
श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग !!
भाग 1
क्यों सब इसी पनघट पर आती हैं ………यमुना जी के घाट तो अन्य भी हैं …….पर सम्पूर्ण नन्दगाँव को इसी पनघट पर आना है …….और इतना ही नही अब तो बरसानें की सखियाँ भी यहीं आनें लगी हैं ………फिर स्वयं की असावधानी से मटकी फूट जाए तो दोष कन्हाई पर ……….
हँसे उद्धव ………..कोई कोई गोपी तो स्वयं ही मटकी फोड़ देती …….फिर झगड़ती बेचारे नन्दनन्दन से ………गुलचा मारती ……कपोल छूनें के बहाने हैं ये सब ………..पीताम्बरी खींच कर भागती ……..जब कन्हाई उसके पीछे लगते ……..तो वह अत्यन्त आनन्दित हो उठती ….और सबको बताती …..दिखाती कि …..कैसे मेरे पीछे पड़ा रहता है ये नन्द का छोरा……..एकान्त में गले लग जाती ……..फिर तो कहना ही क्या …….क्या क्या करती ।
एक दिन – अभी अभी तो वर्षा होकर थमी है ………आकाश में इंद्र धनुष भी निकल आया है ……वृक्ष जैसे नहा धोकर तैयार हो गए हैं….पक्षियों का कलरव फिर शुरू हो चुका है ……….धरती से रज की भीनीं भीनी सुगन्ध आरही है ………..यमुना जी का जल भी बढ़ ही गया था ।
*क्रमशः….

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