!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 77 !!
श्रीराधारानी का गाया गीत -“भ्रमर गीत”
भाग 2
हाँ ……वो राधा अपनें पांवों से चलकर कभी भी हमारे मथुरा में आसकती है…….और वो अगर मथुरा में आगयी ना ……फिर तो हमारे श्याम सुन्दर उसी के हो जायेंगें ……..इसलिये इस भँवरे को यहाँ भेजा है उन नागरियों नें……कहा होगा ……पाँव के रस को ही चूस लेना ………हट्ट हट्ट भँवर ! जा !
और हाँ …..कह देना उन मथुरा की नागरियों से…….राधा कभी नही आएगी तुम्हारे मथुरा……..कभी नही आएगी……..हमें नही बात करनी उस कपटी से……रखो तुम ही उस कपटी को ।
( श्रीराधा रानी भँवरे को कह रही थीं ……….डाँट रही थीं ……इसी बहानें गीत गा रही थीं …..और इधर – वज्रनाभ नें महर्षि शाण्डिल्य से एक प्रश्न कर दिया )
गुरुदेव ! श्रीराधा रानी का “कपटी” कहना , श्रीकृष्ण को कपटी कहना ये मुझे प्रिय नही लग रहा….वज्रनाभ नें अपनी बात कही ।
गम्भीरता के साथ ही महर्षि शाण्डिल्य बोले थे –
क्यों न कहें कृष्ण को कपटी ?
महर्षि स्वाभाविक श्रीराधा का ही पक्ष लेते हैं ।
मैं आऊँगा ! मैं आऊँगा लौटकर राधे !
…….कितनी बार कहा था, क्यों नही आये ?
कितनी कपटपूर्ण बातें कीं वज्रनाभ ! – “तुम्हारे समान त्याग हे राधे ! किसी का नही है ……..तुम्हारा प्रेम ही मुझे खींचता है…..जब मुझे बुलाओगी मैं आऊँगा”……ये बात कितनी बार कही थी ।
क्या ये सच बात थी ? अगर सच थी तो आना चाहिये था ।
पर गुरुदेव ! ये तो ब्रह्म हैं ……वज्रनाभ नें फिर ब्रह्म की चर्चा छेड़ दी ।
हाँ …….अगर ब्रह्म की दृष्टि से भी देखें तो “माया” किसे कहते हैं ……
और माया किसकी है ?
इसी की है ना माया ? और माया क्या है ? क्या कपट , माया का पर्याय नही है ……..क्या माया का ही अर्थ कपट नही है ?
हे वज्रनाभ ! जो ब्रह्म को अच्छे से पहचानता है ………वही कह सकता है कि ब्रह्म कपटी है ……..ये बात महर्षि शांडिल्य नें कही ।
ब्रह्म के साथ माया का कपट सदैव रहता ही है ………क्या इस बात को कोई इनकार कर सकता है ?
वज्रनाभ ! माया का अर्थ “कृपा” भी है ……..और “दम्भ भी है ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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