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August 3, 2025 9:06 am

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( दोनों मिल एक भये – “बल्लवी सु कनक” ) – : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( दोनों मिल एक भये – “बल्लवी सु कनक” ) – : Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

(दोनों मिल एक भये – “बल्लवी सु कनक” )

गतांक से आगे –

जिस रस की चर्चा हम “श्रीहित चौरासी” के माध्यम से कई दिनों से कर रहे हैं …उस रस की अधिष्ठात्री देवि श्रीराधा रानी हैं । वे अनन्त की ओर छोर रहित एक विशाल धारा हैं । ये स्वयं रस रूपा हैं जी ! इन्हीं से रस पाकर श्रीकृष्ण रसिक शिरोमणि बनते हैं ।

वेद कहते हैं – ब्रह्म विद् ब्रह्मैव भवति …ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म हो जाता है ..इसी वैदिक न्याय से तो यही बात हुई कि ….इस रस को जो जान लेता है वह भी रस रूप हो जाता है । इसीलिए तो कहा गया कि निकुँज में सब रस ही रस हैं …हाँ , इसका मूल श्रोत श्रीराधिका जू ही हैं ।

इस रस ब्रह्म की उपासना , हमारे श्रीवृन्दावन के रसिकों ने बड़ी तल्लीनता के साथ की है ..आज भी उतने ही तन्मय होकर कोई इन श्रीहित चौरासी , महावाणी, केलिमाल जी आदि का पाठ करे , इनके पदों को गाये ….और गाये तो हृदय से गाये ….तल्लीन होकर गाये …एक एक अक्षर को समझकर गाये …उसी रस में अपने को डुबो कर गाये तो सच कह रहा हूँ मैं , रस ब्रह्म प्रकट हो जाएगा तुम्हारे भीतर । भीतर ही क्यों बाहर भी उसकी झाँकी दिखाई देने लगेगी ।

बात पाँच वर्ष पहले की है ……एक दिन पागलबाबा ने एकान्त में मुझे ये पद गाने के लिए कहा ….”बल्लवी सु कनक बल्लरी तमाल श्याम संग” पद संख्या है अस्सी । मैंने गाया …बाबा ने नेत्र बन्दकर के इसका अर्थ मुझे बताया । फिर न जाने क्या हुआ ….बोले …कुँज में पत्ते गिर गये हैं ….थोड़ी सोहनी ( झाड़ू ) लगा दो । मैं लगाने लगा तो बोले ….ऐसे नही ….”बल्लवी सु कनक बल्लरी” इसको गाते हुए सोहनी लगाओ । बाबा कुछ भी कहते हैं , करवाते हैं …वो सब साधना का ही पार्ट होता है । मैं झाड़ू लगाते हुए ये पद गा रहा था …..तभी मेरे देह में रोमांच हुआ …झाड़ू छूट गयी ….मैं स्तब्ध सा बस देखता रहा । वो झाँकी मेरे सम्मुख उपस्थित हो गयी थी ।

तमाल वृक्ष से लिपटी हुयी वो कनक वेल ……………उफ़ !

मैं एक बात कहना चाहता हूँ …..ये “श्रीहित चौरासी” आदि जो रसिकों की वाणियाँ हैं न, इनकी व्याख्या नही हो सकती , कोई कर नही सकता , ये तो रस है , कल मैंने लिखा था ना ..ये तो रसासव है ….इसे पढ़ना एक बार है ….पीना बार बार है ….पियो , लड़खड़ाने लगो तो गिर जाओ …क्यों कि यहाँ गिरोगे भी तो पतन नही है ….गिरोगे भी तो रस सिन्धु में ही गिरोगे । इसलिये स्वाद लो , एक एक पद को घण्टों चिन्तन करते रहो , पद में जिस झाँकी का वर्णन है , जिस लीला का वर्णन है …उसका ध्यान करो , उसमें डूब जाओ ।

ये विषय वाणी का , शब्दों का नही था ….किन्तु “परा पश्यन्ति” विषय को “वैखरी” का विषय बना देना ….ये सब इन रसिकों की हमारे ऊपर परम कृपा हुई तभी ये सब हो सका । ये विषय तो देखने का , अनुभव का ही था । पर ….हित सखी जू ने कृपा की …अवतार लिया और श्रीहित हरिवंश जू के रूप में कृपा बरसी । ललिता सखी जू ने कृपा की …और स्वामी श्रीहरिदास जू के रूप में प्रकटे ….केलिमाल जू हमें प्रदान किए । श्रीहरिप्रिया सखी जू की कृपा भई तो महावाणी जी के माध्यम से हम को रसोपासना में अवगाहन कराया । इन सब ने देखा है …ये सब निकुँज की सखियाँ हैं …वहीं से आई हैं …..हम सब पर कृपा बरसाने आई हैं । साधकों ! हमें इस मार्ग पर सानंद चलना चाहिए , और शिघ्रतिशिघ्रा चल देना चाहिये । अब नही तो कब ? ये प्रश्न पूछिये अपने से । इतना अनुकूल वातावरण बन रहा है ….चलिये ना ! उस रस सिन्धु की ओर ।


           बल्लवी सु कनक - बल्लरी तमाल श्याम संग ,
            लागि रही अंग-अंग मनोभिरामिनी ।

            वदन ज्योति मनौं मयंक , अलक तिलक छबि कलंक ,
             छपति श्याम अंक मनौं जलद दामिनी ।

           विगत बास हेम खंभ , मनु भुवंग बैंनी दंड ,
            पिय कैं  कंठ प्रेम पुंज कुंज कामिनि ।

           जै श्रीशोभित हरिवंश नाथ साथ सुरत आलसवंत,
           उरज कनक कलश राधिका सु नामिनी । 80 ! 

बल्लवी सु कनक वल्लरी ………….

गौरांगी ने वीणा के तारों को झंकृत करते इस पद का गायन किया ।

झूम उठा था रसिक समाज । इसके बाद पागल बाबा ने ध्यान करवाया ।

साधकों ! आप सब भी ध्यान करो ।


                                   !! ध्यान !! 

सुन्दर कुँज है , सज्जित कुँज । उस कुँज में महक, वेला चमेली, आदि की खूब आरही है ।

सुन्दर कमल दल सज्जित शैया है …उस शैया पर आकर विराजमान हो गए हैं युगल सरकार ।

क्यों की नृत्य करते हुए थक गए हैं …प्रिया जी अँगड़ाई लेती हैं …..श्याम सुन्दर ने जब प्रिया को अँगड़ाई लेते देखा तो उनका मन चंचल हो उठा । वो तुरन्त आगे बढ़कर अपनी प्रिया को बाहों में भर लेते हैं । अब दोनों के नेत्र बन्द हैं । दोनों इसी तरह एक दूसरे में समा गये हैं । कुछ भी भान नही है बाहर का । श्याम अंग में ये गौर अंग अद्भुत शोभायमान लग रहा है । कुँज के रंध्र से सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करती हैं और सब कुछ भूल रही हैं ।

विशेष हित सखी कुछ ज़्यादा ही प्रमुदित है …..
वो अपनी कुछ प्रिय सखियों को इसका वर्णन करके बता भी रही है ।


आहा ! हे सखियों ! ये झाँकी तो अद्भुत और अनुपम है …क्या उपमा दूँ इसको ।

ऐसा लग रहा है ….कुछ सोचकर हित सखी कहती है ।

ऐसा लग रहा है …मानौं कनक बेल तमाल वृक्ष में लिपट गयी हो ।

देखो तो सखी ! हमारी श्रीजी कनक बेल समान हैं …उनकी अंग कान्ति सुवर्ण के सदृश है …और श्याम सुन्दर तो तमाल हैं हीं । मैं क्या कहूँ सखी ! इस झाँकी का वर्णन तो वाणी से सम्भव नही लग रहा । बस देखो , निहारो सखी ।

प्यारी का मुख ऐसा लग रहा है ..जैसे पूर्ण चंद्रमा हो । नही नहीं …स्वयं की ही बात का खंडन करती है हित सखी …फिर कुछ सोचकर कहती है …..चन्द्रमा तो लग रहा है मुख …पर नभ के चंद्रमा में काला कलंक है …किन्तु हमारी किशोरी जी के मुख में कोई कलंक नही है । आहा ।

और प्यारी प्यारे के अंक में छुप गयीं हैं । दर्शन करो ।
ऐसा नही लग रहा कि “बिजली बादल में छुप गयी हो “! हित सखी अति आनंदित है ।

दोनों हिल रहे हैं …एक दूसरे में समाये हैं …”पर “रस” की भी अपनी शर्त है कि दो को एक बनाकर ही मानेगा”। हित सखी कहती है ….श्रीअंग श्रीजी का ऐसा लग रहा है जैसे सुवर्ण स्तम्भ …..और केश वेणी ? देखो ….कितनी लम्बी वेणी है ….कज्जल की तरह ….ऐसी नही लग रही जैसे कोई सर्प बैठा हो । हित सखी उपमा दे देकर बता रही है ।

अब श्याम सुन्दर सो गये हैं ….प्यारी जू उनके ऊपर हैं ….उनके वक्ष स्वर्ण कलश के समान श्याम सुन्दर के वक्ष में टिके हैं ….ओह ! ये रस ही रस की झाँकी , सखी ! ऐसी झाँकी कहाँ देखने को मिलेगी ? अब कुछ हलचल हुयी है ….अपनी भुजाओं को श्याम सुन्दर के कंठ में डाल दिया है प्यारी जू ने । उनका वो गौर मुख श्याम मुख पर लगा वो शोभा दे रहा है …..जिसका वर्णन सम्भव नही है । ये कहते हुए हित मौन हो गयी ….वो दर्शन करती रही …फिर एकाएक आल्हाद में कहने लगी …..सखी ! अब दो एक हो गये । अब दो नही रहे । दोनों गौर श्याम एक दूसरे में समा गये । गौर ज्योति श्याम ज्योति में विलीन हो गयी है ।

ओह !


पागलबाबा इस रसोन्मत्त झाँकी दर्शन करके बोलने की स्थिति में ही नही हैं ।

गौरांगी ही इसी पद का फिर गान करती है ।

“बल्लवी सु कनक बल्लरी तमाल”

शेष चर्चा कल –

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( दोनों मिल एक भये – “बल्लवी सु कनक” )

गतांक से आगे –

जिस रस की चर्चा हम “श्रीहित चौरासी” के माध्यम से कई दिनों से कर रहे हैं …उस रस की अधिष्ठात्री देवि श्रीराधा रानी हैं । वे अनन्त की ओर छोर रहित एक विशाल धारा हैं । ये स्वयं रस रूपा हैं जी ! इन्हीं से रस पाकर श्रीकृष्ण रसिक शिरोमणि बनते हैं ।

वेद कहते हैं – ब्रह्म विद् ब्रह्मैव भवति …ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म हो जाता है ..इसी वैदिक न्याय से तो यही बात हुई कि ….इस रस को जो जान लेता है वह भी रस रूप हो जाता है । इसीलिए तो कहा गया कि निकुँज में सब रस ही रस हैं …हाँ , इसका मूल श्रोत श्रीराधिका जू ही हैं ।

इस रस ब्रह्म की उपासना , हमारे श्रीवृन्दावन के रसिकों ने बड़ी तल्लीनता के साथ की है ..आज भी उतने ही तन्मय होकर कोई इन श्रीहित चौरासी , महावाणी, केलिमाल जी आदि का पाठ करे , इनके पदों को गाये ….और गाये तो हृदय से गाये ….तल्लीन होकर गाये …एक एक अक्षर को समझकर गाये …उसी रस में अपने को डुबो कर गाये तो सच कह रहा हूँ मैं , रस ब्रह्म प्रकट हो जाएगा तुम्हारे भीतर । भीतर ही क्यों बाहर भी उसकी झाँकी दिखाई देने लगेगी ।

बात पाँच वर्ष पहले की है ……एक दिन पागलबाबा ने एकान्त में मुझे ये पद गाने के लिए कहा ….”बल्लवी सु कनक बल्लरी तमाल श्याम संग” पद संख्या है अस्सी । मैंने गाया …बाबा ने नेत्र बन्दकर के इसका अर्थ मुझे बताया । फिर न जाने क्या हुआ ….बोले …कुँज में पत्ते गिर गये हैं ….थोड़ी सोहनी ( झाड़ू ) लगा दो । मैं लगाने लगा तो बोले ….ऐसे नही ….”बल्लवी सु कनक बल्लरी” इसको गाते हुए सोहनी लगाओ । बाबा कुछ भी कहते हैं , करवाते हैं …वो सब साधना का ही पार्ट होता है । मैं झाड़ू लगाते हुए ये पद गा रहा था …..तभी मेरे देह में रोमांच हुआ …झाड़ू छूट गयी ….मैं स्तब्ध सा बस देखता रहा । वो झाँकी मेरे सम्मुख उपस्थित हो गयी थी ।

तमाल वृक्ष से लिपटी हुयी वो कनक वेल ……………उफ़ !

मैं एक बात कहना चाहता हूँ …..ये “श्रीहित चौरासी” आदि जो रसिकों की वाणियाँ हैं न, इनकी व्याख्या नही हो सकती , कोई कर नही सकता , ये तो रस है , कल मैंने लिखा था ना ..ये तो रसासव है ….इसे पढ़ना एक बार है ….पीना बार बार है ….पियो , लड़खड़ाने लगो तो गिर जाओ …क्यों कि यहाँ गिरोगे भी तो पतन नही है ….गिरोगे भी तो रस सिन्धु में ही गिरोगे । इसलिये स्वाद लो , एक एक पद को घण्टों चिन्तन करते रहो , पद में जिस झाँकी का वर्णन है , जिस लीला का वर्णन है …उसका ध्यान करो , उसमें डूब जाओ ।

ये विषय वाणी का , शब्दों का नही था ….किन्तु “परा पश्यन्ति” विषय को “वैखरी” का विषय बना देना ….ये सब इन रसिकों की हमारे ऊपर परम कृपा हुई तभी ये सब हो सका । ये विषय तो देखने का , अनुभव का ही था । पर ….हित सखी जू ने कृपा की …अवतार लिया और श्रीहित हरिवंश जू के रूप में कृपा बरसी । ललिता सखी जू ने कृपा की …और स्वामी श्रीहरिदास जू के रूप में प्रकटे ….केलिमाल जू हमें प्रदान किए । श्रीहरिप्रिया सखी जू की कृपा भई तो महावाणी जी के माध्यम से हम को रसोपासना में अवगाहन कराया । इन सब ने देखा है …ये सब निकुँज की सखियाँ हैं …वहीं से आई हैं …..हम सब पर कृपा बरसाने आई हैं । साधकों ! हमें इस मार्ग पर सानंद चलना चाहिए , और शिघ्रतिशिघ्रा चल देना चाहिये । अब नही तो कब ? ये प्रश्न पूछिये अपने से । इतना अनुकूल वातावरण बन रहा है ….चलिये ना ! उस रस सिन्धु की ओर ।


           बल्लवी सु कनक - बल्लरी तमाल श्याम संग ,
            लागि रही अंग-अंग मनोभिरामिनी ।

            वदन ज्योति मनौं मयंक , अलक तिलक छबि कलंक ,
             छपति श्याम अंक मनौं जलद दामिनी ।

           विगत बास हेम खंभ , मनु भुवंग बैंनी दंड ,
            पिय कैं  कंठ प्रेम पुंज कुंज कामिनि ।

           जै श्रीशोभित हरिवंश नाथ साथ सुरत आलसवंत,
           उरज कनक कलश राधिका सु नामिनी । 80 ! 

बल्लवी सु कनक वल्लरी ………….

गौरांगी ने वीणा के तारों को झंकृत करते इस पद का गायन किया ।

झूम उठा था रसिक समाज । इसके बाद पागल बाबा ने ध्यान करवाया ।

साधकों ! आप सब भी ध्यान करो ।


                                   !! ध्यान !! 

सुन्दर कुँज है , सज्जित कुँज । उस कुँज में महक, वेला चमेली, आदि की खूब आरही है ।

सुन्दर कमल दल सज्जित शैया है …उस शैया पर आकर विराजमान हो गए हैं युगल सरकार ।

क्यों की नृत्य करते हुए थक गए हैं …प्रिया जी अँगड़ाई लेती हैं …..श्याम सुन्दर ने जब प्रिया को अँगड़ाई लेते देखा तो उनका मन चंचल हो उठा । वो तुरन्त आगे बढ़कर अपनी प्रिया को बाहों में भर लेते हैं । अब दोनों के नेत्र बन्द हैं । दोनों इसी तरह एक दूसरे में समा गये हैं । कुछ भी भान नही है बाहर का । श्याम अंग में ये गौर अंग अद्भुत शोभायमान लग रहा है । कुँज के रंध्र से सखियाँ इस झाँकी का दर्शन करती हैं और सब कुछ भूल रही हैं ।

विशेष हित सखी कुछ ज़्यादा ही प्रमुदित है …..
वो अपनी कुछ प्रिय सखियों को इसका वर्णन करके बता भी रही है ।


आहा ! हे सखियों ! ये झाँकी तो अद्भुत और अनुपम है …क्या उपमा दूँ इसको ।

ऐसा लग रहा है ….कुछ सोचकर हित सखी कहती है ।

ऐसा लग रहा है …मानौं कनक बेल तमाल वृक्ष में लिपट गयी हो ।

देखो तो सखी ! हमारी श्रीजी कनक बेल समान हैं …उनकी अंग कान्ति सुवर्ण के सदृश है …और श्याम सुन्दर तो तमाल हैं हीं । मैं क्या कहूँ सखी ! इस झाँकी का वर्णन तो वाणी से सम्भव नही लग रहा । बस देखो , निहारो सखी ।

प्यारी का मुख ऐसा लग रहा है ..जैसे पूर्ण चंद्रमा हो । नही नहीं …स्वयं की ही बात का खंडन करती है हित सखी …फिर कुछ सोचकर कहती है …..चन्द्रमा तो लग रहा है मुख …पर नभ के चंद्रमा में काला कलंक है …किन्तु हमारी किशोरी जी के मुख में कोई कलंक नही है । आहा ।

और प्यारी प्यारे के अंक में छुप गयीं हैं । दर्शन करो ।
ऐसा नही लग रहा कि “बिजली बादल में छुप गयी हो “! हित सखी अति आनंदित है ।

दोनों हिल रहे हैं …एक दूसरे में समाये हैं …”पर “रस” की भी अपनी शर्त है कि दो को एक बनाकर ही मानेगा”। हित सखी कहती है ….श्रीअंग श्रीजी का ऐसा लग रहा है जैसे सुवर्ण स्तम्भ …..और केश वेणी ? देखो ….कितनी लम्बी वेणी है ….कज्जल की तरह ….ऐसी नही लग रही जैसे कोई सर्प बैठा हो । हित सखी उपमा दे देकर बता रही है ।

अब श्याम सुन्दर सो गये हैं ….प्यारी जू उनके ऊपर हैं ….उनके वक्ष स्वर्ण कलश के समान श्याम सुन्दर के वक्ष में टिके हैं ….ओह ! ये रस ही रस की झाँकी , सखी ! ऐसी झाँकी कहाँ देखने को मिलेगी ? अब कुछ हलचल हुयी है ….अपनी भुजाओं को श्याम सुन्दर के कंठ में डाल दिया है प्यारी जू ने । उनका वो गौर मुख श्याम मुख पर लगा वो शोभा दे रहा है …..जिसका वर्णन सम्भव नही है । ये कहते हुए हित मौन हो गयी ….वो दर्शन करती रही …फिर एकाएक आल्हाद में कहने लगी …..सखी ! अब दो एक हो गये । अब दो नही रहे । दोनों गौर श्याम एक दूसरे में समा गये । गौर ज्योति श्याम ज्योति में विलीन हो गयी है ।

ओह !


पागलबाबा इस रसोन्मत्त झाँकी दर्शन करके बोलने की स्थिति में ही नही हैं ।

गौरांगी ही इसी पद का फिर गान करती है ।

“बल्लवी सु कनक बल्लरी तमाल”

शेष चर्चा कल –

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Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

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