!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( ब्याहुला – “रुचिर राजत वधू कानन किशोरी” )
गतांक से आगे –
इस “रस मार्ग” में उत्सव ही जीवन है ।
नित उत्सव , नित मंगल , नित शृंगार , नित नवीन भाव ।
ये उपासना उत्सव की है , उत्सव से ही उपास्य को रिझाना है ।
उत्सव ही इस रसमार्ग का धर्म है ,
उत्सव में उत्साह , ये अनिवार्य है …नही तो रस धर्म से आप च्युत हैं ।
कब क्या उत्सव मनायें ? इस रस मार्ग में ये नियम भी नही है ।
“सखियन के उर ऐसी आई”
आपके मन में जब उत्सव मनाने का उत्साह आये , आप उसी समय मनाओ ।
यही इस मार्ग का मूल मन्त्र है ।
बहुत सुंदर सजावट की है आज राधा बाग में । ब्याहुला है यहाँ । युगल सरकार का विवाह उत्सव । पुष्पों का ढेर है ….गुलाब बोरों में भरकर लाये हैं । उन्हें चारों ओर सलीके से बिखेरा गया है । रंगोली बनाई गयी है । वृक्षों में लताओं में पीले पीले चंदोवा टांगे गये हैं । पीले गोटे दार पताके लटकाये गए हैं । आज विशेष बाबा के कहने पर मथुरा से चार शहनाई वादक आए हैं …जो दो बाहर द्वार पर ही बैठकर शहनाई वादन कर रहे हैं । गुलाब जल और विशेष खस आदि का छिड़काव राधा बाग में किया गया है ….गमक उठा है बाग ।
पागलबाबा ने गौरांगी से आज का पद गाने के लिए कहा ।
रसिक समाज आचुका है । सब राधा बाग की सजावट देखकर अति उत्साहित हो उठे हैं ।
वीणा लेकर गौरांगी बैठी है …पखावज और बाँसुरी बज उठी है …सब आनंदित हो उठे हैं ।
गौरांगी ने आज का पद गायन किया , 67 वाँ पद है आज का ।
अपने सुमधुर कण्ठ से गौरांगी ने गायन किया ।
रुचिर राजत वधू कानन किशोरी ।
सरस षोडश कियें तिलक मृगमद दियैं, मृगज लोचन उबटि अंग सिर खोरी ।।
गंड पंडीर मंडित चिकुर चंद्रिका , मेदिनी कबरि गूँथित सुरँग डोरी ।
श्रवन ताटंक कै चिबुक पर बिंदु दै, कसूँभी कंचुकि दुरै उरज कौं री ।।
वलय कंकन दोति नखनि जावक जोति , उदर गुन रेख पट नील कटि थोरी ।
सुभग जघनस्थली क्वनित किंकिनि भली , कोक संगीत रस सिन्धु झकझोरी ।।
विविध लीला रचित रहसि हरिवंश हित , रसिक सिर मौर राधा रवन जोरी ।
भृकुटि निर्जित मदन मंद सस्मित वदन , कियै रस विवश घनश्याम पिय गोरी । 67 ।
रुचिर राजत वधू कानन किशोरी ……….
बाबा आनंदित होकर गा रहे हैं …आनन्द में मग्न हो रहे हैं …कुछ देर पश्चात् बाबा ध्यान कराते हैं ।
आइये आज का ध्यान उत्सवमय है । ब्याहुला की तैयारी निकुँज में हो रही है ..उसका ध्यान है । जो नव दुल्हन हैं उनका ध्यान है , उनके अद्भुत सौंदर्य माधुर्य का ध्यान है । आइये ध्यान कीजिये ।
!! ध्यान !!
सुन्दर प्रभात की वेला है श्रीवृन्दावन धाम में ….मोर पक्षी आदि सब कलरव कर रहे हैं ।
कमल अभी खिले हैं इसलिए उसमें से सुगन्ध श्रीवन में फैल रही है ।
श्याम सुन्दर मत्त चाल से श्रीवन की शोभा निहारते हुए चल रहे हैं …उनके साथ उनकी प्राण वल्लभा श्रीराधा रानी अपनी रूप शोभा को चारों ओर बिखेरते हुए चल रही हैं । कभी किसी पुष्प को छूती हैं तो कभी किसी पुष्प को । मोर मोरनी जोड़े में आते हैं तो श्रीजी उनके ऊपर हाथ रख देती हैं ….वो आनंदित होते हुए पंखों को फैलाये चले जाते हैं । कुछ दूर जाकर नाचने लगते हैं ।
यमुना का जल अत्यन्त निर्मल है …उसके घाट मणियों से निर्मित हैं …उस घाट की बुर्जियाँ माणिक्य की पच्चिकारी से सज्जित हैं । यमुना प्रसन्न होकर युगल के चरण का स्पर्श करती है ।
नाना प्रकार के कुँज हैं …प्रत्येक कुँज एक से बढ़कर सुन्दर है । प्रत्येक कुँज की सुगन्ध भी भिन्न भिन्न है ….प्रत्येक कुँज हरित मणि , नील मणि , पीत मणि आदि के झालरों से सज्जित हैं ….कुँज के ऊपर मणियों के छज्जे हैं …उन्हीं से प्रकाश आता है जिसके कारण कुँज जगमगा जाता है ।
आज भ्रमण कर रहे हैं युगल सरकार …सखियों का झुण्ड साथ है …..एक सुन्दर सा कुँज देखा तो प्रिया लाल उसी में चले गये ….वृंदा सखी ने “शृंगार भोग” की व्यवस्था वहीं कर दी …बड़े प्रेम से फल , मिष्ठान मेवा आदि आरोग कर युगल वर वहाँ से चलने ही वाले थे कि सखियों ने युगल के सामने आज एक प्रस्ताव रख दिया । क्या बात है बोलो ? परम कृपामयी श्रीकिशोरी जी ने सखियों से कहा ।
स्वामिनी जू ! ब्याहुला । सब सखियों ने एक ही बार में कहा ।
ब्याहुला ?
प्रिया जी हंसी और हंसते हुए अपने प्रीतम की ओर देखा ।
“क्या आप भी अभी ये मनोरथ नही कर रही थीं ? श्याम सुन्दर ने प्रिया जी से ही पूछा । प्रिया जी ने कहा …हाँ कर तो रही थी ….किन्तु आप भी तो कर रहे थे प्यारे ? श्रीजी ने श्याम सुन्दर से भी कह दिया ।
श्याम सुन्दर ने सहज भाव से कहा , यहाँ सबका मन एक ही मनोरथ करता है ।
क्यों की यहाँ सबका मन ही एक है ।
तो हम लोग ब्याहुला की तैयारी करें ? ललिता सखी ने आगे आकर पूछा ।
श्याम सुन्दर ने कहा – हम सब उत्साहित हैं ….अलियों ! तुम जो करोगी उसमें हम सब की ही इच्छा है ऐसा मानना ।
बस फिर क्या था ? तैयारियाँ आरम्भ हो गयीं । ब्याहुला होगा , हमारे युगल सरकार का ब्याहुला होगा । सुन्दर सा मण्डप सजाया । वो मण्डप अद्भुत था । नाना प्रकार के पुष्पों का मण्डप था वो । मणियों के खम्भ थे उसमें । नाना प्रकार के बाजा सखियों ने ही बजाने शुरू कर दिये थे ….वेदी पुष्पों की बनाई गयी थी । चारों ओर कदली वन को प्रकट कर दिया था ।
मंगल मंगल ध्वनि से चारों ओर मंगल होने लगा था । मोरों ने नाचना और कोयल आदि पक्षियों ने कुहुकना आरम्भ कर दिया था ….कमल पुष्पों की भरमार हो गयी थी क्यों कि यमुना ने अपने तट पर कमल का ढेर लगा दिया था ….उसमें से सुगन्ध प्रसारित होने लगी थी ।
श्रीजी को केसर के जल से स्नान कराया गया था ….वहीं श्याम सुन्दर को भी ।
और दोनों को सजाकर , सुन्दर शृंगार कराकर जब विवाह मण्डप पर सखियाँ लेकर आईं । उस समय का रूप प्रिया जी जो वधू के रूप में सजी हैं , उन्हीं में सब सखियों की दृष्टि अटक गयी थी। अपलक देखती रहीं …उनसे कुछ कहते न बना । इसी रूप का वर्णन , विवाह मण्डप में बैठी दुल्हन , हमारी स्वामिनी कैसी लग रही हैं । उन्मुक्त नृत्य करते हुए हित सखी अपनी स्वामिनी जू के अद्भुत शृंगार का वर्णन कर रही हैं ।
आहा !
देखो तो सही दुलहिनी के रूप में सजी हमारी श्रीकिशोरी जी कितनी सुन्दर लग रही हैं ।
अद्भुत श्रृंगार है इनका …अपने प्रीतम के साथ विराजमान ये बड़ी प्यारी लग रही हैं ।
अरे ! इनका रूप लावण्य ! ऐसा रूप तो आज तक किसी ने देखा नही होगा ।
मृग के जैसे इनके नयन उसमें काजल और लगा है …स्नान कराते समय इनके श्रीअंग में उबटन लगाया था …फिर सिर से स्नान कराया …और वस्त्र आभूषण आदि धारण करवाकर …माथे में कस्तूरी का तिलक …फिर तो सोलह शृंगार में सज गयीं थीं हमारी स्वामिनी , देखो तो ऐसा लग रहा है …जगत के सौंदर्य ने ही आकार ले लिया हो …ये तो ऐसी लग रही हैं ।
हित सखी की बातें सुनकर सब प्रमुदित हैं ….श्रीजी मुस्कुरा रही हैं …ललिता सखी श्रीजी की प्रसादी माला लेकर हित सखी को पहना देती हैं । अब तो हित सखी के आनन्द का कोई ठिकाना न रहा ।
अरी सखियों ! देखो ना , हमारी स्वामिनी के कपोल केसर की तरह लाल हैं ….केशों में जो चंद्रिका लगी है उससे केशों की चमक और बढ़ रही है । वेणी में जो फूले गुँथे हैं …वो लाल डोरी में गुँथे हैं …..वेणी की शोभा भी देखते ही बन रही है ।
दुल्हन के कानों में जो कुंडल हैं ना ,
सखी ! वो मणियों के हैं …देख तो कैसी चमक है इन मणियों की ।
और गोरे आनन में ठोडी को तो देखो ….श्याम बिन्दु झलक रही है ….और इनकी कसी हुयी चोली …कँसूभी रंग की चोली …और ऐसी कसी है जैसे किसी अनिर्वचनीय फल को इसमें छिपा रखा हो । आहा ! क्या सुन्दर रूप है आज तो ।
हित सखी के साथ साथ सखियाँ भी आनंदित हैं …अजी ! आज तो पूरा श्रीवन आनंदित है….ब्याहुला जो हो यहाँ है यहाँ के महाराजा और महारानी का ।
अब फेरे पड़ने लगे दूलह और दुलहिन के ……
तब हित सखी कहती है ….देखो तो सही ! हमारी दुलहिन की सुन्दर भुजाओं को ….और उसमें जो चमकते हुए कंकण हैं …वो कितने प्रकाशमान हो रहे हैं । कमर कितनी पतली है , और नाभि गहरी है …उदर में तीन रेखाएँ पड़ रही हैं …उससे तो इनकी झाँकी दिव्य से भी और दिव्य लग रही है सखी !
फेरे ले रहे हैं युगलवर ,
अन्य सखियाँ पुष्प उछाल रही हैं …प्रिया जी के दुल्हन रूप देखकर देह सुध भूल रही हैं ।
नीली साड़ी कितनी फंव रही है ना ! और क्षीण कमर में जो करधनी लगी है …और वो फेरे के समय बज भी रही है ….कितनी मधुर आवाज़ आरही है ना सखी !
हित सखी ललिता से पूछती हैं ….स्वामिनी सम्पूर्ण शास्त्रों में निष्णात हैं ? ललिता हंसती हैं – कहती हैं …शास्त्र और वेद जिनके स्वाँस हैं उन श्याम सुन्दर की स्वाँस इनके स्वाँस से प्रकट होती है …..और तू पूछ रही है , स्वामिनी शास्त्र निष्णात हैं ?
हाँ , तभी तो मैं कहूँ संगीत की सूक्ष्म परख स्वामिनी में दिखाई देती है …और संगीत ही नही …कमर में बंधी ये करधनी इसका संकेत दे रही है कि इनको कोक शास्त्र का भी ज्ञान है …कटि , कटि भी क्षीण कटि ….उसमें करधनी ! संगीत और कोक शास्त्र का क्या समन्वय किया है ….सखी ! श्याम सुन्दर को करधनी का संगीत मत्त कर देगा और इनकी ये गोरी क्षीण कटि उन्मत्त कर देगी । आहा ! हित सखी भाव सिंधु में गोता लगा रही है ।
तभी श्याम सुन्दर रुक गए , प्रिया जी में दृष्टि अटक गयी । उस रूप सौन्दर्य को निहारकर आगे ब्याह का फेरा लेना है ये भी भूल गये । उसी समय ललिता सखी ने आकर प्रिया जी के कान में कहा …बेचारे प्रीतम तो अटक गए हैं आपके रूप माधुर्य में । ये सुनते ही प्रिया जी हंस पड़ीं …प्रिया जी के हंसते ही कामदेव ब्याह मण्डप के आस पास ही घूम रहा था वो मूर्छित हो गया ….श्याम सुन्दर की ओर भृकुटी विलास अब प्रिया जी ने किया तो श्याम सुन्दर भी मूर्छित होने वाले ही थे कि प्रिया जी ने आगे बढ़कर उन्हें सम्भाल लिया ….वो बैठ गयीं और श्याम सुन्दर उनकी गोद में । ये झाँकी अद्भुताद्भुत थी । सखियाँ नाच रही हैं …पुष्पों को उछाल रही हैं दुल्हा दुल्हिन में । कोई शहनाई बजा रही है तो कोई वीणा ।
हित सखी कहती है – दुल्हा तो सच में ही दुल्हन के वश में है । देखो , तो ।
सब सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करती हैं और राई नौंन से नज़र उतारती हैं ।
पागलबाबा को शाश्वत आकर पगड़ी बांध देता है …..बाबा कहते हैं …हम को पगड़ी क्यों ? हम तो प्रिया जी की सखी हैं । गौरांगी कहती है ..ब्याहुला के दिन सखियाँ भी आनन्द में पगड़ी बांधती हैं ….बाबा को गौरांगी की बात ठीक लगती है । वो हंसते हुए पगड़ी बाँध लेते हैं ।
आज प्रसाद भी बना है सबके लिये ….मिष्ठान्न अनेक प्रकार के हैं ….बाबा कहते हैं …सब प्रसाद लेकर ही जाना , आज विवाह का , ठाकुर जी के ब्याहुला का प्रसाद है ।
इसके बाद गौरांगी इसी पद का गायन करती है ।
“रुचिर राजत वधू कानन किशोरी”
जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे , जय जय श्रीराधे ।
आगे की चर्चा अब कल –
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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877