!! उद्धव प्रसंग !!
{ उद्धव का गोपियों को ज्ञानोपदेश }
भाग-19
भवतीनां वियोगो मे न हि सर्वात्मना क्वचित् ।
( श्रीमद्भागवत )
उद्धव श्रीराधा और समस्त गोपियों की यह प्रेमदशा देखकर घबड़ा गए ।
अरे ! उद्धव ! तू भी तो कुछ बोल ।
केवल इन्हीं को देखे जा रहा है… इन्हीं नारियों के विलाप को सुने जा रहा है… और आश्चर्य ये कि… इनका प्रेम तुझे बदल रहा है उद्धव !
तू बदल रहा है…तुझे पता नही चल रहा… पर तू अंदर से बदल रहा है ।
उद्धव के भीतर से… ये उद्धव का अहं ही बोला था ।
नही उद्धव ! तू अपना ज्ञान इन गोपियों को दे ।
पर फिर उद्धव विचार करने लगे कि ये क्या !
ज्ञान उसे कहते हैं… जो जस का तस दिखा दे…
जैसे लोहा को लोहा दिखाए… और सोना को सोना बताये ।
ज्ञान में कोई परिवर्तन नही होता… जो है वही बता देता है…
पर प्रेम ? ये तो विचित्र है… ये तो बदल देता है… लोहा को सोना बना देता है… पत्थर हृदय को पिघाल देता है… ।
ज्ञान में… ये जड़ है… ये चैतन्य है… संसार जड़ है… परमात्मा चैतन्य है… पर इस प्रेम में कोई जड़ नही है… सब चैतन्य है ।
सर्वत्र कृष्ण ही दीख रहा है इन्हें…हम ज्ञानियों की दृष्टि में ये जगत मिथ्या है… प्रकृति जड़ है… पर इन्हें तो जड़ ही नही दीख रहा… जड़ में भी कृष्ण बाँसुरी बजाता हुआ दिखाई दे रहा है… ओह !
उद्धव इस प्रेम का दर्शन करके मुग्ध हैं… पर अब डर रहे हैं ।
इन्हें डर लगने लगा है कि… कहीं मैं बदल न जाऊँ !
कहीं मैं भी इनके साथ रोना शुरू न कर दूँ… गोपी बनकर यहीं न रह जाऊँ !…
नही… अपने आपको सम्भाला उद्धव ने… नही मुझे इस भाव में बहना नही है… ये तो महिलाएं हैं… और महिलाओं का सहज स्वभाव होता है…रोना… ।
मैं इन्हें ज्ञान दूंगा… उद्धव ने विचार किया ।
पर मैं ज्ञान दूँ… तो क्या ये सुनेंगी ?
क्या ये कृष्ण के अलावा और कुछ सुन पाएंगीं ?…
उद्धव बुद्धिमान हैं…समझ गए… इनको उद्धव ! तुम क्या… स्वयं ब्रह्मा भी आजायें तो भी उनके मुख से वेद ज्ञान को भी ये सुनने वाली नही हैं… फिर तू क्या है ?
फिर विचार करते हैं…हाँ…”तुम्हारे प्रियतम का सन्देश है”… ये कहकर देखता हूँ… तब तो मेरी सुनेंगी ही…इनको सुनना पड़ेगा ही ।
ऐसा विचार कर उद्धव बोलने के लिए तैयार हुए ।
मैं उद्धव ! आप सब लोगों को प्रणाम करता हूँ… और आपके प्रियतम श्रीकृष्ण का सन्देश आप लोगों को सुनाता हूँ ।
ये बात उद्धव ने… समस्त गोपियों के मध्य में खड़े होकर जोर से कहा था ।
सारी गोपियाँ उद्धव को देखने लगीं…जो दूर दूर भी बैठीं सुबुक रही थीं…वो भी सब पास में आगयीं… श्रीराधा ने भी अपनी शंख सी गर्दन ऊपर उठाकर एक बार उद्धव को देखा… ।
उद्धव को सभी गोपियों ने घेर लिया था…मध्य में अब उद्धव थे ।
सब देखने लगीं उद्धव को…
क्या सन्देश भेजा है हमारे प्रियतम ने ?… एक गोपी ने पूछ लिया ।
मेरे लिए… मेरे नाम से कुछ लिखा है क्या ?… दूसरी सखी ने पूछा ।
नही नही… मेरा सन्देश सब के सामने मत पढ़ना…मुझे लाज आएगी… वो मुझे कैसे कैसे नामों से पुकारते थे…एकान्त में मुझ से कहते थे… इतना कहते हुए वो शरमा गयी… नही बताऊंगी ।
हमकुँ लिख्यो है कहा ? हमकुँ लिख्यो है कहा ?
हमकुँ लिख्यो है कहा… कहन सबै लगीं ।
बताओ ना ! क्या लिखा है हमारे प्राण नाथ ने ?…
सब बैठीं हैं… और उद्धव की ओर सबकी दृष्टि है ।
पर सन्देश सुनकर क्या होगा ?
ललिता सखी ने पूछा ।
क्या कृष्ण मिलेंगे ?…
दूसरी सखी ने तुरन्त कहा… क्या पता… “मैं दो दिन में आने वाला हूँ”…ये सन्देश हो ।
या “अब मैं मथुरा जाऊँगा ही नही”…”तुम्हारी बहुत याद आती है” ।
क्या पता ऐसा लिखा हो… ।
सुनो गोपियों सुनो…हमारे प्रियतम का सन्देश है… सुनो ।
चन्द्रावली सखी ने सबको शान्त किया…
अब उद्धव जी बोलने लगे थे ।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है…
एक गोपी अपनी साड़ी के पल्लू में मुँह छुपा कर हँसी..भगवान श्रीकृष्ण !
हाँ… भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है… उद्धव ने “भगवान” शब्द पर जोर देकर कहा ।
हे गोपियों ! तुम्हारे साथ मेरा कभी वियोग सम्भव ही नही है ।
क्यों कि मैं सभी जगह हूँ… सर्वात्मा मेरा ही तो नाम है ।
हे मेरी प्यारी सखियों ! इस जगत में सर्वत्र मैं ही हूँ ।…अणु परमाणु सभी में मेरी ही उपस्थिति है… आकाश की शून्यता में भी मैं ही हूँ ।
सभी प्राणियों में आत्मा रूप से मैं ही रहता हूँ ।
अरे ! वायु में ..पृथ्वी में… अग्नि में… जल में… तुम कहीं भी देखो मैं ही मैं हूँ ।
हर काल में हूँ… हर स्थान में हूँ…मेरे सिवा और, और कुछ नही है ।
हे मेरी गोपियों ! अब तुम स्वयं विचार करो… जब सर्वत्र हूँ… तो वृन्दावन में भी तो हूँ… तुम्हारे कुञ्जों में भी तो हूँ ।
और रही काल की बात… तो मैं ही काल हूँ… काल यानि समय ।
अब हर काल में हूँ… तो शाम को भी हूँ…सुबह भी हूँ… रात में भी हूँ ।
हर समय और हर स्थान में, मैं ही हूँ ।
इतना कहकर कुछ क्षण के लिए उद्धव चुप हुए… और चारों ओर उद्धव ने देखा… गोपियों की दशा का आंकलन करने लगे ।
सुन रही हैं… शान्ति से… तो इसका मतलब है… कि मेरे सन्देश का असर हो रहा है… चलो ! अब इसी कृष्ण के बहाने से मैं अपना ज्ञान इन्हें देता हूँ… उद्धव मुस्कुराये… और फिर बोलने लगे थे ।
ब्रह्म है कृष्ण… आँखें बन्द करो… और अपने में ही उसे देखो ।
वो तुम्हारे हृदय में हैं…पर उस हृदय तक पहुंचने के लिये ..अंतर्मुखी होना आवश्यक है…
उद्धव बोले जा रहे हैं…
हे गोपियों ! ब्रह्म साकार कहाँ है ?
हाँ… वो साकार भी बनता है… तो क्षणिक है उसका ये रूप ।
वो तो सच में निराकार है… उसका कोई आकार नही है ।
तुम उस निराकार की उपासना करो… तुम्हारा हृदय शान्त रहेगा ।
ध्यान करो… प्रणायाम करो… ऐसे साँस लो… और फिर ऐसे छोड़ो… ये है प्रणायाम… इससे तुम्हारा मन शान्त होगा ।
फिर आँखें बन्द करो… और आँखें बन्द करके… ज्योति का ध्यान करो… निराकार ज्योति का ।
उद्धव ने बड़ा लम्बा चौड़ा भाषण दे डाला… इस भाषण को गोपियों ने सुना… बड़े ध्यान से सुना ।
फिर गम्भीर होकर गोपियों ने उद्धव की ओर देखा…
फिर रोने लगीं…उद्धव ! तुम तो ज्ञानी हो… बुद्धिमान हो !
नागरी सभ्यता के व्यक्ति हो… तुम जो कह रहे हो… वो बात सही ही होगी… पर ये दिल नही मानता !…
उद्धव ! तुम ज्ञानी हो… मनसुखा कह रहा था कि तुम बृहस्पति के शिष्य हो… तो तुम्हारी बातें मिथ्या हो कैसे सकती हैं ।
उद्धव ! तुम्हारी बातें सत्य हैं…पर हम क्या करें… हमारा ये दिल नही मानता… तुमने कहा… वह निराकार है… होगा, पर हमारा दिल नही मानता… तुम कहते हो कि प्रणायाम करो… ठीक है उद्धव ! तुम कहते हो तो बात सही होगी… पर ये दिल नही मानता… तुमने कहा… ज्योति का ध्यान करो… ठीक कह रहे होंगे तुम… पर हम तो गवाँर हैं ना… हमारा दिल तुम्हारी बातों को स्वीकार नही करता… ।
रोने लगीं गोपियाँ… ये कहते हुए ।
पर क्यों ? क्या मेरी बातें सही नही हैं ?…
उद्धव ने कहा ।
नही हैं… सही नही है तुम्हारी बातें… ललिता सखी ने चिल्लाकर कहा…उद्धव अवाक रह गए ।
शेष चर्चा कल…
ऊधो ज्ञान चर्चा सुहाती नही है ..
बिना कृष्ण दर्शन के शान्ति नही है…


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