!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 79 !!
भँवर के गुंजार में…….
भाग 2
क्या गा रहा है रे ! मत गा ! वैसे भी गायन का एक समय होता है .
विचित्र है तू , तब से गाये ही जा रहा है !
श्रीराधारानी नें अपनें कानों में हाथ रख लिए ………मत गा ।
भँवर गुनगुन करता हुआ फिर वहीं आस पास घूमनें लगा था ।
बहुत जिद्दी है तू ! बिल्कुल अपनें मित्र की तरह ………बहुत जिद्दी था वो श्याम सुन्दर……….श्रीराधा रानी फिर भाव में डूब गयीं ।
मैं कोई अपराध नही कर रहा …………गीत गा रहा हूँ …….मेरा स्वभाव है गीत गाना …….मैं गाऊंगा …….मैं यदुपति के गीत गा रहा हूँ ……..मैं यदुनाथ के गीत गा रहा हूँ …………भँवर मानों बोला ।
क्यों गा रहा है यदुपति के गीत ? हमें चिढानें के लिये !
क्यों गा रहा है यदुनाथ के गीत ? हमें जलानें के लिये !
क्या समझता है तू ! हम मूर्खा हैं ……..हम गंवार हैं तो कुछ समझती नही हैं ! सब समझती हैं हम ।
पर यदुपति और यदुनाथ के गीतों से आप लोगों को आपत्ति क्या ?
भँवरे नें पूछा ।
“राधापति” के गीत गा……..”गोपीनाथ” के गीत गा …….”राधाबल्लभ” …..”राधारमण” के गीत गा……..हमें कोई आपत्ति नही है …….पर भँवर ! हमारी हाथ जोड़कर तुमसे प्रार्थना है कि …….मथुरा के वैभव का वर्णन यहाँ मत कर ……हमें चिढ होती है…….हमारे नन्दनन्दन को छीन लिया तुम लोगों नें ….और “राधानाथ” को “यदुनाथ” बना दिया ।
मत सुनाओ ये सब….हमारे हृदय में और पीढ़ा होती है मधुप ! ….दूखता हैं हमारा दिल….श्रीराधारानी हिलकियों से रो पडीं थीं ये कहते हुए ।
अच्छा ! अच्छा ! नही सुनाते हम …….आपको यदुनाथ के बारे में …….नही सुनाते हम आपको यदुपति के बारे में…ठीक है !
पर आपकी आज्ञा तो माननी पड़ेगी …….चलिये “श्रीराधानाथ” और “गोपीनाथ” के ही गीत सुनाता हूँ……इतना कहकर वो भँवर फिर गुनगुनानें लगा….थोड़ी देर तक श्रीराधा रानी सुनती रहीं ……फिर थोड़ी देर के बाद बोलीं – भँवरे ! बन्द कर , बन्द कर ये सब…..एकाएक चिल्ला उठी थीं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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