!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 79 !!
भँवर के गुंजार में…….
भाग 3
मत सुनाओ ये सब….हमारे हृदय में और पीढ़ा होती है मधुप ! ….दूखता हैं हमारा दिल….श्रीराधारानी हिलकियों से रो पडीं थीं ये कहते हुए ।
अच्छा ! अच्छा ! नही सुनाते हम …….आपको यदुनाथ के बारे में …….नही सुनाते हम आपको यदुपति के बारे में…ठीक है !
पर आपकी आज्ञा तो माननी पड़ेगी …….चलिये “श्रीराधानाथ” और “गोपीनाथ” के ही गीत सुनाता हूँ……इतना कहकर वो भँवर फिर गुनगुनानें लगा….थोड़ी देर तक श्रीराधा रानी सुनती रहीं ……फिर थोड़ी देर के बाद बोलीं – भँवरे ! बन्द कर , बन्द कर ये सब…..एकाएक चिल्ला उठी थीं ।
क्या हुआ ? अब क्या दिक्कत है ? भ्रमर नें पूछा था ।
पर तू सुना क्यों रहा है हमें ? कहीं तुझे भी राजा महाराजाओं के सभाओं की आदत तो नही लगी ? भँवरे से पूछा ।
क्यों की भँवरे ! राजाओं की सभाओं में जो गीत गाते हैं ना……..उनको उपहार दिया जाता है……कहीं तू ?
श्रीराधा रानी सोचती हैं…….भँवरे ! तू कहीं इसलिये तो गीत नही सुना रहा हम को …..कि हम भी तुझे कुछ उपहार दें !
रो गयीं श्रीराधारानी…….हम क्या दे सकती हैं तुम नगर वासियों को ।
हम तो वन में रहनें वाली हैं…….जँगली लोग हैं…..असभ्य …..गंवार….हमसे कुछ अपेक्षा मत करना……हम तुम्हे कुछ नही दे सकतीं……इसलिये बेकार में अपना गला खराब मत करो हमारे सामनें……हाँ ……तुम्हे अगर खूब उपहार चाहिये तो हम उपाय बता देती हैं…….उपाय ये हैं भ्रमर ! कि – राधानाथ के प्रसंगों को तू मथुरा की नारियों को सुना…….वहाँ से तुझे बहुत उपहार मिलेंगें ।
श्रीराधारानी ये सब उन्माद की अवस्था में बोल रही थीं ।
मथुरा से तो हमें बहुत कुछ मिला है …..और मिलता रहेगा…….हे स्वामिनी ! हम तो आपसे लेनें आये हैं….आप ही हमें कुछ दीजिये…..
भँवरे नें मानों श्रीराधा रानी को कहा ।
आवेश में श्रीराधा उत्तर देती हैं –
हम क्या दें तुम्हे ? देखो भ्रमर ! स्वामी जो दे जाता है ना …….वही वस्तु तो रहती है दासीयों के पास…….वे हमारे स्वामी थे हम उनकी सेविकाएँ हैं ……..।
हाँ हाँ ……..आपके स्वामी नें जो आपको दिया है वही दे दो ……
भँवरा फिर बोला ।
रो गयीं श्रीराधा रानी …………स्वामी नें हम दासियों को बस …….यही आँसू दिए हैं ……”आह” दिया है ……….तड़फ़ दी है ……..
पर भँवरे ! ये सब तो हम तुम्हे नही दे सकती ना !
हमारी दशा देख भँवर ! निरन्तर ये आँसू बहते रहते हैं ………..
यमुना जल भी खारा हो रहा है ……………डरती हैं हम कहीं ये वृन्दावन डूब न जाए हमारे आँसुओं में ।
भँवर ! कुछ नही हैं हमारे पास तुम लोगों को देंनें के लिये ……….
चले जाओ ….तुम चले जाओ यहाँ से …………….
इतना ही बोल पाईं श्रीराधा रानी………और फिर अश्रु धार !
उद्धव, बस देख रहे हैं इन सब लीलाओं को ……और चकित हैं ।
शेष चरित्र कल –


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