ऐसे ही विहार करते रहें ….इन्हें ऐसे विहार करते हुए देखकर मेरा हृदय शीतल होता है । इतना कहकर सब सखियाँ भी बाहर आगयीं …क्यों की प्रिया प्रियतम दूर निकल गये थे …………
“ जै श्रीहित हरिवंश लाल लालना मिलि , हियौ सिरावत मोर “
पागलबाबा सखी भाव में कहते हैं …इस पद में ये अंतिम पंक्ति ध्यान देने योग्य है …हित सखी जब कहती है …ये दोनों “लाल ललना” जब मिलते हैं तब मेरा हृदय शीतल होता है …यही निकुँज भाव की स्थिति है ….कि मुझे नही मिलना ..ये दोनों मिलें ..ये दोनों मिलें तो मेरा हृदय शीतल हो ।
बाबा कहते हैं …अपना सुख इस मार्ग में है ही नही ।
इसके बाद गौरांगी फिर गायन करती है ..इसी पद का …….
“आजु अति राजत दंपति भोर”
जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे ।
आगे की चर्चा अब कल –


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