!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 78 !!
विरह जगावे दरद को – “भ्रमरगीत”
भाग 2
कृष्ण तो वहाँ शान्त रहते हैं…….और हाँ आपके इन्हीं चरणों का ध्यान करते रहते हैं……वहाँ किसी नारी से….स्त्रियों से बहुत दूर रहते हैं ….बस आपकी ही यादों में पड़े रहते हैं श्याम सुन्दर ।
अच्छा ! तू सच कह रहा है …..श्याम सुन्दर के जीवन में केवल मैं ही हूँ ..अगर ये सच है……तो फिर वो यहाँ क्यों नही आजाते…..बोल !
श्रीराधारानी नें भँवर से ही पूछा ।
इसलिये नही आते क्यों की आप रूठी हो……
…श्रीराधा रानी को लग रहा है कि भ्रमर बोल रहा है ।
आप अगर मान जाओ……रूठना छोड़ दो तो वे आजायेंगें…..
भँवर का कहना था ।
मैं मान कैसे जाऊँ ? हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय किया है उसनें ।
श्रीराधा रानी बोलीं ।
उद्धव, भँवरा और श्रीराधारानी का सम्वाद सुनकर चकित हैं ……
आगे जो कृष्ण के अन्याय का वर्णन श्रीराधा रानी नें किया है ……उसे सुनकर तो उद्धव की बुद्धि पूर्ण रूप से शून्य हो गयी थी ।
हे भँवरा ! एक बार …बस एक बार श्याम सुन्दर नें हमें अपनें अधरामृत का पान कराया था ………
तब तो आपको अपना भाग्य, सौभाग्य मानना चाहिये ………कि श्रीकृष्ण के अधर सुधा का पान किया ……….भँवरे नें कहा ।
हँसी श्रीराधा रानी – अरे भँवरे ! उस कपटी को हम जानती हैं ……उसनें हमें अपनें अधर का पान इसलिये कराया है ……..कि हम मरें नहीं ………हमें मारना नही चाहता वो …….इसलिये अधरामृत पिलाया था उसनें ।
विचित्र हैं आप श्रीराधे ! अरे ! जीवन दिया ………..धन्यवाद कहो ……….श्याम सुन्दर नें आप सबको जीवन दिया है ……..अधर अमृत पिलाकर वो आप को बचा रहे हैं …….ये तो अच्छी बात है …….।
तुम्हारे लिये अच्छी बात होगी भ्रमर ! जीवन जीनें से अच्छा है हम मर जाती तो ठीक रहता ……….कमसे कमसे ये विरह का ताप तो कुछ कम होता ……पर ये सब जानते हुये भी वो हमें तड़फ़ाना चाहता है …..हमें घुट घुट कर जीनें के लिये मजबूर कर रहा है …..
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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