!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 77 !!
श्रीराधारानी का गाया गीत -“भ्रमर गीत”
भाग 3
और माया किसकी है ?
इसी की है ना माया ? और माया क्या है ? क्या कपट , माया का पर्याय नही है ……..क्या माया का ही अर्थ कपट नही है ?
हे वज्रनाभ ! जो ब्रह्म को अच्छे से पहचानता है ………वही कह सकता है कि ब्रह्म कपटी है ……..ये बात महर्षि शांडिल्य नें कही ।
ब्रह्म के साथ माया का कपट सदैव रहता ही है ………क्या इस बात को कोई इनकार कर सकता है ?
वज्रनाभ ! माया का अर्थ “कृपा” भी है ……..और “दम्भ भी है ।
कृपा के रूप में माया का प्रभाव अपनें भक्तों पर छोड़ते हैं …….और जो संसारी हैं …..संसार में लिप्त हैं ….उनके लिये दम्भ रूपी माया का प्रयोग करते हैं……..पर माया का अर्थ होता ही है कपट ।
क्या गलत कह रही हैं हमारी श्रीराधा रानी !……कृष्ण कपटी है ।
वज्रनाभ अब समझे थे ………जो ज्यादा ही करीबी होते हैं ……वो प्रेम से कुछ भी कह देते हैं ………..अति अपनत्व के कारण कहते हैं ….अति आत्मीयता के कारण ये सब कहते हैं ………प्रेम का प्रवाह तेज़ है इसलिये श्रीराधा रानी ये सब कह रही हैं ।
पर नही ………मैं तो परम पवित्र हूँ……कोई अन्न का आहार लेता है ….कोई फलों का आहार लेता है…..पर मैं तो इतना पवित्र हूँ….कि रस का मात्र आहार लेता हूँ……भँवरे नें मानों श्रीराधा से कहा ।
हँसी श्रीराधारानी तू कितना पवित्र है हम सब जानती हैं ……….
मुझे सुना रहे हो ……कि मैं रस भोगी हूँ…..रस का ही आहार लेता हूँ …..
अरे ! जा ! तेरी शकल सूरत ही बता रही है की…तू कितना पवित्र है ।
शकल सूरत में क्या होगया ? मानों भँवरा अपनें आपको पास के जलाशय में देखनें लगा था ……।
तेरे इस मूँछ में कुंकुम कैसे लगा ? बता ! श्रीराधा रानी नें पूछा ।
उद्धव देख रहे हैं …………भँवरा कुछ नही बोला ……चुप हो गया ।
देख तो कैसा कुंकुम लगा के चल रहा है तू ………….
ये कुंकुम हमारी सौत के वक्ष का है ……..हम सब जानती हैं ।
वनमाला धारण करता है ना तेरा मित्र………तो उस वनमाला को हमारी सौतों नें मिलकर अपनें वक्ष से रौंद दिया होगा ………तो वक्ष का कुमकुम वनमाला में लग गया ……..अब तू उस वनमाला में बैठकर सीधे यहाँ आगया है …….हँसी श्रीराधा रानी – कम से कम इतना तो ख्याल रखा होता…..कि मुँह में लगे कुमकुम को मिटाकर , अपनें मित्र की प्रतिष्ठा तो बचानी चाहिये थी……..या – हे भँवरे ! कहीं हमें ही चिढानें के लिये उन मथुरा की सौतों नें तुझे ऐसे ही तो नही भेज दिया ?
हट्ट ! हट्ट …अब तो हमें तेरा मुख देखना ही नही है ……
….जा रे भँवर ! जा !
श्रीराधा के इतना कहनें से भँवरा उड़ कर चला गया था ।
श्रीराधा रानी नें देखा …………
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877